भारत की आबादी और गरीबी:बहुत सी गलतफहमियां
आज मैं लोर्ड मैकोले के एक महत्वपूर्ण वक्तव्य से इस लेख की शुरुआत कर रहा हूँ जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटेन के नीचले सदन हाउस ऑफ़ कॉमंस में दिया था "I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief " ये वक्तव्य है तो और लम्बा लेकिन मैंने उसके शुरुआती पंक्ति को ही अपने लेख के लिए जरूरी समझा है | मतलब तो आप सब समझ ही गए होंगे, इसलिए मैं सीधे उन शब्दों की ओर आता हूँ जो उसने अपने वक्तव्य में प्रयोग किया है, उसने कहा है कि "मैंने किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं देखा जो भिखारी हो, जो चोर हो"| मतलब ये हुआ कि मैकोले के देश इंग्लॅण्ड में उस समय भिखारी भी थे और चोर भी थे जिस समय भारत में उसे न कोई भिखारी मिला और न ही चोर मिला जब कि उसने संपूर्ण भारत का दौरा किया था और तब बोला था | यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि 1835 में भारत में एक भी भिखारी नहीं है, मतलब ये हुआ कि भारत में गरीबी नहीं है और कोई गरीब भी नहीं है | जब गरीबी नहीं है तो उसे चोरी करने की भी जरूरत नहीं है |
अब मैं 1947 में आता हूँ, अंग्रेजों ने भारत से जाने के पहले एक सर्वे कराया था जिसमे कहा गया था कि भारत में 4 करोड़ लोग गरीब हैं, ये आंकड़े RBI के भी हैं हाला कि उस समय के अर्थशास्त्रियों ने ये कहा था कि "अंग्रेजों ने गलत सर्वे रिपोर्ट दिया है ताकि दुनिया में उनकी बदनामी न हो दरअसल भारत में ज्यादा गरीब हैं" | वो सर्वे सही थी या गलत मैं उसमे नहीं जाना चाहता | प्रथम प्रधानमंत्री ने एक कमीशन बनाया कि गरीबों की सही संख्या पता चल सके तो 1952 में जब देश में पहली पंचवार्षिक योजना लागू हुई तो उस समय उन्होंने बताया कि देश में वास्तविक गरीबों की संख्या 16 करोड़ है | अब मैं यहाँ सीधे 2007 में आता हूँ जब इस देश की संसद में प्रोफ़ेसर अर्जुन सेनगुप्ता की रिपोर्ट पेश हुई | पहले मैं प्रोफ़ेसर अर्जुन सेनगुप्ता के बारे में थोड़ी जानकारी यहाँ दे दूँ | प्रोफ़ेसर अर्जुन सेनगुप्ता दुनिया के जाने माने अर्थशास्त्रियों में गिने जाते थे, भारत सरकार का एक विभाग है योजना आयोग, प्रोफ़ेसर अर्जुन सेनगुप्ता बहुत दिनों तक इस योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे | श्रीमती इंदिरा गाँधी के समय वो लम्बे समय तक भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार भी रहे और पश्चिम बंगाल (अब पश्चिम बंग) सरकार के भी लम्बे समय तक वो आर्थिक सलाहकार रहे, सारी दुनिया के नामी विश्वविद्यालयों में वो उनके बुलावे पर लेक्चर देने जाते थे | तो अर्जुन सेनगुप्ता साहब ने सरकार के कहने पर चार साल के अध्ययन के बाद जो रिपोर्ट दी वो काफी चौंकाने वाली है | उनकी रिपोर्ट के अनुसार भारत की 115 करोड़ की जनसँख्या में 84 करोड़ लोग बहुत गरीब हैं, इतने गरीब हैं ये 84 करोड़ लोग कि उनको एक दिन में खर्च करने के लिए 20 रूपये भी नहीं है और इन 84 करोड़ में से 50 करोड़ ऐसे हैं जिनके पास खर्च करने के लिए 10 रूपये भी नहीं है और इन 84 करोड़ में से 25 करोड़ के पास खर्च करने के लिए 5 रुपया भी नहीं है और बाकी के पास 50 पैसे भी नहीं है खर्च करने के लिए |
