हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है
केवल धर्म शास्त्र ही नहीं फ़िल्मी दुनिया के लोग भी कल कल बहती पावन गंगा जी की धारा के सामने नतमस्तक होते रहे हैं. पूरे समाज के लोग गंगा जी से प्रभावित होते भी रहे हैं और दूसरों को प्रभावित करते भी रहे. कभी जमाना था जब देश के बच्चे बच्चे की जुबान पर बस यही गीत हुआ करता था...हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है. एक भारतीय होने की बस यही पहचान काफी थी. गंगा जी के देश का वासी होना बस यही गर्व काफी था. दुनिया के सामने सर उठा कर चलने के लिए बस यही प्रमाणपत्र पर्याप्त था किसी और चीज़ की ज़रुरत महसूस भी नहीं होती थी. गंगा जी के दर्शन सारी चिंता को दूर कर देते, गंगा स्नान से तन मन के सारे ताप दूर हो जाते. लोग प्रेम की दुनिया में भी उतरते तो बस यही कामना करते गंगा मैया में जब तक ये पानी रहे मेरे सज्जना तेरी जिंदगानी रहे.....!
लोगों के दिल से बस यही आवाज़ निकलती..गंगा तेरा पानी अमृत कल कल बहता जाए. पर यह सुखद हकीकत जल्द ही सपना बनने लगी. हालात बदलने लगे. देश को शक्ति व प्रेरणा देने वाले स्रोतों पर वार करने की साजिशें सफल होने लगी. गंगा जी के पावन शीतल जल को नकार कर बोतल में बंद पानी बेचने के कारोबार खड़े होने लगे. स्विमिंग पूल में नहाने की संस्कृति ने ऐसा सर उठाया कि लोग माँ गंगा जी के पावन आँचल से ही दूर होने लगे. गंगा स्नान बस व्रत त्योहारों की बात बनने लगा. लोग गंगा और यमुना से जुड़े सम्बन्धों को तेज़ी से भूलने लगे. जब जब भी घर में गंगा जल आता तो बच्चे पूछते यह क्या है? यह क्यूं है? इससे से क्या होने वाला है?
जमाना ऐसा बदला और हालत बेहद तेज़ी से बिगड़ने लगी. देश के दुश्मनों की साजिश और देश के सपूतों की अज्ञानता कि गंगा जी की शक्ति को समाप्त करने के कुप्रयास होने लगे. देश के कलमकारों ने, फिल्मकारों ने वक्त पर आगाह भी किया और तडप कर कहा...राम तेरी गंगा मैली हो गई, पापियों के पाप धोते धोते. पर न पाप रुका और न ही पाप में लगे लोग. देश ऐसा सोया कि न अपनी सुध रही और न ही गंगा जी की. देश का जल, देश की वायु, देश का अन्न, देश का मन सब कुछ प्रदूषित होता चला गया पर देश के कर्णधार सोते रहे सोते रहे. देश कि युवा शक्ति को गंगा जी कि पावन धारा से तोड़ कर नशे कि धारा में डुबोने कि सुनियोजित साजिशें सफल होने लगीं. गंगा पुत्र निगमानन्द जी का बलिदान भी इन्हें जगाने में नाकाम रहा. गंगा यमुना से भावुक तौर पर टूटा भारतीय मानव पूरी तरह भावहीन होता गया, कारोबारी बनता गया और धर्म व संस्कारों से पूरी तरह टूटने लगा. आज अगर अश्लीलता बढ़ रही है, भाई भाई पर वार कर रहा है, पिता पुत्री से सम्बन्ध बना रहा है तो इसके गहरे अर्थ यहाँ भी जुड़े हैं. गंगा जी कि पावन धरा से टूट कर, पर्यादा को भूल कर यही होने वाला था. गंगा यमुना छूटी तो स्नेह भी छूट गया और भावना भी. पवित्रता का वह अहसास भी और मंजिलें पाने का वह असीम जोश भी.
