ये सत्ता हो गयी बहरी,धमाका कर दिखाऊँ क्या?
श्यामल सुमन की काव्य रचनाएँ
तस्वीर
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श्यामल सुमन |
अगर तू बूँद स्वाती की, तो मैं इक सीप बन जाऊँ
कहीं बन जाओ तुम बाती, तो मैं इक दीप बन जाऊँ
अंधेरे और नफरत को मिटाता प्रेम का दीपक
बनो तुम प्रेम की पाती, तो मैं इक गीत बन जाऊँ
तेरी आँखों में गर कोई, मेरी तस्वीर बन जाये
मेरी कविता भी जीने की, नयी तदबीर बन जाये
बडी मुश्किल से पाता है कोई दुनियाँ में अपनापन
बना लो तुम अगर अपना, मेरी तकदीर बन जाये
भला बेचैन क्यों होता, जो तेरे पास आता हूँ
कभी डरता हूँ मन ही मन, कभी विश्वास पाता हूँ
नहीं है होंठ के वश में जो भाषा नैन की बोले
नैन बोले जो नैना से, तरन्नुम खास गाता हूँ
कई लोगों को देखा है, जो छुपकर के गजल गाते
बहुत हैं लोग दुनियाँ में, जो गिरकर के संभल जाते
इसी सावन में अपना घर जला है क्या कहूँ यारो
नहीं रोता हूँ फिर भी आँख से, आँसू निकल आते
है प्रेमी का मिलन मुश्किल, भला कैसी रवायत है
मुझे बस याद रख लेना, यही क्या कम इनायत है
भ्रमर को कौन रोकेगा सुमन के पास जाने से
नजर से देख भर लूँ फिर, नहीं कोई शिकायत है !
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उलझन
सभी संतों ने सिखलाया, प्रभु का नाम है जपना
सुनहरे कल भी आयेंगे, दिखाते रोज एक सपना
वतन आजाद वर्षों से बढ़ी जनता की बदहाली,
भले छत हो न हो सर पे, ये सारा देश है अपना
कोई सुनता नहीं मेरी, तो गाकर फिर सुनाऊँ क्या?
सभी मदहोश अपने में, तमाशा कर दिखाऊँ क्या?
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊँ क्या?
मचलना चाहता है मन, नहीं फिर भी मचल पाता
जमाने की है जो हालत, कि मेरा दिल दहल जाता
समन्दर डर गया है देखकर आँखों के ये आँसू,
कलम की स्याह धारा बनके, शब्दों में बदल जाता
लिखूँ जन-गीत मैं प्रतिदिन, ये साँसें चल रहीं जबतक
कठिन संकल्प है देखूँ, निभा पाऊँगा मैं कबतक
उपाधि और शोहरत की ललक में फँस गयी कविता,
जिया हूँ बेचकर श्रम को, कलम बेची नहीं अबतक
खुशी आते ही बाँहों से, न जाने क्यों छिटक जाती?
मिलन की कल्पना भी क्यों, विरह बनकर सिमट जाती?
सभी सपने सदा शीशे के जैसे टूट जाते क्यों?
अजब है बेल काँटों की सुमन से क्यों लिपट जाती?
----श्यामल सुमन
श्यामल सुमन की कवितायेँ आपको कैसी लगीं...इस पर अवश्य कुछ लिखिए...आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी. आप उन्हें यहां पर भी मिल सकते हैं अर्थात मनोरमा के पास जा कर...बस यहां क्लिक कीजिये..--रेक्टर कथूरिया
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