Wednesday, May 12, 2010

बात राग भैरवी की

आज भी जब पुराने गीतों की बात चलती है तो लोग झूमने लगते हैं. आज भी इन गीतों को उसी तरह सुना जाता है जैसे कि उन दिनों सुना जाता था. उस ज़माने में एक गीत हुआ करता था ज्योत से ज्योत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो. सन 1964 में रलीज हुई फिल्म संत ज्ञानेश्वर का यह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था. हर गली में बच्चे बच्चे की जुबान पर बस यही गीत था.  इसी तरह एक और गीत था सन 1963 में आई फिल्म दिल ही तो है का. सी एल रावल और पी एल सन्तोशी की ओर से निर्देशित इस फिल्म में राज कपूर. प्राण, नूतन बहल और कई जाने मने कलाकार थे.  इस गीत के बोल थे : लागा चुनरी पे दाग छुपायूं कैसे, घर जायूं कैसे....! 
      आज भी इन गीतों को बहुत ही ध्यान से सुना जाता है. मुझे इनकी याद ताज़ा हुई एक संदेश से. यह संदेश था जान माने संगीतकार और पंजाब के गौरव हरविंदर सिंह जी का बटाला से. वही बटाला जिसका नाम लेते ही याद आ जाती है शिव कुमार बटालवी की. हरविंदर जी के संदेश में ज़िक्र था राग भैरवी का. उस रात जिन वजहों के कारण मैं इसे नहीं सुन पाया उनमें एक वजह यह भी थी कि इसे रात के तीसरे पहर या फिर सुबह सुबह ही सुनना चाहिए. मुझे संगीत की इन बारीकियों का ज्ञान बिलकुल ही नहीं है पर फिर भी मेरी कोशिश होती है कि जहां तक संभव हो नियमों की पालना अवश्य की जाये. मैंने कई बार महसूस किया कि नियमों की अवहेलना से मन की शान्ति में भी गड़बड़ी हुई. सोच ही रहा था कि इस बारे में कुछ और पता चला. अपने ज़माने का माना हुआ गीत ज्योत से ज्योत  जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो भी राग भैरवी में ही था. अब राग भैरवी क्या होता है--लीजिये आप इसे भी सुनिये सवीडन में हुए उनके लाईव कन्सर्ट में प्रस्तुत की गयी राग भैरवी की धुन. 
              इस मौके सितार पर थे हरविंदर सिंह और उनके साथ तबले पर संगत की गुलफाम साबरी ने जो कि पदमश्री उस्ताद साबरी खान के बेटे हैं.  उन्हों ने राग भैरवी से मिलती जुलती एक और रचना राग किरवानी भी मुझे भेजी. इसे दक्षिण भारत में बहुत ही स्नेह और श्रद्धा के साथ सुना जाता है. हरविंदर जी ने पांच दिसंबर 2009 को सवीडन में हुए लाईव कन्सर्ट में इसकी भी प्रस्तुती की थी. सितार पर खुद हरविंदर जी थे और गायन किया था वहां कि एक युवा और खूबसूरत गायका  Cecilia Aslund  ने. आपको यह राग गायन कैसा लगा ज़रूर बताएं.आपके मन में कोई सवाल उठे तो वह भी ज़रूर पूछिए. हरविंदर जी आप की आशंका अवश्य ही दूर करेंगे           ---रैक्टर कथूरिया 

5 comments:

Meena said...

Raag Bhairavi....very soothing...and of course the songs in the 60's n 70's were so meaningful an touched the heart directly and no way are incomparable to those of todays.....!!!

Meena said...

Raag Bhairavi....very soothing to ears and of course the songs of 60's and 70's were so meaningful..incomparable to the songs of today....!!!

gurmeet moksh said...

Raag Bhairvi is all time ,all season & a sadabahar raag,AND A MUSIC MAESTRO LIKE HARVINDER JI ,makes it even more beautiful... Thanks for sharing with us...

SUNIL SINGH DOGRA said...

wah ji wah..kya baat hai guru ji...really feeling very nice to read this article and its reality. i luv raag bhairavi..!!thanxxx for posting this awesum article..!!

regards

sunil dogra

gurmeet moksh said...

Namaste...

Bhairvi is one of the colourful ragas....and when it touches the hands of the maestro like Guru Harvinder singh ji...becomes more beautiful,colourful...

Thanks for sharing it with all of us..

Regards.