किस्मत की बात सच तो नित साधना ये कैसी? //श्यामल सुमन
मगर आँख में नीर है
कंचन चमक शरीर है
मगर आँख में नीर है
जिसकी चाहत वही दूर में
कैसी यह तकदीर है
मिल न पाते मिलकर के भी
किया लाख तदबीर है
लोक लाज की मजबूती से
हाथों में जंजीर है
दिल की बातें कहना मुश्किल
परम्परा शमसीर है
प्रेम परस्पर न हो दिल में
व्यर्थ सभी तकरीर है
पी कर दर्द खुशी चेहरे पर
यही सुमन तस्वीर है
सम्वेदना ये कैसी?
सब जानते प्रभु तो है प्रार्थना ये कैसी?
किस्मत की बात सच तो नित साधना ये कैसी?
जितनी भी प्रार्थनाएं इक माँग-पत्र जैसा
यदि फर्ज को निभाते फिर वन्दना ये कैसी?
हम हैं तभी तो तुम हो रौनक तुम्हारे दर पे
चढ़ते हैं क्यों चढ़ावा नित कामना ये कैसी?
होती जहाँ पे पूजा हैं मैकदे भी रौशन
दोनों में इक सही तो अवमानना ये कैसी?
मरते हैं भूखे कितने कोई खा के मर रहा है
सब कुछ तुम्हारे वश में सम्वेदना ये कैसी?
बाजार और प्रभु का दरबार एक जैसा
बस खेल मुनाफे का दुर्भावना ये कैसी?
जहाँ प्रेम हो परस्पर क्यों डर से होती पूजा
संवाद सुमन उनसे सम्भावना ये कैसी?
आप श्यामल सुमन की बहुत सी रचनायें यहाँ क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं
मगर आँख में नीर है
कंचन चमक शरीर है
मगर आँख में नीर है
जिसकी चाहत वही दूर में
कैसी यह तकदीर है
मिल न पाते मिलकर के भी
किया लाख तदबीर है
लोक लाज की मजबूती से
हाथों में जंजीर है
दिल की बातें कहना मुश्किल
परम्परा शमसीर है
प्रेम परस्पर न हो दिल में
व्यर्थ सभी तकरीर है
पी कर दर्द खुशी चेहरे पर
यही सुमन तस्वीर है
सम्वेदना ये कैसी?
सब जानते प्रभु तो है प्रार्थना ये कैसी?
किस्मत की बात सच तो नित साधना ये कैसी?
जितनी भी प्रार्थनाएं इक माँग-पत्र जैसा
यदि फर्ज को निभाते फिर वन्दना ये कैसी?
हम हैं तभी तो तुम हो रौनक तुम्हारे दर पे
चढ़ते हैं क्यों चढ़ावा नित कामना ये कैसी?
होती जहाँ पे पूजा हैं मैकदे भी रौशन
दोनों में इक सही तो अवमानना ये कैसी?
मरते हैं भूखे कितने कोई खा के मर रहा है
सब कुछ तुम्हारे वश में सम्वेदना ये कैसी?
बाजार और प्रभु का दरबार एक जैसा
बस खेल मुनाफे का दुर्भावना ये कैसी?
जहाँ प्रेम हो परस्पर क्यों डर से होती पूजा
संवाद सुमन उनसे सम्भावना ये कैसी?
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1 comment:
बहुत सुन्दर शब्द रचना| धन्यवाद|
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