जब मैं इस क्षेत्र के विशेषज्ञ लोगों से भारत की इस स्थिति के बारे में पूछता हूँ कि हमारे यहाँ इतनी गरीबी क्यों है, गरीब क्यों हैं, बेकारी क्यों है, भुखमरी क्यों है तो वो कहते हैं कि भारत की गरीबी की मुख्य वजह हमारी बढती हुई जनसँख्या है, जब मैं साधारण लोगों से पूछता हूँ तो वो भी यही जवाब देते है | फिर मैंने इस पर काम किया तो मुझे जो बात समझ में आयी वो मैं आपके सामने रखता हूँ | ..........................1947 में जब हम आज़ाद हुए तो हमारे देश की आबादी 34 करोड़ थी और आज 2011 के जनगणना के मुताबिक हम 120 करोड़ हो गए हैं | 1947 में हमारे देश में अनाज का उत्पादन जो था वो साढ़े चार करोड़ टन था और आज 2011 में यह बढ़कर साढ़े 23 करोड़ टन के आसपास पहुँच गया है | 1947 में भारत में कारखाने बहुत कम थे और कारखानों में होने वाला उत्पादन भी बहुत कम था, उस समय भारत का औद्योगिक उत्पादन एक लाख करोड़ रूपये के आसपास था और आज ये दस लाख करोड़ रूपये के आसपास पहुँच गया है | 1947 में हमारे यहाँ गरीबों की संख्या 4 करोड़ थी अब उस स्तर के गरीबों की संख्या 84 करोड़ हो गयी है मतलब आबादी बढ़ी साढ़े तीन गुना लेकिन गरीब बढ़ गए 21 गुना, बात आप समझ रहे हैं न ? इन 64 सालों में आबादी बढ़ी साढ़े तीन गुनी और गरीब बढ़ गए 21 गुना, ये गरीबों के अनुपात में आबादी के हिसाब से वृद्धि होनी चाहिए थी, मतलब गरीबों की संख्या में भी साढ़े तीन गुनी वृद्धि होनी चाहिए थी, मतलब हमारे देश में आज 2011 मे 14 -15 करोड़ से ज्यादा गरीब नहीं होने चाहिए थे, है न ? और इसी अवधि में अनाज का उत्पादन लगभग छः गुना बढ़ा है, मतलब आबादी बढ़ी साढ़े तीन गुनी और अनाज उत्पादन में वृद्धि हुई छः गुनी, फिर क्यों भुखमरी से मर रहे हैं हमारे देश के लोग ? अगर आबादी बढती पांच गुना और अनाज उत्पादन में वृद्धि होती तीन गुना तो मैं मान लेता कि भुखमरी होने का कारण जायज है | और औद्योगिक उत्पादन में दस गुनी वृद्धि हुई है इन 64 सालों में फिर बेरोजगारों की इतनी बड़ी फ़ौज कैसे खड़ी हो गयी है हमारे देश में ? तो कहीं न कहीं नीतियों के स्तर पर हमारे सरकार से चुक हुई है जो गरीबी, भुखमरी और बेकारी रोकने में असफल रही है | ये जो हमने हमारे मन में बैठा लिया है या हमारे दिमाग में बैठा दिया गया है कि जनसँख्या बढ़ने से गरीबी बढती है या जनसँख्या बढ़ने से बेकारी बढती है या जनसँख्या बढ़ने से भुखमरी बढती है तो ये सिद्धांत ही गलत है |
