Saturday, June 04, 2011

खरबूज़ा :मानसेंटो की ताज़ा इन्वेंशन: पेटेंट भी मिल गया :

चित्र एक्टिविस्ट पोस्ट से साभार
है न ये अजीब खबर ...
हो सकता है आपको न लगे !
खरबूज़ा तो विशुद्ध भारतीय ,खरबूज़ा "अमरीकी आविष्कार" कैसे, क्यों और कब ?
क्योंकि अपने देश में हम कुछ भी खा लेते हैं..और सिर्फ जीने भर के लिए खाते मरते हुए अपनी "चोय्सिज़" तक को नहीं पड़तालते!
बहरहाल ताज़ा खबर है की ज़हरीली खाद, बीज आदि आदि की दानव कम्पनी मानसेंटो ने हाल ही में यूरोप में "खरबूज़े" को अपनी इन्वेंशन (आविष्कार) बता कर इसका पेटेंट भी ले लिया है (मई 2011 , पेटेंट नम्बर EP 1962  578 ) जिसका विराध किया जा रहा यूरोप में
(हमने नहीं करना)! 
विशेषज्ञों का मानना है की "खरबूज़ा मूलत भारतीय "बीज / पौधा" है तथा इसका "ओरिजिनल" बीज भारत में पनपा , विकसित हुआ तो अमरीकी कम्पनी मानसेंटो का ये "दावा" सिरे से ख़ारिज किया जाना चाहिए क्योंकि ये बायो-पायरेसी (वनस्पति-लूट खसोट) का मामला है",
ध्यान रहे की ये विरोध यूरोपियन किसान , संस्थाएं कर रही हैं ! हम नहीं ! आने वाले दिनों में मुझे यकीन हैं की मेरी प्रिय मित्र वंदना शिवा (एक बार फिर उधर दौड़ लगाने वाली हैं , ऐसा आभास उनसे हुई बातचीत से लगा !(वंदना शिवा , जिन्होंने बासमती, हल्दी, नीम को अमरीकी पेटेंट मिलने से दशकों पहले बचाया) !
ऐसी फ़िक्रों / चिंताओं में हम कहाँ हैं ? देखें जरा ?
क्या आप पपीता , खरबूजा नहीं खाते ?
क्या आप टमाटर बैंगन नहीं खाते ?
तो आपने देखा नहीं की खरबूज़े में, पपीते में से कितने सारे "बीज" निकला करते थे ! हमारी दादियाँ, नानियाँ उनको निकाला करती, अपनी पोटली में संभाला करतीं जब जब हम उनके पास जाते उन स्वादिष्ट लगते बीजों से हमारे मूंह भर देतीं ( भई मेरी तो करती थीं ), खरबूज़े के बीज तो काफी महंगे बिका करते बाज़ार में (आपने कब खरीदे) ?
और वो पपीते ... काले काले बीजों से भरे रहते ,
इस सबके अंदर रहते वो बीज कहाँ चले गये ?
इन बीजों को हम अगले साल के लिए, अगली फसलों के लिए संभाल लेते या खाने के बाद फेंक देते ताकि वो फिर से उग आयें ...नहीं क्या ?
क्यों आप पपीता या खरबूज़ा खाते हुए इन बीजों की एब्सेंस (न-मौजूदगी) को मिस नहीं करते ?
पपीता एक घर, खरबूज़ा एक घर जिसमे बच्चा-बीज रहते (थे) ... आपका घर मेरा घर जिसमे बच्चे रहते (हैं)
आप घर में बच्चों को मिस करते हैं ना  ..... तो इन बच्चों को क्यों मिस नहीं करते ?
क्या ये सब किसी कविता कहानी के विषय नहीं हो सकते (मार्केज़ ने तो अमरूदों पर, उसके बीजों तक पर विख्यात कहानी लिखी )!
और फिर आपको आजकल एक दम लाल, सारे के सारे लाल टमाटर देख कर कुछ आश्चर्य नहीं होता ? कि ये सारे के सारे लाल क्यों ?
कैसे हो गये एक जैसे लाल, प्रकृति भी ऐसा नहीं कर पाती, दो गुलाब भी एक से लाल नहीं कर पाती !
ये कम्पनी इसके जैसी अन्य कम्पनियां मेरे आपके देश में, वनस्पति, पानियों और आब-ओ-हवा में ज़हर ला रहीं  भर रहीं, जो आपकी मनपसंद बन चुकी कोक-पेप्सी-पिज्जा से ज्यादा भयंकर !
कोशिश कीजिये कि वही पपीते खरबूज़े खाइए जिनमे खूब सारे बीज हैं
अपनी कोलोनी में , अपने घर में इन बीजों का "सीड - बैंक" बना लीजिये ...आपके पास यदि ज़मीन का कोई प्लाट-वलाट है तो वहां उगा दीजिये , संभल जायेंगे !
लाल लाल टमाटरों को मत खरीदिये ...देसी टमाटर चार छे बार लेकर उनके बीजों को अपनी छत्त, बालकोनी के गमलों में सुरक्षित कर सकते हैं आप ,
ये भी कविताएँ और कहानियां हैं जिनको आप अगली जेनेरेशन को दे कर जा सकते हैं !
मुझे यकीन है कि जो मैं कर सकता हूँ, आप मुझ से बेहतर ज़रूर कर सकते हैं, अपने पैशन के साथ !
(याद रखें कि दो दिन पहले ही निर्मल पानेरी भाई ने खबर दी कि खीरे खाने से सौ से ज्यादा लोग मर गये, और इससे कहीं ज्यादा बीमार )!
डा.एर्नेस्ट  अल्बर्ट 
आप यहाँ भी मिल सकते हैं डाक्टर एर्नेस्ट से बस क्लिक करके .....

1 comment:

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

खरबूजे के बीज वाली बात मुझे भी याद है