सफ़दर हाश्मी को मिटाने वालों ने तो शायद यही सोच होगा कि बस एक खून...और सफ़दर भी खत्म और उसकी आवाज़ भी. पर हुआ एन इसके उल्ट. सफ़दर का लहू जब बहा तो उसने रक्त बीज कि कहानी को भी कहीं पीछे छोड़ दिया.उसने साबित किया कि लोगों के नायक सिर्फ कहानी नहीं होते वे सचमुच रक्तबीज बन के भी दिखा सकते है. आज भी उसकी आवाज़ गूँज रही है. उन लोगों के कानों में भी जिनके लिए वह शहीद हुआ और उनके कानों में भी जिन्होंने उसे शहीद करके सब कुछ खत्म कर देने का वहम पालने की नाकाम कोशिश की. उसी अमर सफ़दर का जन्म दिन 12 अप्रैल 2010 को है जिसे पूरे जोशो खरोश से मनाया जा रहा है राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस के तौर पर. उस महान लोक नायक को याद करने और उसके संकल्प को पूरा करने के लिए एक विशेष आयोजन हो रहा है 11 अप्रैल 2010 को. सांस्कृतिक संध्या के रूप में आयोजित होने वाले इस यादगारी कार्यक्रम की शुरूयात 42,अशोका रोड नयी दिल्ली में शाम को ठीक चार बजे हो जाएगी. इसका निमन्त्रण देते हुए जन नाटय मंच के अध्यक्ष अशोक तिवारी और सफ़दर की जीवन संगिनी रही मलयश्री हाशमी ने कहा है कि आप आयें. कुछ पुरानी बातें करें और कुछ आगे के बारे में सोचें. गीत संगीत और नुक्कड़ नाटकों के साथ साथ होने वाली इस चर्चा में जलपान का आयोजन भी किया गया है. क्यूं आप आ रहे हैं न. कुछ कच्चा पक्का है तो बिलकुल पक्का कर लीजिये और एक बार फिर मुलाकात कीजिये उन विचारों से जिन्हें मिटाने के लिए उन लोगों ने सफ़दर को शहीद कर दिया था.एक बार फिर महसूस कीजिये उन जोशीले जज्बातों को जिन्हें खत्म कर देने का वहम पाला था कुछ लोक दुश्मनों ने.वही बुलंदी, वही अंदाज़ और वही पक्के इरादों की झलक मिलेगी इस यादगारी प्रोग्राम में.--रैक्टर कथूरिया
2 comments:
comrade safdar ko lal salaam
nice
Post a Comment