
Monday, January 18, 2010
आओ आवाज़ बुलंद करें...!

Friday, January 15, 2010
मीडिया में फिर छाया पंजाब और सिक्ख मुद्दा...

इसी तरह डेटलाइन इंडिया में भी १५ जनवरी को कहा गया है कि....अब भी सक्रिय हैं भिंडरांवाले के भक्त....पंजाब के दौरे पर आधरित इस विशेष रिपोर्ट को तैयार किया है अनिल पाण्डेय ने. इस रिपोर्ट में बहुत ही साफ शब्दों में कहा गया है कि
पंजाब में सिखों की आज भी ऐसी बड़ी तादाद है जिनके दलों में भिण्डरावाला के लिए इज्जत है। वे उसे सिक्खी का स्वाभिमान मानते हैं। वे मानते हैं कि भिण्डरावाला मरा नहीं है बल्कि हजार-हजार रूपों में पैदा हुआ है और अलग सिख राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए प्रयत्नशील है। इस रिपोर्ट के साथ भी एक बहुत लोकप्रिय तस्वीर है. इस रिपोर्ट में मुलाकातों के ज़रिये पंजाब के लोगों की सोच और नब्ज़ पर हाथ रखने का प्रयास किया गया है.
Thursday, January 14, 2010
बंदूक भी अपनी, गोली भी अपनी और निशाना भी अपनी मर्ज़ी का...! सावधान...! बस प्यार से...!




ब्लॉग केवल मन का बोझ हल्का करने वालों का मंच ही नहीं रहा बल्कि उनलोगों की जंग का एक मैदान भी है जो बन्दूक की भाषा बोलते हैं. इस तरह के ब्लोगों में से एक ब्लॉग है मओवादिओं का. इन्टरनेट पर लड़ी जा रही इस जंग में मओवादिओं को जवाब भी इसी भाषा में मिल रहा..अर्थात ब्लॉग के ज़रिए. आप ब्लॉग की दुनिया में जानी मानी पुलिस अधिकारी किरण बेदी की कलम का जादू भी देख सकते हैं. किरण बेदी से आप यहाँ भी मिल सकते हैं. आमिरखान भी ब्लॉग की इस दुनिया में मौजूद हैं. और शोभा डे जैसे लोग भी जिनकी कलम के एक एक शब्द का बेसब्री से इंतज़ार किया जाता है.. अब देखना यह होगा कि ब्लॉग जगत से जुड़े लोग इस अवसर का उपयोग और प्रयोग कैसे करते हैं. बंदूक भी अपनी, गोली भी अपनी और निशाना भी अपनी मर्ज़ी का...! सावधान...! बस प्यार से...केवल इतना सोच कर कि हम भी आने वाला इतिहास रच रहे हैं...!
Thursday, January 07, 2010
ईरानी अधिकारी अपनी स्वयं की जनता के विचारों और शब्दों से डरते हैं--वौयस औफ़ अमेरिका

