किस विभाग की लापरवाही से हुआ ये अनाधिकृत निर्माण?
मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में "मकान" की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है ! हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि सिर ढकने के लिए एक छत अर्थात उसका " अपना आशियाना " हो जहां उसका परिवार प्रफ्फुलित एवं पल्लवित हो और इसी की जद्दोजेहद में मनुष्य अपने जीवन की अधिकतम आयु लगा देता है , परन्तु जब यही आशियाना चाहे कारण कोई भी हो उसके अपनों की जान पर बन आये तो स्वाभाविकतः वह टूट जायेगा ! कुछ ऐसा ही हादसा वेस्ट दिल्ली के उत्तम नगर में रहने वाले गगन पाठक के परिवार के साथ हुआ ! गौरतलब है कि शनिवार (2 दिसंबर , 2011 ) की सुबह अचानक चार मंजिला मकान के भरभराकर गिर जाने से लगभग चार लोग मौत की नींद में सो गए जिसमे से तीन लोग ( माँ , पत्नी और बेटी ) तो गगन पाठक के परिवार के ही थे, और लगभग दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए ! ललिता पार्क ( 15 नवम्बर, 2011 , पूर्वी दिल्ली ) और चांदनी महल ( 27 सितम्बर, 2011 , दरिया गंज ) के बिल्डिंग - हादसों के बाद यह तीसरा बड़ा हादसा था ! अब फिर से वही सरकार का स्क्रिपटिड ड्रामा शुरू हो जायेगा नेताओं का दौरा होगा , मृतकों के परिजनों से हमदर्दी, मुआवजे का ऐलान, विजिलेंस जांच के आदेश, इंजिनियरों का सस्पेंशन, दोषियों को कड़ी सजा का आश्वासन और भविष्य में ऐसी घटना न होने देने का संकल्प आदि - आदि !
एम्.सी.डी की वेबसाइड पर जारी सूची के अनुसार 27 मई 2010 से लेकर 2 दिसंबर 2011 तक लगभग 190 ऐसी कॉलोनियां है जो कि अनधिकृत रूप से बनायीं गयी हैं ! दिल्ली जो कि भारत की राजधानी है , अगर फिर भी अनाधिकृत कौलिनायों का निर्माण हुआ है / हो रहा है , यह इतना मत्वपूर्ण विषय नहीं है , असली मुद्दा यह है कि किस विभाग की लापरवाही से ये अनाधिकृत निर्माण हुआ है / हो रहा है ? लोगों का तर्क है कि एमसीडी नक्शा पास नहीं करती पर हमें तो रहने के लिए मकान चाहिए , इसलिए हमें रिश्वत देने से भी कोई परहेज नहीं है ! वही एमसीडी का कहना है कि हमने कड़े नियम बनाए हैं लेकिन पुलिस इस व्यवस्था को घूस लेकर खराब कर रही है ! हम तो अवैध निर्माण गिराना चाहते हैं लेकिन पुलिस हमारा साथ ही नहीं देती ! अगर पीडब्ल्यूडी या डीडीए की कमी से कहीं अवैध निर्माण हुआ है तो झट से एमसीडी में सत्तारूढ़ बीजेपी के नेता कांग्रेस - सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं परन्तु अगर इससे उल्टा होता है अर्थात ललिता पार्क या चांदनी महल में कोई मकान गिरता है तो फिर दिल्ली सरकार और केंद्र के कांग्रेसी नेता एमसीडी को कठघरे में खड़ा कर देते हैं ! अर्थात लाशों पर भी राजनेता अपनी राजनीति चमकाने से गुरेज नहीं करते !
