15 फरवरी तक चलेगा 26वां सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेला
परंपरा, विरासत और संस्कृति के अद्भुत समन्वय के साथ-साथ माटी की महक सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले की पहचान है। 26वां सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला आज से शुरू हुआ है और 15 फरवरी तक चलेगा।
* अशोक कुमार
तस्वीर हरियाणा सरकार के पर्यटन विभाग से साभार |
सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेले में असम दूसरी बार थीम राज्य के रूप में भाग ले रहा है। पूर्वोत्तर भारत के अन्य सहयोगी राज्यों के साथ मिलकर असम वर्ष 1998 में थीम राज्य के रूप में पहले भी भाग ले चुका है। असम की 13वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व की पुरानी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत इसे 26वें सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेले के थीम राज्य के लिये सर्वाधिक उपयुक्त बनाती है। असम के विविध रंगों, रीति-रिवाजों और रंग-सज्जा को प्रभावी ढंग से दर्शाने के लिये रंग घर की प्रतिकृति को सुरूचिपूर्ण ढंग से स्थापित किया गया है। थीम राज्य के मंडप के सामने बांसों से विशेष रूप से असम का अपना घर बनाया गया है, जिसमें असम का एक परिवार इसमें पूरे 15 दिन तक रहेगा ताकि मेला देखने आये दर्शक असम की रहन-सहन की शैली की झलक देख सकें। भारत की विरासत में असम राज्य का महत्वपूर्ण योगदान है और यह संस्कृति और परपराओं को गहराई से आत्मसात किये हुये है, जिसे इस वर्ष मेले में प्रभावी ढंग से प्रदर्शित किया जायेगा और दर्शक असम की हस्तशिल्प व हथकरघा वस्तुओं, संस्कृति और व्यंजनों के बारे में जान सकेंगे।
भागीदार देश के नाते थाईलैंड की हिस्सेदारी इस मेले को अंतर्राष्ट्रीय रंग देगी और भारतीय तथा थाई विरासत के समन्वय से यह और समृद्ध होगा। भारत सरकार की ओर से फैसला किया गया है कि जिस देश का राष्ट्राध्यक्ष नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस समारोह में मुय अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जायेगा, वही सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेले का भागीदार देश होगा। इस मेले में पहली बार सार्क संगठन के सभी सदस्य देश एक मंच पर होगे। भागीदार देश थाईलैंड और सार्क के सदस्य देश-नेपाल, भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान, बगांलदेश, मालदीव व अफगानिस्तान के अलावा यूरेशिया के देश - उज्जबेकिस्तान, तजाकिस्तान , किर्गिस्तान और दक्षिण अफ्रीकी देश कांगो मेले में अपनी कलाओं और शिल्पों से समोहन का प्रभाव पैदा करेंगे। भारत तथा अन्य देशों के 700 से अधिक शिल्पी, जिनमें अधिकतर राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुस्कार विजेता है, 15दिन के इस मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज करायेंगे।
सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेला एक ही स्थान पर भारतीय कला, संस्कृति और संगीत की समृद्ध परंपरा भी प्रस्तुत करने में अग्रणी रहा है। मेले का उद्देश्य भारत के परपरागत रीति-रिवाजों को कायम रखना है और यह दर्शकों की सांस्कृतिक समझ को बढ़ाने में सहायक है। पूरा माहौल,प्रस्तुत संगीत और मेला मैदान में बिक रहे तरह-तरह के उत्पाद एक लघु भारत होने का एहसास कराते हैं। दोनों चौपालों पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम हर शाम नाट्यशाला की प्रस्तुतियां हमारी संस्कृति की मधुरता को प्रद्शित करती हैं। इस माहौल को खासतौर पर मेले की थीम के अनुरूप बनाया गया है। इसलिये मेले में आने वाले लोगो को आनंद का एहसास होता है। यह मेला न केवल दुनिया की हलचल से दूर एक आदर्श जगह है, बल्कि कलाकारों, फैशन डिजाइनरों और व्यंजन प्रेमियों के लिये एक स्वर्ग है।
सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेला सैंकड़ों शिल्पियों के लिये रोजी-रोटी कमाने का एक अच्छा विकल्प बन गया है। अपनी कला और शिल्प के राष्ट्रीय मंच के प्रदर्शन से अन्य रास्ते भी खुलते हैं। इसलिये वे अपनी कलाओं और शिल्पों के बेहतरीन नमूने लाते हैं और उन्हें मेले में प्रदर्शित करते हैं। मेले से नियार्तकों और खरीददारों को वार्षिक मिलन का भी अवसर मिलता है। यहां किसी विचौलिये के बिना शिल्पकार और निर्यातक आमने-सामने होते हैं। इससे शिल्पकारों को अपनी कला क्षेत्र का विस्तार करने और उसमें सुधार करने का सीधा मौका मिलता है।
सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेले ने पिछले 26 वर्षों में भारतीय पयर्टन के मानचित्र पर अपनी विशेष पहचान दर्ज की है। मेले में मोहक संस्कृति, प्राचीन शिल्पों और परपराओं तथा विरासत की झलक मिलती है, जो अपनी क्षमता से इतिहास बन गई है। इस मेले की लोकप्रियता का अन्दाज इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले वर्षों में अनेक जानी-मानी हस्तियों ने इसका उद्घाटन किया, जिनमें यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, केन्द्रीय मंत्री श्री प्रणब मुखर्जी, भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, उपराष्ट्रपति श्री मोहमद हामिद अन्सारी और केन्द्रीय पर्यटन मंत्री श्री सुबोध कांत सहाय शामिल हैं, जिन्होंने ने क्रमश: वर्ष 2007, 2008, 2009, 2010 और 2011 में मेले का उद्घाटन किया।
मुख्य रूप से केन्दीय पर्यटन मंत्रालय के तत्वावधान में आयोजित यह मेला वास्तव में विभिन्न एजेंसियों-हस्तशिल्प और हथकरघा के विकास आयुक्तों और संस्कृति तथा विदेश मंत्रालयों के सामूहिक और एकजुट प्रयासों का फल है। हरियाणा पर्यटन और थीम राज्य असम के पर्यटन विभाग नें संयुक्त रूप से मेले का आयोजन किया है और प्रबन्धों में सम्रवय रख रहे हैं। भारतीय कला, संस्कृति और परपराओं के 15 दिन के इस महोत्सव के लिये देश भर के सर्वश्रेष्ठ शिल्पी और लोक कलाकार अपने उत्पादों तथा कला-कौशल के साथ यहां आते हैं। यह मेला पर्यटन उद्योग के दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में वर्ष भर होने वाली गतिविधियों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण मेला है। पिछले वर्ष इस मेले को 8 लाख लोगों ने देखा और इस वर्ष यह संख्या और भी अधिक रहने की संभावना है।
सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेला वर्ष 1987 में शरू हुआ था लेकिन किसी एक राज्य / केन्द्र शासित प्रदेश को थीम राज्य के रूप में शामिल करने का सिलसिला वर्ष 1989 में शुरू हुआ था। 1989 के बाद से एक राज्य को हर साल मेले के थीम राज्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। थीम राज्य को मेला मैदान में एक यादगार ढांचा / द्वार का निर्माण करना होता है। सभी थीम राज्यों की प्रतिकृतियां सूरजकुण्ड मेले के मैदान में स्थापित की गई हैं, जिनसे भारत की विविधता परिलक्षित होती है। इस बार मेले का भागीदार देश थाईलैंड है और वह अपनी अदभुत सज्जा से मेले में अपना रंग भर रहा है। इस वर्ष तीस एकड़ भूमि में लगभग 600 कुटीर बनाये गये हैं। जिला प्रशासन की सहायता से सुरक्षा, अग्नि शमन और यातायात के व्यापक प्रबन्ध किये गये हंै। एक स्थल पर फूड कोर्ट बनाया गया है, जहां तरह-तरह के व्यंजन और अल्प आहार उपलब्ध होंगे। अच्छे और बढिय़ा अल्प आहार प्रस्तुत करने के लिये फूड स्टाल फरीदाबाद, कुरूक्षेत्र और पानीपत के सरकारी होटल प्रबन्धन संस्थानों द्वारा स्थापित किये गये हैं। थीम राज्य असम और भागीदार राष्ट्र थाईलैंड भी फूड कोर्ट में अपने व्यंजन प्रस्तुत करेंगे।