Tuesday, January 05, 2010
पाश और बाबा बूझा सिंह पर फिल्म बनाने का एलान
पंजाब की पत्रकारिता में लम्बे समय तक काम करने वाला जुझारू पत्रकार बखाशिंदर अब एक बार फिर सरगरम हो गया है.मुझे लगता था की अब शायद वह आराम करेगा क्योंकि उसने पंजाब के उस दौर में भी काम क्या जब कलम के साथ साथ अपना सर भी हथेली पर रख कर चलना पड़ता था. सुबह काम पर निकलो तो यह निश्चित नहीं होता था की रात को घर
लौटना होगा या नहीं..एक तरफ पुलिस और दूसरी तरफ मिलिटेंट ...दबाव की उस हालत में खबर लिखना हर किसी के बस का रोग नहीं रह गया था...इस सब कुछ की यादें अब तक ताज़ा होने के कारण ही मुझे लगता था की अब बख्शिंदर आराम करेगा और कविता या ग़ज़ल लिखेगा..पर मुझे किसी मित्र ने कहा वह कुछ करने की योजना बना रहा है...हमारी मुलाकात हो नहीं पाई और बात आयी गयी हो गयी...पर फिर भी मेरे जहन में यही रहा कि वह शायद ब्लू स्टार या उसके बाद के हालातों पर लिखेगा....पर मामला तो कुछ और ही निकला..बखशिंदर तो और भी पीछे की गहरी घटनायों की यादों को ताज़ा करने वाले मुद्दे बटोर लाया...अब जबकि नक्सलवाद के खिलाफ बहुत कुछ कहा सुना जा रहा है तो मुझे याद आती है 1980 में बनी एक फिल्म The Naxalites जिसे बनाया था जाने माने पत्रकार और फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास ने. फिल्म के रिलीज़ होने से पहले ही इसकी कहानी का पेपर-बेक एडिशन मेरे हाथ लग गया था. कहानी के अंत में दिखाया जाता है एक पुलिस एंकाउन्टर..जिसमें सभी नक्सलवादी मारे जाते हैं और पुलिस अफसर जोर से चिल्ला कर पूछता है..कोई नक्सलवादी जिंदा बचा हो तो अपने हाथ उठा कर बाहर आ जाये...! इस पर एक मासूम बच्चा सामने आता है और कहता है मेरा नाम सूरज है...और यह था आरम्भ...!.... कभी कभी मुझे नंदिता दास की फिल्म लाल सलाम की भी याद आती और इसी मुद्दे पर बनी कुछ और फिल्मों की भी. आखिकार यह समस्या रातो रात तो पैदा नहीं हुयी थी. इसके पीछे बहुत से कारण हैं जिन्हें लम्बे अरसे तक नज़रंदाज़ किया गया या फिर गलत ढंग से हल करने के प्रयास हुए जो नाकाम होते रहे...यहाँ मुझे याद आ रहा है एक और
वीडियो संकलन जो इसी मुद्दे पर बना था पर मुझे मालूम नहीं था कि पंजाब में एक बार फिर यही आवाज़ बुलंद होने 
एक नज़र पंजाब सक्रीन (पंजाबी) की तरफ भी
Friday, January 01, 2010
तब राम भी अपना और नानक भी......
जिंदगी में बहुत बार ऐसे पल भी आते हैं जब लगता है कि दोराहा या फिर कभी कभी चौराहा ही आ गया. समझ में नहीं आता कि किस राह पर आगे बढ़ा जाये या किस तरीके से पीछे हटा जाये. शायद वो इन्सान भी कुछ इसी तरह की हालत से गुज़र रहा होगा. एक तरफ दुनिया और दुनियादारी कि चमक दमक और दूसरी तरफ सन्यास मार्ग के आनंद का आकर्षण. अमृता प्रीतम उसका नक्शा अपने चिर-परिचित अंदाज़ में खीचती हुयी कहती है....रजनीश जी के पास कोई आया, कुछ घबरा कर बैठा रहा, कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी. फिर उनकी नज़र से हिम्मत बंधी, कहने लगा--"मैं सन्यास लेना चाहता हूँ, लेकिन एक मुश्किल है---मैं रिश्वत लेता हूँ-----आदत हो चुकी है, छूटती नहीं---फिर सन्यास कैसे होगा ?"

इस घटना के रहस्यपूर्ण अर्थों को कुछ और भी आसान करते हुए अमृता प्रीतम ने आगे कहा....उसी रौशनी में कहना चाहती हूँ कि आपका जो भी मज़हब है, उसकी आत्मा को पा लो. फिर जो भी गलत है, किसी दूसरे से जितनी भी नफरत है, वो अपने आप छूट जाएगी छोडनी नहीं पड़ेगी, छूट जाएगी, और फिर राम भी अपना हो जायेगा, मोहम्मद और नानक भी अपने हो जायेंगे....
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