जैन स्कूल में की गयी बहन देवकी देवी को श्रद्धा से सलाम
जब समाज का एक बहुत बड़ा और प्रभावशाली हिस्सा बच्चियों के जन्म को बुरा समझ रहा था, जन्म होते ही उन्हें मार डालने की साजिशें रची जाती थीं, खुश किस्मती से अगर फिर भी बच गयीं तो उन्हें खेलने और पढने की उम्र में ही विवाह के बंधन में बाँध दिया जाता था। उस समय समाज के कुछ लोग हिम्मत करके इस सब के खिलाफ केवल आवाज़ ही नहीं उठा रहे थे बल्कि खुद कुछ करके भी दिखा रहे थे। इन्हीं में से एक थी बहन देवकी देवी। नारी शिक्षा और नैतिक जीवन शैली को अपनी सारी उम्र समर्पित क्र देने वाली बहन देवकी देवी की ओर से शिक्षा के क्षेत्र में लगाया गया एक छोटा सा पौदा आज बहुत बड़ा वट वृक्ष बन चूका है। लुधियाना में देवकी देवी जैन गर्ल्ज़ स्कूल और डी डी जैन गर्ल्ज़ कालज के नाम से चल रहीं शिक्षण संस्थाएं आज आधी दुनिया अर्थात महिला जगत को सशक्त और शिक्षित करने में लगी हैं।
महिला दिवस के शुभ अवसर पर लुधियाना के रूपा मिस्त्री गली क्षेत्र में स्थित जैन गर्ल्ज़ सीनियर सेकेंडरी स्कूल में उस महान आत्मा बहन देवकी देवी को भी बहुत ही आदर के साथ सलाम की गयी। बाल ब्रह्मचारिणी भं देवकी देवी जैन का जन्म 12 मार्च 1906 को श्री भक्त प्रेम चंद तथा माता श्रीमती भनी देवी के घर में हुआ। कहते हैं की महान आत्माएं विश्व में जन हित के लिए ही आती हैं। भं देवकी देवी का जन्म भी इसी की एक मिसाल साबित हुआ। खेलने खाने की अल्प उम्र जब बच्चे खान-पान और खिलौनों के लिए झगड़ते हैं उस समय इस मासूम लेकिन दूर द्रष्टा बच्ची ने खुद को धर्म और समाज निर्माण के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने पूज्य श्री सद्गुरु धर्मपिता जैन धर्म दिवाकर जैनागम रत्नाकर आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्मा राम जैन जी के चरण कमलों में अपने सारे जीवन को समर्पित करने भीष्म प्रतिज्ञा की। यह सब उन्होंने अपने पिटे के जीवन काल में ही स्वयं को सौरभाविन्त रखने के लिए किया। उन्होंने जिंदगी के आखिरी सांस तक इस संकल्प को निभाया भी। उनका सारा जीवन धर्म साधना में लीन रहा और साथ ही साथ सक्रिय रूप से नारी शिक्षा को समर्पित भी। यह सब मुझे बताया इस स्कूल की प्रिंसिपल मीना गुप्ता और स्टाफ के अन्य सदस्यों ने।
उस समय नारी शिक्षा की बात करना किसी क्रांति से कम नहीं था। समाज के साथ मंगा लेना आसान कभी भी नहीं होता। पर धर्म और साधना की शक्ति से उन्होंने लगातार अपने विजयी कदम बढ़ाने जारी रखे। अगर आज नारी पूरे समाज के सामने एक शक्ति बन कर उभरी है तो इसमें बहन देवकी देवी का भी बहुत ही अहम योगदान है। इस सम्बन्ध में इन शिक्षण संस्थानों की समिति के सेक्रेटरी विपिन जैन बहुत ह कम शब्दों में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। आप जान कर हैरान होंगें कि जैन शिक्ष्ण संस्थानों के जिस विशाल रूप को देख कर आज सभी चमत्कृत हो जाते हैं उसकी शुरूआत हुयी थी केवल पांच लडकियों से। श्री आत्मा जी महाराज की प्रेरणा से वह छोटी सी शुरूआत आज पर्वत बन चुकी है। अब इन शिक्षण संस्थानों में अमीर गरीब सभी बच्चों को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा दी जाती है। वितीय तौर से कमजोर वर्ग का यहाँ विशेष ख्याल रखा जाता है। वर्दी से लेकर किताबों तक की सुविधा उन्हें मिलती है। योग से लेकर कम्प्यूटर तक के क्षेत्र में उन्हें पारंगत किया जाता है तां कि आज की बच्चियां भविष्य में सशक्त नारी बन कर स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान डाल सकें। देखो गुरु में श्रद्धा और प्रेम कितना था इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने धर्मपिता आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज क्क देवलोकगमन होने के दो माह पश्चात ही सात अप्रैल 1962 आत्म ज्योति में समा गयीं। अब शरीरक रूप में में तो बहन देवकी देवी हमारे दरम्यान नहीं हैं पर उनका संकल्प, उनका कार्य निरंतर और अबाध चल रहा है। स्कूल हो या कालज जब भी देखो यही लगता है कि उनकी शांत छवि अपनी मूर्ती के रूप में सब देख रही, सब सम्भाल रही है। इन शिक्षा संस्थानों से शिक्षा पाकर बहुत सी बच्चियां ऊंचे स्थानों पर पहुँच चुकी हैं और नारी उत्थान में कार्यरत हैं।जैन गर्ल्ज़ सीनियर सेकेंडर स्कूल की प्रिंसिपल मीना गुप्ता स्वयं भी इसी स्कूल की छात्र रही हैं। जब उनसे महिला दिवस के सम्बन्ध में बात हुयी तो उनकी जुबां पर बस एक ही नाम आया बहन देवकी देवी। स्कूल के सारे स्टाफ ने इस बार के महिला दिवस पर उन्हें बहुत ही श्रद्धा से याद किया और साथ ही उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प भी लिया।--रेक्टर कथूरिया (मोबाईल-98882-72025)
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