दर्शक दोनों चौपालों और नाट्यशाला में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद उठा सकते हैं। सांस्कृतिक दलों का चयन सूरजकुण्ड मेला प्राधिकरण, थीम राज्य असम और हरियाणा के सांस्कृतिक कार्य विभाग द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। इसके अतिरिक्त तजाकिस्तान,उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और कांगो ने भी सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने की पुष्टि की है, जिनमें 500 से अधिक कलाकार न केवल दर्शकों का मनोरंजन करेंगे बल्कि मेले की रौनक बढ़ायेंगे।
मेला स्थल - सूरजकुण्ड
सूरजकुण्ड का इतिहास बहुत पुराना है। इस स्थान की सुन्दरता से आकर्षित होकर राजा सूरजपाल ने यहां अपना गढ़ बनाया और यहां पर एक सूर्य मंदिर तथा सूर्य सरोवर की स्थापना की। समय के साथ मंदिर अब नष्ट हो चुका है, लेकिन सूर्य सरोवर के अवशेष अभी भी नजर आते हैं। इसी सूर्य सरोवर के नाम से इस स्थान को सूरजकुण्ड नाम दिया गया। सूर्य सरोवर के स्थल को केन्द्र में रखकर चारों ओर कई पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया है। मंदिर के अवशेषों के पास होटल राजहंस बनाया गया है। सूर्य सरोवर और मेला मैदान के बीच नाट्यशाला है। सूरजकुण्ड दक्षिण दिल्ली से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और दिल्ली के मुय स्थलों से यहां पहुंचने के लिये वाहन उपलब्ध हैं ।
थीम राज्य असम
पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्य असम को बहा्रा के पुुत्र यानि बहा्रपुत्र का आवास माना जाता है। यहां की अपनी समृद्ध विरासत है। चाय यहां का सबसे बड़ा उद्योग है। असम को पट्रोलियम घाटी के रूप में भी जाना जाता है।
असम की शिल्प कलाओं में असम की घंटे की धातु का महत्पूर्ण स्थान है। बेंत और बांस के शिल्प उत्पाद घर-घर में तैयार होते हैं। असम की नाट्य कला अनूठी है। असम को भारतीय वास्तुशिल्प की कला दीर्घा भी कहा जाता है। बड़ी संया में यहां की आदिवासी जातियों के लोग तरह-तरह के हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पाद तैयार करते हैं, जिनमें उनकी संस्कृति की झलक मिलती है। असम के त्यौहारों में भोगाली बिहू , रोंगाली बिहू, जन्माष्टमी और दुर्गा पूजा के त्यौहार प्रमुख हैं। रोंगाली बिहू प्रमुख बिहू त्यौहार है, जो अप्रैल के महीने में मनाया जाता है।
मेले में दर्शकों के प्रवेश के लिये 50 रूपये का टिकट रखा गया है। विकलांगों, भूतपूर्व सैनिकों, कार्यरत सैनिकों और वरिष्ठ नागरिकों के लिये टिकट में 50 प्रतिशत की छूट दी गई है। स्वतंत्रता सेनानियों के लिये प्रवेश निशुल्क है। शनिवार, रविवार और राजपत्रित अवकाश के दिनों को छोड़ कर मेले में स्कूल के बच्चे यदि स्कूल के माध्यम से स्कूल यूनिफार्म में आते हैं, तो उन्हें निशुल्क प्रवेश मिलेगा। टिकटें आन-लाईन और ऑफ लाईन ई-टिकटिंग के जरिये भी उपलब्ध हैं। (01-फरवरी-2012) {पत्र सूचना कार्यालय}
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* लेखक हरियाणा भवन में सूचना, जनसंपर्क एवं सांस्कृतिक मामलों के उपनिदेशक हैं।
1 comment:
बहुत सुन्दर सार्थक रचना। धन्यवाद।
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