दुनिया में एक अर्थशास्त्री हुआ माल्थस जिसने ये सिद्धांत दिया था कि जिस देश में जनसँख्या ज्यादा होगी वहां गरीबी ज्यादा होगी, बेकारी ज्यादा होगी | हाला कि उसके इस सिद्धांत को यूरोप के देशों ने ही नकार दिया है लेकिन इस देश का दुर्भाग्य देखिये कि इस देश के लोग वही सिद्धांत पढ़ते हैं और दुसरे लोगों को समझाते हैं | अब इसी सिद्धांत को यूरोप और अमेरिका पर लागू किया जाये तो बिलकुल उलट स्थिति दिखाई देती है, भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जिसकी जनसँख्या बढ़ी है पिछले पचास वर्षों में या सौ वर्षों में | दुनिया के हर देश की जनसँख्या कई गुनी बढ़ी है, अमेरिका की, फ्रांस की, जर्मनी की, जापान की, चीन की, चीन की तो सबसे ज्यादा बढ़ी है | अमेरिका की जनसँख्या पिछले 60 वर्षों में ढाई गुनी बढ़ी है, ब्रिटेन सहित यूरोप की जनसँख्या तो पिछले 60 सालों में तीन गुनी बढ़ी है, लेकिन देखने में आया है कि यूरोप और अमेरिका की आबादी बढ़ी है तीन गुनी और इसी अवधि में उनके यहाँ अमीरी बढ़ गयी है एक हजार गुनी | तो अमेरिका और यूरोप में जनसँख्या बढ़ने से पिछले साठ सालों में अमीरी आती है तो भारत में जनसँख्या बढ़ने से गरीबी क्यों आनी चाहिए और अगर भारत में जनसँख्या बढ़ने से गरीबी आती है तो यूरोप और अमेरिका में भी जनसँख्या बढ़ने से गरीबी आनी चाहिए थी, है ना ? क्योंकि सिद्धांत दुनिया में सर्वमान्य हुआ करते हैं, सिद्धांत कभी किसी देश की सीमाओं में नहीं बंधा करते | अगर सिद्धांत है कि जनसँख्या बढ़ने से गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी बढती है तो जनसँख्या तो दुनिया के तमाम देशों की बढ़ी है लेकिन भारत छोड़ कर बहुत सारे देशों में देखा जा रहा है कि वहां जनसँख्या के साथ-साथ अमीरी बढ़ रही है | आप सुनेंगे तो हैरान हो जायेंगे कि डेनमार्क, नार्वे, स्वेडेन आदि देशों में वहां की सरकारें जनसँख्या बढाने के लिए अभियान चलाती है, बच्चों के पैदा होने से उनके यहाँ नौकरी में प्रोमोशन तय होता है, जिसके जितने ज्यादा बच्चे उनकी उतनी ज्यादा प्रोमोशन | हमारे यहाँ उल्टा क्यों है ? हमारे यहाँ कहा जाता है कि बच्चे कम पैदा करो | अगर ये देश ज्यादा बच्चे पैदा कर के अमीर हो सकते हैं तो भारत ज्यादा बच्चे पैदा कर के अमीर क्यों नहीं हो सकता ? या अगर वो ज्यादा बच्चे पैदा कर के गरीब नहीं हो रहे हैं तो हम क्यों ज्यादा बच्चे पैदा कर के गरीब हो रहे हैं ? ये बड़ा प्रश्न है, जिसको मैं आपके सामने रखना चाहता हूँ और मैं ये इसलिए करना चाहता हूँ कि हमारे मन में बहुत सारी गलतफहमियां बैठी हुई है जनसँख्या को लेकर और गरीबी को लेकर | मैं आपसे निवेदन ये करना चाहता हूँ कि जनसँख्या का किसी भी देश की गरीबी से कुछ लेना-देना नहीं होता है, बेरोजगारी का जनसँख्या से कोई सम्बन्ध नहीं है |
आपको कभी चीन जाने का मौका मिले तो देखिएगा कि चीन की सरकार अपने लोगों को कभी भी अभिशाप नहीं मानती, चीन की सरकार तो ये कहती है कि जितने ज्यादा हाथ उतना ज्यादा उत्पादन और उन्होंने ये सिद्ध कर के दुनिया को दिखाया भी है, तो भारत में ये सिद्धांत कि "जितने ज्यादा हाथ तो उतना ज्यादा उत्पादन" क्यों नहीं चल सकता ? कारण उसका एक है , कारण ये है कि चीन की सरकार ने अपनी सारी व्यवस्था को ऐसे बनाया है जिसमे अधिक से अधिक लोगों को काम मिल सके