Tuesday, November 17, 2009

ग़ज़ल


सब से पत्थर खाता है वो दीवाना!
फिर भी सच सुनाता है वो दीवाना!

यादों की खुद आग लगाता है हर रोज़;
फिर उसमें जल जाता है वो दीवाना!

तूफां  में चिराग जलाता हो जैसे; 
प्यार के गीत सुनाता है वो दीवाना!

बार बार करता है बात मोहब्बत की,
खुद ही दर्द जगाता है वो दीवाना!

ये दीवानापन तो अच्छी बात नहीं;
मुझको यह समझाता हिया वो दीवाना!

(13-4-1991 की रात को)

No comments: