भारतीय पोस्ट कार्ड का इतिहास
विशेष लेख डॉ. के परमेश्वरन*
विशेष लेख डॉ. के परमेश्वरन*
साभार तस्वीर |
मलयालम के एक प्रमुख हास्य लेखक श्री एन गोपालाकृष्णन ने एक हृदय रोग विशेषज्ञ यानी कार्डियोलॉजिस्ट की परिभाषा इस तरह बताई है किजो सिर्फ कार्डों के यानी पत्रों के उपरांत ही पत्र लिखता है। वे अपने शहर में अपने आपको बहुत बड़ा कार्डियोलॉजिस्ट बताते हैं।
मलयालम में एक छोटी सी पत्रिका है – इन्नू (यानी आज), जो केवल एक पत्रनुमा कार्ड पर छपती है। यह पत्रिका अपने प्रकाशन के 30वें वर्ष में प्रवेश कर गयी है और इस पत्र कार्ड को दुनियाभर में 10 हजार से भी ज्यादा ग्राहकों को डाक के जरिए भेजा जाता है। पोस्ट कार्ड, पत्र कार्ड तथा डाक पत्र विद्या (Deiltolog) की कला और विज्ञान से संबंधित तथ्य इस प्रकार हैं :पोस्ट कार्ड
सरकारी तौर पर पोस्ट कार्ड एक निश्चित आकार के कार्ड पर लिखा खुला संदेश है। इस कार्ड का आकार आमतौर पर 14 सेमी. X9 सेमी. होता है। पोस्ट कार्ड आमतौर पर दो किस्मों में उपलब्ध हैं- अकेला एक कार्ड, केवल संदेश भेजने के लिए या दोहरा संलग्न कार्ड- एक संदेश भेजने के लिए और दूसरा संदेश प्राप्तकर्ता द्वारा तुरंत जवाब के लिए। उत्तर देने वाला जवाब देने में देरी नहीं कर सकता, क्योंकिसंदेश भेजने वाले ने कार्ड की कीमत पहले ही चुका दी होती है।
पोस्ट कार्ड के बारे में एक बात की जानकारी शायद बहुत कम लोगों को होगी किइसका इस्तेमाल सिर्फ भारत के अंदर ही किया जा सकता है। कोई व्यक्तिया संस्था भी अपने कर्मचारियों या उपभोक्ताओं को संदेश भेजने के लिए कार्ड छपवा सकती हैं। इस प्रकार के पोस्ट कार्डों का आकार भी सरकारी पोस्ट कार्ड जैसा ही होना चाहिए। यह पतला भी नहीं होना चाहिए और इनका आकार और मोटाई भी छपे हुए पोस्ट कार्ड जैसी होनी चाहिए।
भारतीय पोस्ट कार्ड का इतिहास
भारतीय डाक घर ने पहली बार जुलाई 1879 में चौथाई आना (यानी एक पैसा) का पोस्ट कार्ड शुरू किया था। इसका उद्देश्य ब्रिटिश भारत की सीमा में एक स्थान से दूसरे स्थान तक डाक भेजना था। भारत के लोगों के लिए अब तक का यह सबसे सस्ता डाक पत्र था और जो बहुत सफल सिद्ध हुआ।
पूरे भारत के लिए वृहद डाक प्रणाली शुरू हो जाने पर डाक बहुत दूर-दूर तक जाने लगी। पोस्ट कार्ड पर लिखा संदेश बिना किसी अतिरिक्त डाक टिकट के देश के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचने लगा, जहां नजदीक में कोई डाकखाना भी नहीं होता था। इसके बाद अप्रैल 1880 में ऐसे पोस्ट कार्ड शुरू हुए, जो केवल सरकारी इस्तेमाल के लिए थे और 1890 में जवाबी पोस्ट कार्ड शुरू हुए। पोस्ट कार्ड की यह सुविधा आज भी स्वतंत्र भारत में जारी है।
अन्य स्थानों के पोस्ट कार्ड
1861 में फिलेडलफिया में जॉन पी चार्लटन ने एक गैर-सरकारी पोस्ट कार्ड की शुरूआत की, जिसके लिए उसने कॉपीराइट हासिल किया, जिसे बाद में एचएल लिपमैन को स्थानांतरित कर दिया गया। कार्ड के चारों ओर छोटी सी पट्टी की सजावट थी और कार्ड पर लिखा था – लिपमैन्ज़ पोस्टल कार्ड, इसके पेटेंट अधिकार के लिए आवेदन किया हुआ था। ये बाजार में 1873 तक चले, जब पहला सरकारी पोस्ट कार्ड शुरू हुआ। अमरीका ने 1873 में पहले से मुहर लगे पोस्ट कार्ड जारी किए। केवल अमरीका की डाक सेवा को ही इस तरह के कार्ड छापने की अनुमतिथी, जो 19 मई, 1898 तक रही, जब अमरीकी संसद ने प्राइवेट मेलिंग कार्ड एक्ट पास किया, जिसमें प्राइवेट फर्मों को कार्ड बनाने की अनुमतिदी गयी। प्राइवेट मेलिंग कार्डों की डाक लागत एक सेंट थी, जबकिपत्र कार्ड की दो सेंट थी। जो कार्ड अमरीकी डाक सेवा द्वारा छपे हुए नहीं होते थे, उन पर प्राइवेट मेलिंग कार्ड छापना जरूरी था। पोस्ट कार्ड की उल्टी तरफ सिर्फ सरकार को पोस्टकार्ड शब्द छापने की अनुमतिथी। गैर-सरकारी कार्डों पर सॉवेनेर कार्ड, कॉरेस्पांडेंस कार्ड और मेल कार्ड छपा होता था।