अप्रैल 1985 में शुरू हुए गंगा एक्शन प्लान पर 1200 करोड़ रूपये खर्च हुए पर समस्या हल होने कि बजाये लगातार गंभीर होती चली गई. लेकिन इन सरे प्रयासों में बहुत कुछ ऐसा भी हुआ जिसे उल्लेखनीय कहा जा सकता है.गंगा बचायो अभियान से जुड़े लोगों और संगठनों में गंगा सेवा मिशन भी है. स्वामी आंनद स्वरूप जी कहते हैं गंगा सिर्फ नदी नहीं एक संस्कृति है। गंगा से लगाव उनका बचपन से है। गंगा की लहरों ने उन्हें सदैव आकर्षित किया है। यही कारण है कि उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश गिरिधर मालवीय के साथ इलाहाबाद में वर्ष 1998 में गंगा समर्पण संस्थान के माध्यम से गंगा की पवित्रता के लिए काम शुरू किया। मालवीय इसके अध्यक्ष थे। इसके पूर्व महामंडलेश्वर स्वामी महेश्वरानंद ने हरिद्वार कुंभ 1998 में जब गंगा में कुत्ते की लाश देखी तो आहत होकर कहा, गंगा के लिए कुछ करो। बाद में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की प्रेरणा से तो इस संकल्प ने अभियान का रूप ले लिया। शुरू में गंगा सेवा अभियान के माध्यम से इलाहाबाद, पटना, हरिद्वार, रामपुर आदि स्थानों पर सम्मेलन आयोजित किए गए। गंगा सेवा मिशन की स्थापना के बाद अभियान में तेजी आई। 26 दिसंबर 2010 को काशी से गंगा की पवित्रता के लिए एक बड़ी यात्रा शुरू हुई। इसमें बड़ी संख्या में संत और गृहस्थ शामिल हुए। इस यात्रा की समाप्ति मथुरा में हुई। वहां गोवर्धन पीठ में स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती की अध्यक्षता में बड़ा सम्मेलन हुआ। इसके बाद हरियाणा के परहवा में शिवशक्ति महायज्ञ हुआ।
इस सारे अभियान की अंतरात्मा से जुड़े स्वामी आनन्द स्वरूप जी आजकल लुधियाना में है. नवरात्र के शुभ अवसर पर गंगा सेवा मिशन की अलख जगाते हुए स्वामी इस मुद्दे के सभी पहलूयों पर विस्तार से जानकारी दे रहे है तन की लोगों में जागरूकता आ सके. उनके इस मिशन में बहुत से लोग शामिल हैं लेकिन ठाकुर परिबार का नाम लेना आवश्यक है. युवा मन और जोश के साथ आरती ठाकुर भी इस मिशन को सफल बनाने में जुटी है और आरती का परिवार भी.--रेक्टर कथूरिया सहयोग: आरती ठाकुर
केवल धर्म शास्त्र ही नहीं फ़िल्मी दुनिया के लोग भी कल कल बहती पावन गंगा जी की धारा के सामने नतमस्तक होते रहे हैं. पूरे समाज के लोग गंगा जी से प्रभावित होते भी रहे हैं और दूसरों को प्रभावित करते भी रहे. कभी जमाना था जब देश के बच्चे बच्चे की जुबान पर बस यही गीत हुआ करता था...हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है. एक भारतीय होने की बस यही पहचान काफी थी. गंगा जी के देश का वासी होना बस यही गर्व काफी था. दुनिया के सामने सर उठा कर चलने के लिए बस यही प्रमाणपत्र पर्याप्त था किसी और चीज़ की ज़रुरत महसूस भी नहीं होती थी. गंगा जी के दर्शन सारी चिंता को दूर कर देते, गंगा स्नान से तन मन के सारे ताप दूर हो जाते. लोग प्रेम की दुनिया में भी उतरते तो बस यही कामना करते गंगा मैया में जब तक ये पानी रहे मेरे सज्जना तेरी जिंदगानी रहे.....!
लोगों के दिल से बस यही आवाज़ निकलती..गंगा तेरा पानी अमृत कल कल बहता जाए. पर यह सुखद हकीकत जल्द ही सपना बनने लगी. हालात बदलने लगे. देश को शक्ति व प्रेरणा देने वाले स्रोतों पर वार करने की साजिशें सफल होने लगी. गंगा जी के पावन शीतल जल को नकार कर बोतल में बंद पानी बेचने के कारोबार खड़े होने लगे. स्विमिंग पूल में नहाने की संस्कृति ने ऐसा सर उठाया कि लोग माँ गंगा जी के पावन आँचल से ही दूर होने लगे. गंगा स्नान बस व्रत त्योहारों की बात बनने लगा. लोग गंगा और यमुना से जुड़े सम्बन्धों को तेज़ी से भूलने लगे. जब जब भी घर में गंगा जल आता तो बच्चे पूछते यह क्या है? यह क्यूं है? इससे से क्या होने वाला है?