और भारत सरकार ने अपनी व्यवस्था को ऐसे बनाया है जिसमे कम से कम लोगों को काम मिल सके | बस इतना ही फर्क है | हमारे देश की पूरी की पूरी व्यवस्था, चाहे वो आर्थिक हो , चाहे पूरी कृषि व्यवस्था हो ये आज ऐसे ढांचे में ढाली जा रही है जिसमे कम से कम हाथों को काम मिल सके | हम फंसे हैं यूरोपियन व्यवस्था पर मतलब Mass Production का सिद्धांत हमने अपनाया है और चीन ने सिद्धांत अपनाया है Production By Masses का | हमारे देश के एकमात्र महान राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब ने Nano Technology अपनाने के लिए कहा लेकिन उनकी बात शायद किसी के समझ में नहीं आयी, ये Nano Technology जो है वो यही Production By Masses का Concept है | हमें बड़े नहीं छोटे (Nano) उद्योगों की जरूरत है जिससे हम ज्यादा से ज्यादा लोगो को काम दे सके | हम लोग कम लोगों से ज्यादा उत्पादन लेना चाहते है इसलिए Automisation की बात है, Computerisation की बात है, Centralisation की बात है और चीन में इसका ठीक उलट है, मतलब ज्यादा लोगों द्वारा ज्यादा उत्पादन तो उनके यहाँ Decentralisation की बात है,Labour Intensive Technology की बात है, हमारे यहाँ ठीक उल्टा है, हमारे यहाँ Capital Intensive Technology की बात है | हमारी व्यवस्था गड़बड़ है लोग गड़बड़ नहीं हैं | जनसँख्या हमारी बढ़ गयी है तो इसमें लोगों का कसूर नहीं है, हमारी व्यवस्था निकम्मी और नाकारा है जो बढे हुए लोगों को काम नहीं दे पाते और AC रूम में बैठ के गलियां देते हैं कि ज्यादा लोग पैदा हो गए इस देश में | अगर आप हर हाथ को काम देने की व्यवस्था इस देश में लगायें तो भारत का कोई भी आदमी आपको बेकार बैठा नजर नहीं आएगा | आप जानते हैं कि दुनिया में हर काम हाथ से ही होते हैं, कम्प्यूटर भी हाथों से ही चला करता है, कम्प्यूटर को कम्प्यूटर नहीं चला सकता है कभी भी | कम्प्यूटर चलाने के लिए भी किसी का दिमाग लगता है और किसी के हाथ लगते हैं और इश्वर ने आपको जो दिमाग और हाथ दिया है आप उसी को अभिशाप मान के बैठे हैं तो ये आपके लिए दुर्भाग्य की बात है किसी दुसरे के लिए नहीं | ये हमारी समझ का फेर है, हमारी बुद्धि का फेर है | और इस समझ और बुद्धि का फेर हुआ कैसे है तो वो परदेशों से आने वाला विचार है जिसने हमें उड़ा दिया है एक हवा में | कोई अमेरिका से कह देता है या यूरोप से कह देता है कि भारत को जनसँख्या कम करनी चाहिए तो हम लग जाते हैं जनसँख्या कम करने में | आप हौलैंड जायेंगे तो पाएंगे कि वहां प्रति स्क्वायर किलोमीटर में सबसे ज्यादा लोग रहते हैं, लन्दन और टोकियो जैसे शहर में दुनिया की सबसे घनी आबादी रहती है, लेकिन उनको चिंता नहीं है अपनी आबादी कम करने की, उनके यहाँ आबादी कम करने का कोई कैम्पेन नहीं चला करता, और हम मूर्खो के मुर्ख इसी काम में लगे हैं | हम अपनी अक्ल से, अपने दिमाग से, अपने देश की परिस्थितियों के हिसाब से कभी सोच के नहीं देखते हैं कि हमारे लिए ये ठीक है क्या ? जो वहां से कहा जा रहा