एक जगह मैंने पढ़ा है कि 1977 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ईस्ट दिल्ली के वेलकम इलाके में सरकारी जमीन पर रातों-रात सैकड़ों झुग्गियां एक साथ बसा दी गईं थी क्योंकि मामला वोट का था ! विरोध करने वाले विरोध करते रह गए वह कॉलोनी वहां हमेशा के लिए बसनी थी और बस गई ! यह तो मात्र एक उदहारण है ! दिल्ली में जाने कितने ऐसे उदहारण मिल जायेंगे , जहां वोट की राजनीति के चलते कॉलोनियां हमेशा के लिए बसा दी जाती है ! ऐसी अवैध कॉलोनियों को बसाना और फिर पास कराना कोई नया काम नहीं है ! इस धंधे में पहले राजनेता उन्हें अपनी जीत के लिए बसाते है फिर उनसे "नोट" लेकर अपना मुआवजा ऐठ लेते है ! ऐसी अवैध कॉलोनियों में बिजली से लेकर पानी तक अर्थात लगभग आवश्यक सारी सुविधाएँ भी मिल ही जाती है ! नोट और वोट का यह ऐसा मिश्रण होता है कि क्या मजाल कोई कुछ बोल दे ! एक बार कॉलोनी बस गई तो बस गई , फिर कोर्ट से लेकर सबके सब बेबस हो जाते हैं हालाँकि हाई कोर्ट ने कुछ साल पहले निर्देश दिया था कि ऐसी कॉलोनियों में किसी प्रकार की कोई नागरिक सुविधाएं न दी जाएं , परन्तु मानवता की आड़ लेकर सब काम हो गया ! कॉलोनियों को सुविधाएं दी गयी और उनके पास कराने का प्रस्ताव भी लाया गया ! और तो और लगभग 1218 कॉलोनियों को तो प्रविजनल सर्टिफिकेट दे दिया गया है !
हमें यहाँ यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ कमियां नियमों में ही हैं जिसके चलते अवैध निर्माण के लिए लोग मजबूर भी हैं ! मसलन दिल्ली में 1958 में जो बिल्डिंग बायलॉज बने थे, आज भी उन्हीं पर अमल किया जाता है , जबकि यहाँ की जनसँख्या अब दुगने से भी ज्यादा हो गयी है ! कुछ कमेटियां जरूर बनीं पर उनकी रिपोर्ट कभी लागू ही नहीं हो पायीं क्योंकि 1977 में 600 से ज्यादा जिन कॉलोनियों को पास किया गया आज तक उनके नक्शे पास नहीं होते क्योंकि बायलॉज इसकी इजाजत नहीं देते ! चांदनी चौक जैसे इलाको में जहां के भवन सैकड़ो वर्ष पहले मिट्टी के ईंट - गारों से बने थे आज उनकी हालत जर्जर हो चुकी है , ऐसे इलाकों के बारे में एक बार अब पुनः सोचना ही होगा ! राजधानी होने के नाते वर्ष भर में लाखों लोग दिल्ली बसने / रोजगार की तलाश में आतें है जिससे सभी प्रकार की व्यवस्था बनाये रखने में दिक्कत तो होगी परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि दिल्ली का प्रशासन और राजनेता हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और लोग मरते रहे ! दिल्ली - पुलिस जिसकी पूरे देश भर में मिशाल दी जाती हो , ऐसे में धडल्ले से अनाधिकृत रूप से निर्माण होना अपने आप में ही प्रश्न चिन्ह तो खड़ा करता ही है ! इन सभी कमियों के बावजूद चाहे वह आम जनता की हो अथवा प्रशासन की सबको नोट और वोट की राजनीति से ऊपर उठकर इस समस्यां का समाधान खोजना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि अब ऐसे बिल्डिंग हादसे दिल्ली में न हो और गगन पाठक जैसा कोई अपना परिवार खोये !
मोबाईल सम्पर्क: 9811558925
मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में "मकान" की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है ! हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि सिर ढकने के लिए एक छत अर्थात उसका " अपना आशियाना " हो जहां उसका परिवार प्रफ्फुलित एवं पल्लवित हो और इसी की जद्दोजेहद में मनुष्य अपने जीवन की अधिकतम आयु लगा देता है , परन्तु जब यही आशियाना चाहे कारण कोई भी हो उसके अपनों की जान पर बन आये तो स्वाभाविकतः वह टूट जायेगा ! कुछ ऐसा ही हादसा वेस्ट दिल्ली के उत्तम नगर में रहने वाले गगन पाठक के परिवार के साथ हुआ ! गौरतलब है कि शनिवार (2 दिसंबर , 2011 ) की सुबह अचानक चार मंजिला मकान के भरभराकर गिर जाने से लगभग चार लोग मौत की नींद में सो गए जिसमे से तीन लोग ( माँ , पत्नी और बेटी ) तो गगन पाठक के परिवार के ही थे, और लगभग दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए ! ललिता पार्क ( 15 नवम्बर, 2011 , पूर्वी दिल्ली ) और चांदनी महल ( 27 सितम्बर, 2011 , दरिया गंज ) के बिल्डिंग - हादसों के बाद यह तीसरा बड़ा हादसा था ! अब फिर से वही सरकार का स्क्रिपटिड ड्रामा शुरू हो जायेगा नेताओं का दौरा होगा , मृतकों के परिजनों से हमदर्दी, मुआवजे का ऐलान, विजिलेंस जांच के आदेश, इंजिनियरों का सस्पेंशन, दोषियों को कड़ी सजा का आश्वासन और भविष्य में ऐसी घटना न होने देने का संकल्प आदि - आदि !
