Tuesday, November 17, 2009

ग़ज़ल


दुनिया  को  असल बात बता क्यूं नहीं देते !
लफ़्ज़ों की करामात दिखा क्यूं नहीं देते ?

ज़ालिम का हर नकाब उठा क्यूं नहीं देते!
लोगों को उसकी शक्ल दिखा क्यूं नहीं देते ?

ज़ुल्मों की दास्तान सुना क्यूं नहीं देते !
कलमों से इक तूफ़ान उठा क्यूं नहीं देते ?

लोगों को उनके ज़ख़्म दिखा क्यूं नहीं देते !
सोयी हुयी ताक़त को जगा क्यूं नहीं देते ?

महलों की नींव आज हिला क्यूं नहीं देते !
तुम जालिमों की नींद उड़ा क्यूं नहीं देते ?

ज़ालिम का पता सब को बता क्यूं नहीं देते !
इक आग बगावत की लगा क्यूं नहीं देते ?

(12-4-1991 को)

1 comment:

Unknown said...

आग का क्या है पल दो पल में लगती बुझाने में जमाने लग जाते है