Sunday, July 08, 2012

नींव के पत्थर/देश को बचाने की अल्ख जगाता अन्ना आन्दोलन

लगा हैं इन्हें रोग दौलत का ऐसा, बहन-बेटियों के ये तन बेच देंगे ! 
जन लोकपाल ही बस एक समाधान
नींव के पत्थर आपने बहुत बार देखे होंगें। किसी भी इमरत की स्थिरता और लम्बी आयु इन्हीं पर निर्भर होती है। आज आपसे चर्चा की जा रही है कुछ ऐसे नींव के पत्थरों की जो ज़िन्दगी और मानवता की इमारत  को मजबूत करने के लिए खुद चल कर आ गये हैं बलिदान के रास्ते पर।. न तो यहाँ कोई पद मिला है न ही धन मिलने की सम्भावना और न ही कोई और फायदा। अगर कुछ मिलेगा तो सुबह शाम काम ही काम,, धुप हो या बारिश बस चलते ही जाना,, गर्मी हो या सर्दी अन्ना हजारे का संदेश हर हाल तक घर घर पहुँचाना। पूरे देश को जगाना, भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करना इनका उद्देश्य: 

मेहनत और कामकाज तो ये लोग अपने और अपने परिवार के लिए भी तो कर सकते थे ! क्या मजबूरी आन पड़ी की ये लोग निकल पड़े सारे सुख आराम छोड़ कर। जब लोग एयर कंडीशंड कमरों  में आराम कर रहे होते हैं तो ये लोगो गर्मी की इस कडक धुप में इधर से उधर घूम रहे होते हैं। एक मंजिल से दूसरी मंजिल की तरफ। ये सब लोग पड़े ,  हैं,ज्ञानवान हैं अनुभवी हैं पर इन्हें समझ आ चुकी है कि अगर देश ही लुट जायेगा तो कहाँ बचेगा घर और कहाँ बचेगा परिवार ? देश के आम आदमी को बचाने के लिए, लुटेरों को बेनकाब करके सजा दिलाने के लिए ते लोग निकल पड़े हैं अपना सब कुछ छोड़ कर। इनसे मेरी पहली मुलाकात हुई लुधियाना के एक वरिष्ठ पत्रकार और समाज सेवी विनोद जैन जी के कार्यालय में।.सरदार हरिंद्र सिंह के मार्गदर्शन  में चल रही इस टीम में ललित दीदी भी है,, पवित्र सिंह भी और अशोक पठानिया भी। इन चारो सदस्यों को बस एक ही जनून है की किसी भी तरह देश को बचना है।..जन लोकपाल लाना है। यकीन कीजिये इनसे मिलने के बाद भी आप भी इनके हमराह बन सकते हैं इनकी बातों में जादू है क्यूंकि दिल से जो बात निकलती है असर रखती है, पर नहीं ताकत-ए -परवाज़ मगर रखती है।.यर लोग तो समझ चुके हैं की अगर हम अब भी नहीं चेते तो फिर देश खतरे में है।.एक शायर मयंक जी के शब्दों में गौर कीजिये::
बसेरा है सदियों से शाखों पे जिसकी,
ये वो शाख वाला चमन बेच देंगे।

सदाकत से इनको बिठाया जहाँ पर,
ये वो देश की अंजुमन बेच देंगे।

लिबासों में मीनों के मोटे मगर हैं,
समन्दर की ये मौज-ए-जन बेच देंगे।

सफीना टिका आब-ए-दरिया पे जिसकी,
ये दरिया-ए गंग-औ-जमुन बेच देंगे।

जो कोह और सहरा बने सन्तरी हैं,
ये उनके दिलों का अमन बेच देंगे।

जो उस्तादी अहद-ए-कुहन हिन्द का है,
वतन का ये नक्श-ए-कुहन बेच देंगे।

लगा हैं इन्हें रोग दौलत का ऐसा,
बहन-बेटियों के ये तन बेच दें
 
इस पोस्ट पर भी आपके विचारों की इंतजार तो बनी रहेगी। आप अन्ना से सहमत न भी हों तो अपने विरोध विचारों को भी भेजिए तांकि स्वस्थ बहस हो सके और आशंका भी दूर हो सके। --रेक्टर कथूरिया। 

पटियाला में अन्ना की आंधी   

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