Sunday, January 23, 2011

नमी इन आँखों की जाती ही नहीं....



नारी जीवन और नारी मन की बहुत सी उलझनें आज भी अनसुलझी पड़ी हैं. कहीं उन पर समाज का डर है, कहीं परम्परायों  का, कहीं असुरक्षा के इस माहौल का और कहीं लुट जाने के बाद भी बार बार अपमानित करने वाले इस सिस्टम का. यह सब कुछ लम्बे समय से जारी है और साथ ही जारी है इसके खिलाफ आवाज़ बुलंद करने का सिलसिला. जिन नारी लेखिकायों ने इसे एक कर्तव्य समझ कर कलम उठाई उनमें अलका सैनी का नाम भी आता है. चंडीगढ़ की सुंदर घाटियों में जन्मी अलका सैनी को प्रकृति प्रेम और कला के प्रति बचपन से अनुराग रहा। कॉलेज जमाने से साहित्य और संस्कृति के प्रति रूझान बढ़ा। पत्रकारिता जीवन का पहला लगाव था जो आजतक साथ है। खाली समय में जलरंगों, रंगमंच, संगीत और स्वाध्याय से दोस्ती, कलम की यात्रा पर पूछा जाये तो अलका का जवाब होता है: न मैं कोई लेखिका हूँ ,न मैं कोई कवयित्री , न मेरी ऐसी कोई खवाहिश है , बस ! ऐसे ही मन में एक उमंग उठी, कि साहित्य -सृजन करूँ जो नारी-दिल की व्यथा को प्रकट करें एक सच्चे दर्पण में , एक आशा के साथ , कवि की पंक्तियों कि कभी पुनरावृति न हो , हाय ! अबला तेरी यही कहानी , आँचल में है दूध और आँखों में पानी. अब अलका सैनी को इस मामले में कहां तक सफलता मिली इस का फैसला आप करेंगे  उनकी रचनायों को पढ़ कर:  --रेक्टर कथूरिया   
" इष्ट देव "  
तुम.. मेरे जीवन दाता  
...मेरे प्राणों के त्राता 
मेरे भूखंड की बगिया के तुम माली
दर से तुम्हारे जाए ना कोई खाली
किरण तुम्हारी पहली वक्ष को मेरे जब सहलाए
ताप से तुम्हारे रात की औंस भी पिघल जाए
स्पर्श से तुम्हारे मेरा रोम- रोम पुलकित हो उठे
सीने में मेरे इन्द्रधनुष के सातों रंग खिल उठे
हृदय से छनकर पैगाम तुम्हारा जब आता है
गर्भ में मेरे कई नवजीवन खिला जाता है
मेघ का आवरण जब चेहरा तुम्हारा छुपा लेता है
दर्द विरह का रक्त रंजित आँखों में मेरी उतर जाता है
ढलती शाम तुम्हे क्षितिज पार मुझ से परे जब ले जाए
सीने की मेरी धधकती ज्वाला भी बुझ जाए
लालिमा तुम्हारी सुबह सवेरे जब मुझे जगाए
वजूद मेरा तुम्हारे वजूद में मिल जाए
जीवन धारा के हम चाहे अलग दो किनारे हैं
तुम्हारे प्रेम के रस में भीगे मेरे अलग नजारें हैं
सर्द रातों में मन मेरा तुम्हारी गर्म साँसों को तरसता
मेरी निर्जन आँखों से घायल हृदय का लहू बरसता
कोहरे भरी रातों में पूर्णिमा की चांदनी ना भाए
चमकते हुए तारों की परछाई भी मुझे डराए
 मै धरा, तुम मेरे इष्ट देव
नमी इन आँखों की
इक नमी इन आँखों की जाती ही नहीं ...... 
इक नींद इन आँखों में आती ही नहीं....... 
कौन है इस भरी महफ़िल में हमारा 
इक तड़प उनकी  जाती ही नहीं...... 
इक याद  उनको  आती ही नहीं .......

तेरी मेरी बात

जब से तेरी मेरी बात हो गई ...........
हसीं मेरी हर इक  रात हो गई .........
 चाँद - सूरज का कैसा ये मिलन.......
हर दिन तारों की बारात हो गई ........
----अलका सैनी.

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