Thursday, August 12, 2010
खुशखबरी लुधियाना में हिंदी शोध केंद्र खुलने की
हिंदी फिल्मों को अपने गीतों से अमीर और यादगारी बनाने वाले साहिर लुधियानवी की बात चलती है तो याद आती है लुधियाना की जहां आज भी मौजूद है वह कालेज जहां साहिर ने अपनी शिक्षा ली थी. साहिर की निकटता को महसूस करने वाली वे दीवारें आज भी हैं. लगता है वे आज भी चुपके से साहिर के गीत गुनगुनाती हैं. वह पूरे का पूरा माहौल आज भी साहिर की बात करता है. अब जुड़ा है उसी कालेज से एक और गौरव. आज सबसे पहले हम बात करते हैं उस नए गौरव की जो हिंदी प्रेमियों के लिए एक खुशख़बरी भी है. एक ऐसी खुशखबरी जिसकी चर्चा...जिसकी धूम विदेशों तक भी बहुत ही तेज़ी से पहुंची है. हिंदी विकास के क्षेत्र में एक नया मील पत्थर साबित होने वाली इस इस बात का पता मुझे सब से पहले मिला इंग्लैण्ड में रह रही डाक्टर कविता से. हिंदी और साहित्य की साधना में मग्न डाक्टर कविता ने मुझे एक लिंक भेजा जो एक जानीमानी अंग्रेजी अख़बार से था. खबर यह थी कि अब लडकों का सतीश चन्द्र धवन राजकीय कालेज राज्य का पहला ऐसा कालज बन गया है जहाँ हिंदी में डाक्टरेट करने के लिए पंजाब यूनिवर्सिटी का शोध केंद्र खुल गया है.इसका उदघाटन हाल ही में किया गया है लेकिन इस मकसद के लिए पांच शोध छात्र पहले से ही मौजूद हैं. हिंदी विभाग के प्रमुख और पंजाब यूनिवर्सिटी के सिंडिकेट मेम्बर मुकेश अरोड़ा ने मीडिया को बताया कि इस के प्रयास वास्तव में तभी जोरशोर से शुरू हो गए थे जब 2007 में पंजाब यूनिवर्सिटी सैनिट ने एक प्रस्ताव पारित किया था कि अगर कोई कालेज डाक्टरेट प्रोग्राम के लिए इच्छा रखता हो तो उसे पंजाब यूनिवर्सिटी से खोज केंद्र की स्वीकृति लेनी चाहिए. इस प्रस्ताव के बाद नवम्बर-2009 में कालेज ने बाकायदा इस स्वीकृति के लिए आवेदन भी किया. हिंदी सहित्य और शोध से जुड़े साधकों की साधना रंग लायी. एस सी वैद्य के नेतृत्व वाली उच्च स्तरीय कमेटी ने जनवरी 2010 में इसकी बाकायदा स्वीकृति भी प्रदान कर दी. कालेज में तो पूरा ख़ुशी का माहौल है ही कालेज से बाहर भी हिंदी साहित्य प्रेमी बहुत खुश हैं. गौरतलब है कि इस कालेज में हिंदी विभाग शुरू हुआ था 14 सितम्बर 1953 को केवल 6 छात्रों के साथ. तब से लेकर आज तक कभी भी इस विभाग ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. इस समय कालेज में इस विभाग को चलाने वालों में डाक्टर मुकेश अरोड़ा भी हैं, डाक्टर हरदीप सिंह भी, सतीश कान्त भी, डाक्टर राजिन्द्र जैन भी और सुश्री सुनन्दा भी.इस शोध केंद्र के खुल जाने से हिंदी छात्रों को बहुत फायदा होगा. इस कालेज ने बहुत महान लोग पैदा किये हैं अगर आपके पास भी इस कालेज की या फिर अपने कालेज की कोई ऐसी याद बची हो तो हमें अवश्य भेजें.---रेक्टर कथूरिया.
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