मुंशी प्रेमचंद को शरीरक तौर पर हमसे बिछड़े हुए एक लम्बा अरसा हो गया है पर उनके विचारों में इतनी जान है कि वे आज भी हम पर छाये हैं. हम अपने अचेतन को भी कभी उनसे अलग करके नहीं देख पाते. उनका साहित्य आज भी उसी प्रेम से पढ़ा जाता है. उनकी जीवन शैली की चर्चा आज भी की जाती है. उनके सिद्दांतों की बात आज भी की जाती है. उनकी मिसालें आज भी दी जाती हैं. उनके जन्मदिन के अवसर पर मुंबई में रह कर साहित्य साधना कर रहे नवीन चतुर्वेदी जी ने एक कविता लिखी है . वह कविता आपके लिए भी हाज़िर है.
कलम के सिपाही - श्री मुंशी प्रेमचंद
क़लम के जादूगर!
अच्छा है,
आज आप नहीं हो|
अगर होते,
तो, बहुत दुखी होते|
आप ने तो कहा था -
कि, खलनायक तभी मरना चाहिए,
जब,
पाठक चीख चीख कर बोले,
- मार - मार - मार इस कमीने को|
पर,
आज कल तो,
खलनायक क्या?
नायक-नायिकाओं को भी,
जब चाहे ,
तब,
मार दिया जाता है|
फिर जिंदा कर दिया जाता है|
और फिर मार दिया जाता है|
और फिर,
जनता से पूछने का नाटक होता है-
कि अब,
इसे मरा रखा जाए?
या जिंदा किया जाए?
सच,
आप की कमी,
सदा खलेगी -
हर उस इंसान को,
जिसे -
मुहब्बत है,
साहित्य से,
सपनों से,
स्वप्नद्रष्टाओं,
समाज से,
पर समाज के तथाकथित सुधारकों से नहीं|
हे कलम के सिपाही,
आज के दिन -
आपका सब से छोटा बालक,
आप के चरणों में -
अपने श्रद्धा सुमन,
सादर समर्पित करता है|
अच्छा है,
आज आप नहीं हो|
अगर होते,
तो, बहुत दुखी होते|
आप ने तो कहा था -
कि, खलनायक तभी मरना चाहिए,
जब,
पाठक चीख चीख कर बोले,
- मार - मार - मार इस कमीने को|
पर,
आज कल तो,
खलनायक क्या?
नायक-नायिकाओं को भी,
जब चाहे ,
तब,
मार दिया जाता है|
फिर जिंदा कर दिया जाता है|
और फिर मार दिया जाता है|
और फिर,
जनता से पूछने का नाटक होता है-
कि अब,
इसे मरा रखा जाए?
या जिंदा किया जाए?
सच,
आप की कमी,
सदा खलेगी -
हर उस इंसान को,
जिसे -
मुहब्बत है,
साहित्य से,
सपनों से,
स्वप्नद्रष्टाओं,
समाज से,
पर समाज के तथाकथित सुधारकों से नहीं|
हे कलम के सिपाही,
आज के दिन -
आपका सब से छोटा बालक,
आप के चरणों में -
अपने श्रद्धा सुमन,
सादर समर्पित करता है|
--नवीन चतुर्वेदी
5 comments:
हम सब के प्रेरणा स्रोत, मूर्धन्य साहित्यकार, कलम के सिपाही, भारतीय जन - मन के सफल चितेरे, श्री मुंशी प्रेमचंद जी अपनी कृतियों के माध्यम से आज भी हमारे मध्य मौजूद हैं| हम उन की अकूत तपस्या को शत शत नमन करते हैं|
Chandra Suresh via Facebook on Saturday July 31, 2010 at 07:46 PM नवीन चतुर्वेदी जी की वेदना सही है... 'नमक के दरोगा', 'गबन', 'निर्मला', 'गोदान', जैसे अनगिनत अमूल्य साहित्य के जनक... स्वर्गीय मुंशी प्रेमचंद... के 'सारे' नायक... विलुप्त होते से लगते हैं... आज के दौर मे... 'हल्कु' और 'मुन्नी' की व्यथा तो जस की तस बनी हुई है... पर उधर ध्यान कम जाता है... उन जीवंत कहानियो मे... 'मसाला' जो नही होता...
स्वर्गीय 'प्रेमचंद' जी की १३०वीं जयंती पर उन्हे श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ... !!
कलम के सिपाही को सादर नमन!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 01.08.10 की चर्चा मंच में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत बढ़िया, अत्ति सुंदर ! जारी रखे ! Horror Stories
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