"तुम वसंत हम पतझड़" डॉ ज्ञान सिंह मान रचित यह काव्य संग्रह जब मैंने पहली बार देखा तो मुझे लगा कि शायद ये शानिकाएं हैं छोटी छोटी कवितायेँ ; पर डॉक्टर मान कहते हैं कि नहीं ये सूत्र कवितायेँ हैं बिल्कुल ही नई विधा में ; कहीं से भी शुरू करो, कहीं से भी पढ़ लो :
* मजबून इस ख़त का कुछ यूँ तो न था,
कि आप पढ़ते और फाड़ देते ।
* मेरे फ़िर से जी उठने की हैरानी न होती;
भूल से अगर इक बार ; तुमने छू लिया होता !
* रास्ते में बन गए कितने ही साथी ,
मंजिल तक सिर्फ़ चार ने ही साथ निभाया है ।
* मेरी जिंदगी कोई प्लेटफोर्म तो न थी
कि तुम आती
और रेल सी चली जाती।
* लायूं कहाँ से इतने कृष्ण ,
यहाँ तो हर शहर ही महांभारत है।
4 comments:
मेरी जिंदगी कोई प्लेटफोर्म तो न थी
कि तुन आती
और रेल सी चली जाती।
kya baat hai ....bahur sunder
Manvinder Bhimber G ! Dr. Maan ki shayari me aisa bahut kuchh hai....Aap ne apna keemti vaqat nikala bahut bahut shukriya......
रास्ते मे बन गये कितने ही साथी
मंज़िल तक सिर्फ़ चार ने ही साथ निभाया "
डा० मान ने झक झोर दिया कि लोग इतने दोस्त क्यूं बनाते है जो हम सफ़र नही बन सकते?
बहुत अच्छी और गम्भीर सोच बधाईयां
रास्ते मे बन गये कितने ही साथी
मंज़िल तक सिर्फ़ चार ने ही साथ निभाया "
डा० मान ने झक झोर दिया कि लोग इतने दोस्त क्यूं बनाते है जो हम सफ़र नही बन सकते?
बहुत अच्छी और गम्भीर सोच बधाईयां
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