कहते हैं कि जब कोई किसी को बहुत याद करता है तो आसमान से एक तारा टूट कर गिरता है.....
एक दिन सारा आसमान खाली हो जाएगा और इल्ज़ाम हम पर आएगा...
इसी तरफ से एक और संदेश था 4 अक्टूबर 2007 की रात को...
नसीब से मिलता है यार, नसीब से मिलता है दीदार,
नाज़ुक चीज़ हैं ये संभाल कर रखना
क्यूंकि नसीब वालों को मिलता है किसी का सच्चा प्यार.. ..
इसी तरह मुस्कान-आँचल ने 27 जून 2008 की रात को भेजा...
दोस्ती यकीं पे टिकी होती है,
ये दीवार बड़ी मुश्किल से खड़ी होती है,
कभी फुर्सत मिले तो पढना किताब रिश्तों की,
दोस्ती खूं के रिश्तों से भी बड़ी होती है.
पंजाब में टीवी पत्रकारिता की दुनिया कोई अधिक पुरानी नहीं है. इसकी नीव रखने में जिन लोगों ने अपना योगदान डाला..वे आज भी सरगर्म हैं अपनी उसी ख़ामोशी के साथ. इनमें से एक ख़ास नाम है हरमिंदर सिंह रोकी का. रेड अलर्ट और सनसनी के ज़रिये कई खतरनाक लोगों की खोजपूर्ण सटोरियों को लोगों के सामने लाने की हिम्मत दिखाने वाले एच एस रोकी की चर्चा फिर कभी सही पर जो संदेश 18 जुलाई 2008 की शाम को आया वह यहां हाज़िर है...
आओ साथ में दुनिया बाँट लें...
समुंदर आपका....लहरें हमारी,
आसमान आपका, सितारे हमारे,
सूरज आपका, रौशनी हमारी....
चलो ऐसा करें...सब कुछ आपका और आप हमारे...
24 सितम्बर 2007 की देर रात को मनप्रीत ने अपना संदेश एस एम एस किया...
वह दिल से न जाये तो क्या करूं?
रह रह कर दिल में आये तो क्या करूं..?
कहते है सपनों में होती है मुलाकात...
जब नींद ही न आये तो क्या करूं...?
इसी नाम से एक और संदेश था 30 जुलाई 2007 की रात को...
ज़िन्दगी शुरू होती है रिश्तों से,
रिश्ते शुरू होते हैं प्यार से,
प्यार शुरू होता है दोस्तों से
और
दोस्त शुरू होते है आपसे...
एक और एस एम एस इसी नाम से आया 6 अगस्त 2007 की रात को....
मौसम को मौसम की बहारों ने लूटा,
मुझको कश्ती के किनारों ने लूटा,
अरे वोह तो एक ही कसम से डर गए....
हमें तो उनकी कसम दे कर हजारों ने लूटा.
इसी नाम से 24 जनवरी 2008 को एक और संदेश था..
रिश्तों की डोरी कमजोर होती है,,
आंखों की बातें दिल की चोर होती है,
खुदा ने जब भी पूछा दोस्ती का मतलब,
हमारी निगाहें आपकी ओर होती हैं....
एक बार मुस्कान आँचल ने 27 जून 2008 की रात्रि को (23 :29 :57 बजे) अपने गुस्से का इज़हार कुछ यूं किया...
अजीब इन्सान हो,
पत्थर का कलेजा है तुम्हारा,
आग में हाथ डाल कर अपनी हस्त रेखाएं पढ़ते हो तुम,
शायद इस लिए ज़ख्मों का गरूर है तुम्हारी आंखों में,
शायद इसी लिए महरम से बेनियाज़ हो तुम.
अगले ही दिन अर्थात कुछ ही मिनटों के बाद गुस्सा दूर हो चुका था. 28 जून 2008 को (00 :49 :02 बजे) को नया संदेश आया..
लम्हे जुदाई के बेकरार करते हैं,
हालात मेरे मुझे लाचार करते हैं,
आंखें मेरी पढ़ तो कभी,
हम खुद कैसे कहें कि आपको कितना याद करते हैं.
आखिर में एक टी वी पत्रकार तुषार भारतीय की ओर से 13 फरवरी 2009 की रात को (23 :44 :56 बजे) भेजा गया एक अर्थपूर्ण संदेश:
भगवान कहते हैं...
तू करता वही है जो तू खुद चाहता है
पर
होता वही है जो मैं चाहता हूं.
तू वही कर जो मैं चाहता हूं...
फिर वही होगा जो तू चाहता है....
आपको कुछ मोबाईल संदेशों की यह पेशकारी कैसी लगी अवश्य बताएं. --रेक्टर कथूरिया
पोस्ट स्क्रिप्ट: रावण के 10 सर, 20 आखें पर नज़र सिर्फ एक लडकी पर....आपका सर 1, आखें 2 पर नजर हर लडकी पर...अब बतायो असली रावण कौन..? हैपी दशहरा....! (अरुण शर्मा ने 28 सितम्बर 2009 को भेजा) .
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1 comment:
बढ़िया रही!
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