एम्.सी.डी की वेबसाइड पर जारी सूची के अनुसार 27 मई 2010 से लेकर 2 दिसंबर 2011 तक लगभग 190 ऐसी कॉलोनियां है जो कि अनधिकृत रूप से बनायीं गयी हैं ! दिल्ली जो कि भारत की राजधानी है , अगर फिर भी अनाधिकृत कौलिनायों का निर्माण हुआ है / हो रहा है , यह इतना मत्वपूर्ण विषय नहीं है , असली मुद्दा यह है कि किस विभाग की लापरवाही से ये अनाधिकृत निर्माण हुआ है / हो रहा है ? लोगों का तर्क है कि एमसीडी नक्शा पास नहीं करती पर हमें तो रहने के लिए मकान चाहिए , इसलिए हमें रिश्वत देने से भी कोई परहेज नहीं है ! वही एमसीडी का कहना है कि हमने कड़े नियम बनाए हैं लेकिन पुलिस इस व्यवस्था को घूस लेकर खराब कर रही है ! हम तो अवैध निर्माण गिराना चाहते हैं लेकिन पुलिस हमारा साथ ही नहीं देती ! अगर पीडब्ल्यूडी या डीडीए की कमी से कहीं अवैध निर्माण हुआ है तो झट से एमसीडी में सत्तारूढ़ बीजेपी के नेता कांग्रेस - सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं परन्तु अगर इससे उल्टा होता है अर्थात ललिता पार्क या चांदनी महल में कोई मकान गिरता है तो फिर दिल्ली सरकार और केंद्र के कांग्रेसी नेता एमसीडी को कठघरे में खड़ा कर देते हैं ! अर्थात लाशों पर भी राजनेता अपनी राजनीति चमकाने से गुरेज नहीं करते !
एक जगह मैंने पढ़ा है कि 1977 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ईस्ट दिल्ली के वेलकम इलाके में सरकारी जमीन पर रातों-रात सैकड़ों झुग्गियां एक साथ बसा दी गईं थी क्योंकि मामला वोट का था ! विरोध करने वाले विरोध करते रह गए वह कॉलोनी वहां हमेशा के लिए बसनी थी और बस गई ! यह तो मात्र एक उदहारण है ! दिल्ली में जाने कितने ऐसे उदहारण मिल जायेंगे , जहां वोट की राजनीति के चलते कॉलोनियां हमेशा के लिए बसा दी जाती है ! ऐसी अवैध कॉलोनियों को बसाना और फिर पास कराना कोई नया काम नहीं है ! इस धंधे में पहले राजनेता उन्हें अपनी जीत के लिए बसाते है फिर उनसे "नोट" लेकर अपना मुआवजा ऐठ लेते है ! ऐसी अवैध कॉलोनियों में बिजली से लेकर पानी तक अर्थात लगभग आवश्यक सारी सुविधाएँ भी मिल ही जाती है ! नोट और वोट का यह ऐसा मिश्रण होता है कि क्या मजाल कोई कुछ बोल दे ! एक बार कॉलोनी बस गई तो बस गई , फिर कोर्ट से लेकर सबके सब बेबस हो जाते हैं हालाँकि हाई कोर्ट ने कुछ साल पहले निर्देश दिया था कि ऐसी कॉलोनियों में किसी प्रकार की कोई नागरिक सुविधाएं न दी जाएं , परन्तु मानवता की आड़ लेकर सब काम हो गया ! कॉलोनियों को सुविधाएं दी गयी और उनके पास कराने का प्रस्ताव भी लाया गया ! और तो और लगभग 1218 कॉलोनियों को तो प्रविजनल सर्टिफिकेट दे दिया गया है !
राजीव गुप्ता (लेखक) |
मोबाईल सम्पर्क: 9811558925
No comments:
Post a Comment