जमाना ऐसा बदला और हालत बेहद तेज़ी से बिगड़ने लगी. देश के दुश्मनों की साजिश और देश के सपूतों की अज्ञानता कि गंगा जी की शक्ति को समाप्त करने के कुप्रयास होने लगे. देश के कलमकारों ने, फिल्मकारों ने वक्त पर आगाह भी किया और तडप कर कहा...राम तेरी गंगा मैली हो गई, पापियों के पाप धोते धोते. पर न पाप रुका और न ही पाप में लगे लोग. देश ऐसा सोया कि न अपनी सुध रही और न ही गंगा जी की. देश का जल, देश की वायु, देश का अन्न, देश का मन सब कुछ प्रदूषित होता चला गया पर देश के कर्णधार सोते रहे सोते रहे. देश कि युवा शक्ति को गंगा जी कि पावन धारा से तोड़ कर नशे कि धारा में डुबोने कि सुनियोजित साजिशें सफल होने लगीं. गंगा पुत्र निगमानन्द जी का बलिदान भी इन्हें जगाने में नाकाम रहा. गंगा यमुना से भावुक तौर पर टूटा भारतीय मानव पूरी तरह भावहीन होता गया, कारोबारी बनता गया और धर्म व संस्कारों से पूरी तरह टूटने लगा. आज अगर अश्लीलता बढ़ रही है, भाई भाई पर वार कर रहा है, पिता पुत्री से सम्बन्ध बना रहा है तो इसके गहरे अर्थ यहाँ भी जुड़े हैं. गंगा जी कि पावन धरा से टूट कर, पर्यादा को भूल कर यही होने वाला था. गंगा यमुना छूटी तो स्नेह भी छूट गया और भावना भी. पवित्रता का वह अहसास भी और मंजिलें पाने का वह असीम जोश भी.
अप्रैल 1985 में शुरू हुए गंगा एक्शन प्लान पर 1200 करोड़ रूपये खर्च हुए पर समस्या हल होने कि बजाये लगातार गंभीर होती चली गई. लेकिन इन सरे प्रयासों में बहुत कुछ ऐसा भी हुआ जिसे उल्लेखनीय कहा जा सकता है.गंगा बचायो अभियान से जुड़े लोगों और संगठनों में गंगा सेवा मिशन भी है. स्वामी आंनद स्वरूप जी कहते हैं गंगा सिर्फ नदी नहीं एक संस्कृति है। गंगा से लगाव उनका बचपन से है। गंगा की लहरों ने उन्हें सदैव आकर्षित किया है। यही कारण है कि उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश गिरिधर मालवीय के साथ इलाहाबाद में वर्ष 1998 में गंगा समर्पण संस्थान के माध्यम से गंगा की पवित्रता के लिए काम शुरू किया। मालवीय इसके अध्यक्ष थे। इसके पूर्व महामंडलेश्वर स्वामी महेश्वरानंद ने हरिद्वार कुंभ 1998 में जब गंगा में कुत्ते की लाश देखी तो आहत होकर कहा, गंगा के लिए कुछ करो। बाद में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की प्रेरणा से तो इस संकल्प ने अभियान का रूप ले लिया। शुरू में गंगा सेवा अभियान के माध्यम से इलाहाबाद, पटना, हरिद्वार, रामपुर आदि स्थानों पर सम्मेलन आयोजित किए गए। गंगा सेवा मिशन की स्थापना के बाद अभियान में तेजी आई। 26 दिसंबर 2010 को काशी से गंगा की पवित्रता के लिए एक बड़ी यात्रा शुरू हुई। इसमें बड़ी संख्या में संत और गृहस्थ शामिल हुए। इस यात्रा की समाप्ति मथुरा में हुई। वहां गोवर्धन पीठ में स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती की अध्यक्षता में बड़ा सम्मेलन हुआ। इसके बाद हरियाणा के परहवा में शिवशक्ति महायज्ञ हुआ।
इस सारे अभियान की अंतरात्मा से जुड़े स्वामी आनन्द स्वरूप जी आजकल लुधियाना में है. नवरात्र के शुभ अवसर पर गंगा सेवा मिशन की अलख जगाते हुए स्वामी इस मुद्दे के सभी पहलूयों पर विस्तार से जानकारी दे रहे है तन की लोगों में जागरूकता आ सके. उनके इस मिशन में बहुत से लोग शामिल हैं लेकिन ठाकुर परिबार का नाम लेना आवश्यक है. युवा मन और जोश के साथ आरती ठाकुर भी इस मिशन को सफल बनाने में जुटी है और आरती का परिवार भी.--रेक्टर कथूरिया सहयोग: आरती ठाकुर
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