अंतर्देशीय पत्र कार्ड
अंतर्देशीय पत्र कार्ड पोस्ट कार्ड से अलग होता है। इसमें संदेश खुले में नहीं लिखा जाता। संदेश को पढ्ने के लिए इसके फ्लैप को खोलना पड्ता है, जबकिपोस्ट कार्ड के मामले में, जिसके हाथ से भी पोस्ट कार्ड गुजरे, वह संदेश पढ् सकता है।
तकनीकी तौर पर अंतर्देशीय पत्र कार्ड एक निश्चित आकार के कागज पर लिखा संदेश होता है, जिसे मोडकर बंद किया जाता है। अंतर्देशीय पत्र कार्ड भारत के अंदर ही प्रेषण के लिए होता है। विदेशों में संदेश भेजने के लिए अधिक लागत का विशेष अंतर्देशीय पत्र कार्ड, जिसे एरोग्राम कहा जाता है, इस्तेमाल किया जाता है।
मलयालम पत्रिका इन्नू पूरी तरह से इस तरह के अंतर्दशीय पत्र कार्ड पर छपती है। इसमें कविताएं, संपादकीय, कार्टूंन, संपादक को पत्र सभी कुछ होता है, जो पूरे आकार की पत्रिका में होते हैं, लेकिन बहुत ही छोटे आकार में छपते हैं।
डाक पत्र विद्या (Deiltology)
डील्टोलॉजी पोस्ट कार्डों के अध्ययन और संग्रहण की विद्या है। ऐशलैंड, ओहियो के प्रोफेसर रैंडल रोडेस ने 1945 में इस शब्द की रचना की, जिसे बाद में चित्र पोस्ट कार्डों के अध्ययन की विद्या के रूप में स्वीकार कर लिया गया।
दुनियाभर में डील्टोलॉजी को डाक टिकट संग्रहण और सिक्का/बैंक नोट संग्रहण के बाद तीसरी सबसे बड़ी हाबी माना जाता है। पोस्ट कार्ड इसलिए लोकप्रिय हैं, क्योंकिलगभग हर समय के चित्र पोस्ट कार्ड पर छपते रहते हैं। पोस्ट कार्डों के जरिए इतिहास की जानकारी हासिल की जा सकती है, जिसमें प्रसिद्ध इमारतों, महत्वपूर्ण व्यक्तियों, विभिन्न कला रूपों और इस तरह के कई विषय मिल जाते हैं।
लेकिन डाक टिकट संग्रह के मुकाबले किसी पोस्ट कार्ड के प्रकाशन और स्थान का समय पता करना लगभग असंभव कार्य है, क्योंकिपोस्ट कार्ड आमतौर पर बहुत अनियमित तरीके से छापे जाते हैं।
इसलिए कई संग्रहकर्ता केवल ऐसे कार्डों का ही संग्रह करते हैं जो किसी विशिष्ट कलाकार और प्रकाशन या समय और स्थान से संबंधित हों।
इस डाक पत्र विद्या का सबसे अधिक लोकप्रिय पक्ष शहरों के दृश्यों से संबंधित है इनमें किसी शहर या क्षेत्र के वास्तविक चित्र होते हैं। अधिकतर संग्रहकर्ता केवल ऐसे शहर के पोस्ट कार्ड इकट्ठे करते हैं, जहां वे रहते हैं या जहां वे पले-बढ़े हैं।
पोस्ट कार्ड संग्रह का संरक्षण- कुछ जरूरी बातें
· पोस्ट कार्डों के सबसे बड़े शत्रु हैं आग, नमी, धूल मिट्टी, धूप और कीड़े। सबसे अच्छा यही होगा है किआप अपने संग्रह को किसी बॉक्स में रखें, जो ठंडा और सूखा हो।
· प्लास्टिक वाले एलबम का प्रयोग न करें। पीवीसी से पुराने कागज को कुछ समय बाद रासायनिक क्रिया से नुकसान पहुंचता है।
· यदिप्रदर्शनी के उद्देश्य से अलग-अलग पोस्ट कार्डों का विवरण दर्ज करना है, तो ध्यान रखें कि इसके लिए पेंसिल का इस्तेमाल करें। प्रदर्शनी के बोर्ड पर पोस्ट कार्ड को चिपकाने के लिए टेप या इस तरह की कोई चीज इस्तेमाल न करें।
· जब पुराने पोस्ट कार्डों का प्रदर्शन किया जाए तो इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए किवे सीधे धूप के सामने न हों। [पीआईबी] 27-फरवरी-2012 15:44 IST
(पत्र सूचना कार्यालय विशेष लेख)* सहायक निदेशक, पत्र सूचना कार्यालय, मदुरई
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