है हम उसे ही आँख मूंद के स्वीकार कर ले रहे हैं | भारत में हुआ कुछ ऐसा ही है | आजादी के बाद जो व्यवस्था बनाई गयी है इस व्यवस्था में ज्यादा से ज्यादा लोगों को बेकारी ही मिल सकती है, रोजगार नहीं मिल सकता | भारत की व्यवस्था इस तरह की बनाई गयी है जिसमे ज्यादा से ज्यादा लोगों को गरीबी ही मिल सकती है, अमीरी नहीं मिल सकती और अगर अमीरी मिलेगी भी तो थोड़े लोगों को जो शायद एक प्रतिशत भी नहीं हैं पुरे भारत की आबादी की | हो सकता है भारत में एक करोड़ लोग बहुत अमीर हों लेकिन 99 करोड़ लोगों को आप हमेशा जीवन में संघर्ष करते हुए ही पाएंगे, मुंबई में एक उद्योगपति हैं जो अपनी पत्नी को जन्मदिन के गिफ्ट के रूप में बोईंग विमान दे देते हैं और उसी मुंबई में धारावी के रूप में एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी झोपड़ी भी है, जहाँ 10x10 के रूम में दो पीढियां रहती हैं | व्यवस्था हमारी ऐसी है और ये व्यवस्था हमारी जो ऐसी है जो गरीबी देती है, बेकारी देती है, भुखमरी देती है वो दुर्भाग्य से अंग्रेजों की बनाई हुई है जिसको हमें 1947 में तोड़ देना चाहिए था उसको हम तोड़ नहीं पाए और वही व्यवस्था चलती चली आयी है और उस व्यवस्था के विरोधाभास हमको दिखाई तो देते हैं लेकिन उस व्यवस्था को ठीक करने का रास्ता नहीं दिखाई देता इसलिए हम हमारी जनसँख्या को कोसते रहते हैं, अपने लोगों को कोसते रहते हैं, व्यवस्था की गलती, व्यवस्था की खामी हमको दिखाई देना बंद हो चूकी है, मुश्किल हमारी व्यवस्था में है, लोगों में नहीं | इस लेख को यहीं विराम देता हूँ नहीं तो बोझिल हो जायेगा | अगली बार उस व्यवस्था के बारे में बताऊंगा जो हमारी इस हालत के लिए जिम्मेवार है |
देखिये जब देश की आजादी की लड़ाई चल रही थी तो पूरा भारत उस लड़ाई में नहीं लगा था कुछ लोगों ने उस लड़ाई को लड़ा और हमें आजादी दिलाई थी अब हमें स्वराज्य के लिए लड़ना होगा, स्वराज्य मतलब अपना राज्य, अपनी व्यवस्था, तभी हम सफल हो पाएंगे एक राष्ट्र के रूप में, और आप इसमें पुरे भारत से उम्मीद मत करियेगा कि वो इसमें शामिल हो जायेगा लेकिन हाँ सभी भारतीयों के समर्थन की जरूरत जरूर होगी | और किसी क्रांति के पहले एक वैचारिक क्रांति होती है और मैं अभी उसी वैचारिक क्रांति के लिए ही आपको प्रेरित कर रहा हूँ | वैचारिक क्रांति कैसे होगी ? वैचारिक क्रांति तब होगी जब ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ऐसी बातें पहुंचाई जाये और मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप इस मेल को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएंगे |
पिछली बार के लेख में मैंने अपने नाम के ऊपर "एक भारत स्वाभिमानी" नहीं लिखा तो एक मित्र ने उस ओर मेरा ध्यान आकृष्ट किया था इसलिए इस बार मैं वो सुधार कर ले रहा हूँ |
एक भारत स्वाभिमानी
रवि
1 comment:
बहुत सार्थक लेख| आप को दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ|
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