लुभावने नारों में छुपायी जा रही है जनता की दुर्दशा
यदि मौजूदा आंकड़े ही गलत है तो अगली नीति कैसे ठीक होगी ?
योजना आयोग द्वारा हलफनामे सहित प्रस्तुत यह आकड़े कि कौन गरीबी रेखा से नीचे है और सरकारी सुविधाओं का पात्र हो सकता है ? अत्यंत हास्यास्पद चित्रण खीच रहा है ! इस प्रकार की प्रस्तुति से यह साफ़ तौर से निकल कर सामने आ गया है कि भारतवर्ष में अधिकारीगन देश की जनता के साथ, बजट और भारतीय सुविधाओं की परिकल्पनाओ की गलत तस्वीर प्रस्तुत कर विशवासघात कर रहे है क्योकि यही आधार होता है देश की आने वाली पञ्च वर्षीय योजनाओं का ! यदि हमारे पास मौजूद आकडे ही गलत है तो अगली नीति का निर्धारण कैसे हो सकता है ? यह एक चितनीय विषय है कि महगाई की बढ़ती हुई दरे भारतीयों की मूलभूत सुविधाओं रोटी ,कपड़ा और मकान को निम्नतम किस स्तर पर गरीबी रेखा से नीचे के मानक पर तय कर रहा है ? शिछा और स्वास्थ के प्रश्न की बात ही नहीं उठती है क्योकि जब तन पर कपड़ा न हो पेट भर भोजन न हो और सर छुपाने के लिए छत नहो तो शिछा और स्वास्थ भी अभिजात्य वर्ग की वस्तुए मानी जायेगी !हम बड़ी-बड़ी समस्याओं पर आन्दोलन करते है और उपवास कर रहे है कि "विदेशो से काला धन वापस लाओ", "भ्रष्टाचार मिटाओ अन्ना हम तुम्हारे साथ है" "पर्यावरण प्रदूषण समाप्त हो " आदि-आदि ! कभी क्या यह आन्दोलन नहीं होना चाहिए कि "प्रजातात्रिक गणराज्य में जो लोग इस तरह से अरबो रुपये तनखाह में लेते है ,सरकारी अधिकारी और नेता जो मनमाने तरीको से भारतीय पूजी का दुरूपयोग बेरोक टोक करते है उन्हें फासी दो !" क्यों कि यही लोग भारतीय पूजी में दीमक की तरह व्याप्त है और विकास की गति को अवरुद्ध कर रहे है ! समयबद्ध तरीके कभी कोइ योजना पूरी नहीं होती है परन्तु दोषी अधिकारियों को न तो छाता जाता है और न ही कोइ दंड का प्रावधान है,धीरे से बज़ट बढ़ा दिया जाता है ! जैसा कि कामन वैल्थ गेम्स में हुआ ! यही योजना आयोग का देश के साथ और इसकी १-२५ अरब आबादी के साथ क्रूर मज़ाक है कि उसने गरीबी रेखा के मानक हां अचम्भित करने वाले तय कर दिए है!
यदि मौजूदा आंकड़े ही गलत है तो अगली नीति कैसे ठीक होगी ?
खबर की कतरन पंजाब केसरी से साभार |
बोधिसत्व कस्तूरिया
२०२ नीरव निकुंज सिकंदरा
आगरा 282007
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