आपदा कभी भी और कहीं भी आ सकती है. विनाशक शक्ति जब विनाश पर उतारू होती है तो किसी का लिहाज़ नहीं करती. पर इन आपदाओं का सामना करने वाले लोग कई बार इतने बहादुर और समझदार होते हैं कि अपनी तदबीरों से वे अपनी तकदीरें बादल देते हैं. हाल ही में मुझे अमेरिका से एक खास रिपोर्ट मिली कि वहां बर्फीला तूफ़ान आने वाला है. इस रिपोर्ट में यह भी दर्ज था कि इस विपदा का सामना करने के लिए क्या इंतजाम किये गए हैं. मैंने इन इंतजामों की चर्चा इस ब्लॉग में भी की...जिसका शीर्षक था...यूं होता है तूफानों का सामना. इसे मैंने पंजाबी में भी लिखा और अंग्रेजी पाठकों के लिए भी पूरा विवरण दिया. इस तुफान के बाद दो और खबरें इसी मुद्दे पर सामने आयीं. एक तो इसी तूफ़ान के बारे में थी. दो महीने से भी कम समय में आये इस खतरनाक बर्फीले तूफ़ान में 60 सेंटीमीटर बर्फ गिरी. स्कूलों कालेजों के साथ साथ हवाई अड्डे भी बंद हो गए. हजारों घरों की बिजली भी ठप्प ही गयी और वाशिंगटन में दो मौतों की भी सूचना मिली. मामला गंभीर था जिसे अन्य मीडिया संस्थानों के साथ वोइस ऑफ़ अमेरिका ने भी प्रसारित किया. आप अनुमान लगा सकते हैं कि इतनी बड़ी आपदा, इतना बड़ा तूफ़ान और वह भी केवल दो महीने के अंदर अंदर लेकिन वहां के प्रशासन और लोगों ने कितने सुनियोजित ढंग से किया इस तूफ़ान का सामना. लेकिन दूसरी खबर है हमारे अपने देश की. आपदा तो यहां भी आई. कश्मीर में हिम्सख्लन से दो सैनिकों सहित तीन और लोगों की मौत से मरने वालों की संख्या 20 हुई. इस सम्बन्ध में चेतावनियों को जारी करने में कोताही हुई या फिर उन्हें गंभीरता से लेने में.....इस की चर्चा स्वदेशी मीडिया में भी हुई. कुल मिला कर यह सवाल एक बार फिर अपनी जगह कायम है कि हमारे यहां अमेरिका जैसे करिश्में कैसे संभव होगें ? आओ कुछ सीखें अमेरिका से....!
--रैक्टर कथूरिया
1 comment:
शायद जनसंख्या की अधिकता और संसाधनों की कमी वजह बताई जायें लेकिन फिर भी तैयार रहना तो सीखने लायक है ही.
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