कोक द्वारा भूगर्भ जल का अंधाधुंध दोहन
सामान्य रूप से पेप्सी कोला की एक बोतल बनाकर बेचने में 10 लीटर पानी का खर्चा आता है। हालांकि बोतल में 300 मिली॰ ही पेय होता है बाकी पानी बोतल को धोने में तथा अन्य मशीनरी प्रयोग में खर्च होता है। भारत देश में पेप्सी कोला की लगभग 600 से 700 करोड़ बोतल प्रतिवर्ष बिकती हैं। अर्थात भारत में प्रतिवर्ष 6000 से 7000 करोड़ लीटर पानी प्रतिवर्ष इन कोला कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है।
"सेंट्रल ग्राउंड वॉटर एथॉरिटी" का कहना है की सरकार इन कोला कंपनियों से भूगर्भ जल के इस्तेमाल का कोई शुल्क नहीं लेती है, जबकि खेतों में भी पानी छोडने का टैक्स सरकार्ड द्वारा लिया जाता है। कितनी आश्चर्य की बात की एक तरफ पेप्सी और कोला जैसी विदेशी कंपनियां भारत के बेशकीमती भूगर्भ जल का इस्तेमाल करके हजारों करोड़ कमा रही हैं और हमारी सरकार इस पानी पर कंपनियों से कोई शुल्क नहीं ले रही हैं। दूसरी ओर भारत देश के 2 लाख से अधिक गाँव पीने के पानी से भी वंचित हैं। जिस पानी से भारत के लाखों लोगों एवं पशुओं की प्यास बुझाने का इंतेजाम हो सकता है, वही बेशकीमती पानी ज़मीन से दोहन करके ठंडे पेयोन में बर्बाद किया जा रहा है जिसका पैसा भी अमेरिका जा रहा है।
इस भूगर्भ जल पर पहला अधिकार भारतवासियों एवं पशुओं का है जिन्हें अपनी प्यास बुझाने के लिए इस जल की जरूरत है। दूसरा अधिकार उन करोड़ों किसानों का है जो देश के लोगों का पेट भरने के लिए इस जल का प्रयोग करते हैं। तीसरा अधिकार यदि हो सकता है तो उन उद्योगों का है जो हमारे जीवन के लिए अत्यंत जरूरी एवं उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। ठंडे पेय कोई जरूरी उद्योग नहीं हैं।
जिस देश के अधिकांश भागों में औसतन हर साल सूखा पड़ता हो, जिस देश के लाखों गाँव एवं करोड़ों मनुष्य, पशु, पक्षी पीने के पनि को तरसते हों वहाँ हर साल ठंडे पेय के नाम पर हजारों करोड़ लीटर पानी को बर्बाद करना एक "राष्ट्रीय अपराध" है।
पेप्सी- कोला के कारखाने जहां जहां भी लगे हुए हैं वहाँ की ग्राम पंचायत, नगर परिषद से भूगर्भ जल निकालने की अनुमति भी इन कंपनियों ने नही ली है। इन कंपनियों द्वारा प्रतिदिन करोड़ों लीटर पानी निकालने से संयंत्र के आस पास के गाँवों का भूगर्भ जल बहुत ही कम हो जाता है, इसी कारण केरल के प्लाचीमडा गाँव में कोका कोला को संयंत्र को बंद कराने के लिए आंदोलन हुआ था।
पेप्सी-कोक की लूट के षड्यन्त्र को जानने के लिए पढे:
http://on.fb.me/NLCuBo
सोचिए जरा !!
स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ............स्वदेशी अपनाओ विदेशी भगाओ
सामान्य रूप से पेप्सी कोला की एक बोतल बनाकर बेचने में 10 लीटर पानी का खर्चा आता है। हालांकि बोतल में 300 मिली॰ ही पेय होता है बाकी पानी बोतल को धोने में तथा अन्य मशीनरी प्रयोग में खर्च होता है। भारत देश में पेप्सी कोला की लगभग 600 से 700 करोड़ बोतल प्रतिवर्ष बिकती हैं। अर्थात भारत में प्रतिवर्ष 6000 से 7000 करोड़ लीटर पानी प्रतिवर्ष इन कोला कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है।
"सेंट्रल ग्राउंड वॉटर एथॉरिटी" का कहना है की सरकार इन कोला कंपनियों से भूगर्भ जल के इस्तेमाल का कोई शुल्क नहीं लेती है, जबकि खेतों में भी पानी छोडने का टैक्स सरकार्ड द्वारा लिया जाता है। कितनी आश्चर्य की बात की एक तरफ पेप्सी और कोला जैसी विदेशी कंपनियां भारत के बेशकीमती भूगर्भ जल का इस्तेमाल करके हजारों करोड़ कमा रही हैं और हमारी सरकार इस पानी पर कंपनियों से कोई शुल्क नहीं ले रही हैं। दूसरी ओर भारत देश के 2 लाख से अधिक गाँव पीने के पानी से भी वंचित हैं। जिस पानी से भारत के लाखों लोगों एवं पशुओं की प्यास बुझाने का इंतेजाम हो सकता है, वही बेशकीमती पानी ज़मीन से दोहन करके ठंडे पेयोन में बर्बाद किया जा रहा है जिसका पैसा भी अमेरिका जा रहा है।
इस भूगर्भ जल पर पहला अधिकार भारतवासियों एवं पशुओं का है जिन्हें अपनी प्यास बुझाने के लिए इस जल की जरूरत है। दूसरा अधिकार उन करोड़ों किसानों का है जो देश के लोगों का पेट भरने के लिए इस जल का प्रयोग करते हैं। तीसरा अधिकार यदि हो सकता है तो उन उद्योगों का है जो हमारे जीवन के लिए अत्यंत जरूरी एवं उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। ठंडे पेय कोई जरूरी उद्योग नहीं हैं।
जिस देश के अधिकांश भागों में औसतन हर साल सूखा पड़ता हो, जिस देश के लाखों गाँव एवं करोड़ों मनुष्य, पशु, पक्षी पीने के पनि को तरसते हों वहाँ हर साल ठंडे पेय के नाम पर हजारों करोड़ लीटर पानी को बर्बाद करना एक "राष्ट्रीय अपराध" है।
पेप्सी- कोला के कारखाने जहां जहां भी लगे हुए हैं वहाँ की ग्राम पंचायत, नगर परिषद से भूगर्भ जल निकालने की अनुमति भी इन कंपनियों ने नही ली है। इन कंपनियों द्वारा प्रतिदिन करोड़ों लीटर पानी निकालने से संयंत्र के आस पास के गाँवों का भूगर्भ जल बहुत ही कम हो जाता है, इसी कारण केरल के प्लाचीमडा गाँव में कोका कोला को संयंत्र को बंद कराने के लिए आंदोलन हुआ था।
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