एडिक्शन भी इतनी ज्यादा कि न भूख की परवाह और न ही बुखार की. यह बात अलग है कि सभी लोग इसे मानते नहीं.इसे स्वीकार नहीं करते.मुझे कई बार ऐसे फोन आते हैं जिन पर अपनी सारी व्यथा बताई जाती है. सुनाते सुनाते लोग रो पड़ते हैं. फोन सुनते सुनते मेरे हाथ भी थक जाते हैं, फोन की बैटरी से कान भी गर्म हो जाते हैं..लेकिन लोग एक एक घंटा अपनी बात जारी रखते हैं. बातों में दम होता है, बहुत ही दर्द छुपा होता है. कभी कभी लोग अपनी जान तक देने की बात करते हैं.उन्हें लगता है की अब फेसबुक का मित्र ही नाराज़ हो गया तो अब जीने में क्या रखा है.उनकी बातें सुन कर उनसे नाराज़ होने की मेरी हिम्मत नहीं होती.किसी को यह गिला होता है की किसी ने उसे अपनी फ्रेंडज़ लिस्ट से निकाल क्यूं दिया, किसी को यह गिला की उसने उकी बात क्यूं नहीं मानी...बहुत सी बातें हैं जो बेहद निजी किस्म की भी हैं...पर लोग उनको लेकर दुखी हैं.
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