सब से पत्थर खाता है वो दीवाना!
फिर भी सच सुनाता है वो दीवाना!
यादों की खुद आग लगाता है हर रोज़;
फिर उसमें जल जाता है वो दीवाना!
तूफां में चिराग जलाता हो जैसे;
प्यार के गीत सुनाता है वो दीवाना!
बार बार करता है बात मोहब्बत की,
खुद ही दर्द जगाता है वो दीवाना!
ये दीवानापन तो अच्छी बात नहीं;
मुझको यह समझाता हिया वो दीवाना!
(13-4-1991 की रात को)
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