जंगल से आती हुई ललकार मत लिखो
इस नज्म को पोस्ट किया था जाने मने गांधीवादी हिमांशु कुमार ने. वही हिमांशु जो कहते हैं,"मैं सदैव एक योद्धा रहा हूं ! तो एक लड़ाई और सही ! इसे मैं जीवन की अंतिम और सर्वश्रेष्ठ लड़ाई की तरह लडूंगा !...I was always a fighter, so let there be another fight, the last and the best. उनकी इस काव्य रचना को नरिंदर कुमार जीत ने दोबारा पाठकों के सामने रखा और बहुत ही तेज़ी से लोक्प्रिय्हो रही यह रचना अब आपके सामने भी है.आपको यह नज्म कैसी लगी अवश्य बताएं. आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी.--रेक्टर कथूरिया
अक्लमंद हो तो क्या लिखो ?
रूप, रंग, गंध लिखो
मन की उडान हो गई जो स्वच्छंद लिखो
तितली लिखो, फूल लिखो,
रेशम लिखो, प्रेम लिखो,
जो भी लिखो,
प्रशंसा, पैसा और सम्मान के जरूरतमंद लिखो,
चमक लिखो, दमक लिखो,
ठसक और खनक लिखो,
देश, विश्व, सत्ता के बदलते समीकरण लिखो,
अच्छा लिखो, नफीस लिखो,
ऊँचा लिखो, दमकदार लिखो,
जिनकी पढ़ने की हैसियत है,
उनकी हैसियत के अनुसार लिखो,
मुख्य धारा लिखो, बिकने वाला लिखो,
शोहरत वाला लिखो, चर्चा लायक लिखो,
छप्पर मत लिखो, साथ में नाला मत लिखो,
खून मत लिखो, भूख मत लिखो,
सडती हुई लाश पर मंडराते चील, कौवे मत लिखो,
औरत की कोख में ठूंसे गये पत्थर बिल्कुल मत लिखो,
दिवानों, पागलों और सनकियों की बात मत लिखो,
देश मत लिखो, समाज मत लिखो,
गांव मत लिखो, गरीब मत लिखो,
विकास लिखो, खनिज लिखो,
हवाई अड्डा और होर्डिंग लिखो,
ए.सी. लिखो, कार लिखो, स्काच लिखो,
सेंट लिखो, लड़की लिखो,
पैसा लिखो, मंत्री लिखो,
साहब लिखो, फाइल क्लियर लिखो,
जली हुई झोंपड़ी, लूटी हुई इज्जत, मरा हुआ बच्चा
पिटा हुआ बुढा बिल्कुल मत लिखो,
पुलिस की मार, फटा हुआ ब्लाउज ,
पेट चीरी हुई लड़की की लाश मत लिखो,
महुआ मत लिखो, मडई मत लिखो,
नाच मत लिखो, ढोल मत लिखो,
लाल आँख मत लिखो, तनी मुट्ठी मत लिखो
जंगल से आती हुई ललकार मत लिखो,
अन्याय मत लिखो, प्रतिकार मत लिखो,
सहने की शक्ति का खात्मा और बगावत मत लिखो,
क्रान्ति मत लिखो, नया समाज मत लिखो,
संघर्ष मत लिखो, आत्मसम्मान मत लिखो,
लाईन है खींची हुई, अक्लमंद और पागलों में,
अक्लमंद लिखो , पागल मत लिखो
Posted by हिमाँशु कुमार at 9:47 PM
इस नज्म को पोस्ट किया था जाने मने गांधीवादी हिमांशु कुमार ने. वही हिमांशु जो कहते हैं,"मैं सदैव एक योद्धा रहा हूं ! तो एक लड़ाई और सही ! इसे मैं जीवन की अंतिम और सर्वश्रेष्ठ लड़ाई की तरह लडूंगा !...I was always a fighter, so let there be another fight, the last and the best. उनकी इस काव्य रचना को नरिंदर कुमार जीत ने दोबारा पाठकों के सामने रखा और बहुत ही तेज़ी से लोक्प्रिय्हो रही यह रचना अब आपके सामने भी है.आपको यह नज्म कैसी लगी अवश्य बताएं. आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी.--रेक्टर कथूरिया
अक्लमंद हो तो क्या लिखो ?
रूप, रंग, गंध लिखो
मन की उडान हो गई जो स्वच्छंद लिखो
तितली लिखो, फूल लिखो,
रेशम लिखो, प्रेम लिखो,
जो भी लिखो,
प्रशंसा, पैसा और सम्मान के जरूरतमंद लिखो,
चमक लिखो, दमक लिखो,
ठसक और खनक लिखो,
देश, विश्व, सत्ता के बदलते समीकरण लिखो,
अच्छा लिखो, नफीस लिखो,
ऊँचा लिखो, दमकदार लिखो,
जिनकी पढ़ने की हैसियत है,
उनकी हैसियत के अनुसार लिखो,
मुख्य धारा लिखो, बिकने वाला लिखो,
शोहरत वाला लिखो, चर्चा लायक लिखो,
छप्पर मत लिखो, साथ में नाला मत लिखो,
खून मत लिखो, भूख मत लिखो,
सडती हुई लाश पर मंडराते चील, कौवे मत लिखो,
औरत की कोख में ठूंसे गये पत्थर बिल्कुल मत लिखो,
दिवानों, पागलों और सनकियों की बात मत लिखो,
देश मत लिखो, समाज मत लिखो,
गांव मत लिखो, गरीब मत लिखो,
विकास लिखो, खनिज लिखो,
हवाई अड्डा और होर्डिंग लिखो,
ए.सी. लिखो, कार लिखो, स्काच लिखो,
सेंट लिखो, लड़की लिखो,
पैसा लिखो, मंत्री लिखो,
साहब लिखो, फाइल क्लियर लिखो,
जली हुई झोंपड़ी, लूटी हुई इज्जत, मरा हुआ बच्चा
पिटा हुआ बुढा बिल्कुल मत लिखो,
पुलिस की मार, फटा हुआ ब्लाउज ,
पेट चीरी हुई लड़की की लाश मत लिखो,
महुआ मत लिखो, मडई मत लिखो,
नाच मत लिखो, ढोल मत लिखो,
लाल आँख मत लिखो, तनी मुट्ठी मत लिखो
जंगल से आती हुई ललकार मत लिखो,
अन्याय मत लिखो, प्रतिकार मत लिखो,
सहने की शक्ति का खात्मा और बगावत मत लिखो,
क्रान्ति मत लिखो, नया समाज मत लिखो,
संघर्ष मत लिखो, आत्मसम्मान मत लिखो,
लाईन है खींची हुई, अक्लमंद और पागलों में,
अक्लमंद लिखो , पागल मत लिखो
Posted by हिमाँशु कुमार at 9:47 PM
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