Monday, January 18, 2010

आओ आवाज़ बुलंद करें...!

बुखार के बावजूद लगातार भागदौड़ के कारण उस दिन मुझे थकावट भी थी और लुधियाना में चली गोली के कारण चिंता और परेशानी भी. पंजाब में खून खराबे और दहशत का माहौल मैंने नज़दीक से देखा ही नहीं बल्कि झेला भी था. मुझे लग रहा था कि शायद 1978 में पैदा हुए हालात एक बार फिर दस्तक दे रहे हैं. इन हालातों के बाद ही बात बिगडती बिगडती ब्लू स्टार तक तक पहुच गई थी और उसके बाद एक दश्क से भी अधिक समय तक पांच दरियायों की इस पावन भूमि पंजाब में बहता रहा खून का छठा दरिया. इस आग की लपटें पंजाब से बाहर भी जोर से भड़कीं. 25 बरस गुज़र जाने के  बावजूद आज भी लोगों के दिलो दिमाग में उन ज़ख्मों की यादें ताज़ा हैं. पर इस सारी चिंता और थकावट के बावजूद मुझे मिलना था पाकिस्तान से आयी हुई एक कलाकार मेहमान शहरजादे आलम  से. कार्यक्रम पहले से तय था...उस में कोई तबदीली की बात करनी मुझे अच्छी नहीं लग रही थी. न ही नैतिक तौर पर और न ही मेहमान नवाजी के नजरिये से. वह कलाकार भी कुछ बड़े बड़े शहरों में अपनी प्रदर्शनियां आयोजित करने के बाद कई घंटों की रेल यात्रा करके आयी थी पर मुलाकात हुई तो मैंने देखा की उसके चेहरे पर थकावट नाम की कोई चीज़ नज़र नहीं आ रही थी. उसकी मुस्कराहट में भी ताजगी थी और आवाज़ में भी एक दमदार सुरीलापन. दिलचस्प बात यह भी कि उसने अपनी उम्र को भी किसी तरह की डाई से छूपाने  की कोई कोशिश नहीं की थी. उसके चेहरे पर कोई मेकअप भी नहीं दिख रहा था.पर एक अजीब सी चमक या नूर उसके चेहरे पर था. मैंने सोचा या तो बहुत ही अमीरी के कारण ऐसा हो सकता है य फिर हो सकता है कि वह मेडीटेशन करती हो. पर जब मुझे हकीकत का पता चला  तो मेरी हैरानी की कोई हद्द ही न रही और असलीअत यह थी की वह इस तरह जिंदा थी जैसे कोई तूफ़ान के सामने चिराग जला कर खड़ा हो जाये और कहे देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है. उसके साथ  मेरी मुलाकात मेरे एक कज़न के ज़रिये हुई थी जो कि बहुत अच्छा फिल्म निर्देशक भी है. मेरे इस कज़न भाई कंवल सेठी ने बताया कि असल में इस कलाकार के दिल और दिमाग पर एक बहुत बड़ा बोझ है. अगले दिन अलविदा कहने से कुछ पहले ही मुझे पता चला कि उसके पति और युवा बेटी की हत्या कर दी गयी थी. ज़हूर-उल-अखलाक नाम के इस नामी गिरामी कलाकार का जन्म तो बेशक दिल्ली में हुआ था पर जब 1947 में इस देश के दो टुकड़े हुए और सम्प्रदायक आग घर घर को जलने लगी तो ज़हूर के परिवार को भी पाकिस्तान में जाना पड़ा. वहां अनगिनत युवायों  को कला की बारीकियां सिखाने वाले इस महान कलाकार को बहुत से इनाम भी मिले और लोगों का प्यार भी पर एक बहुत बड़ी समस्या थी की ज़हूर साहिब ने कभी भी अपनी ज़मीर की आवाज़ को नज़रंदाज़ नहीं किया. आखिरकार उनके साथ भी वही हुआ जो अंतर आत्मा की आवाज़ सुनने वालों के साथ होता है. एक दिन 18 जनवरी, 1999 को ज़हूर-उल-अखलाक और उनकी बेटी की हत्या कर दी गयी.उनकी जहां आरा  नाम की यह बेटी बहुत ही अच्छी कत्थक डांसर थी. इस दुखद घटना को 11 बरस हो रहे हैं. हर बार की तरह इस बार भी ज़हूर के चाहने वालों ने उनकी याद को अपने अपने ढंग तरीकों से मनाया तां कि इस तरह की अमानवीय घटनायों के खिलाफ दुनिया भर में आवाज़ को और बुलंद किया जा सके.                                --रैक्टर कथूरिया

Friday, January 15, 2010

मीडिया में फिर छाया पंजाब और सिक्ख मुद्दा...


पंजाब और सिख मुद्दा एक बार फिर पत्र पत्रिकाओं की कवर स्टोरी बन रहा है. यह सिलसिला केवल पंजाब की पत्र पत्रिकायों  तक ही सीमत नहीं बल्कि पंजाब से बाहर प्रकाशित हो रही पत्रिकायों में  भी महत्वपूर्ण स्थान ले रहा है. दिल्ली, नॉएडा और देहरादून से प्रकाशित होने वाले दि संडे पोस्ट के 17 जनवरी रविवार के प्रिंट एडिशन के अंक में कवर पर कुल चार आवरण कथाओं की इंट्रो तस्वीरों सहित प्रकाशित की गई है. इनमें सब से पहली आवरण कथा है संत जरनैल सिंह भिंडरांवालों की तस्वीर के साथ और बड़े बड़े शब्दों में शीर्षक है.....अब भी नायक हैं भिंडरांवाले.....पंजाब की राजनीती और साथ ही साहित्य पर मज़बूत पकड़  रखने वाले अमरीक ने अपनी चिर परिचित शैली के मुताबिक ही इस रिपोर्ट में भी कई गहरी बातें की हैं...लेकिन बहुत ही सादे शब्दों में.  इस रिपोर्ट में पाश की भी चर्चा है, भाई मन्ना सिंह उर्फ़ गुरशरण सिंह के नाटक हित लिस्ट की भी, जनरल ए के वैध के पोस्टर बाँटने की भी और इस मुद्दे के हाईटेक होने की भी. वेब एडिशन  पर इस रिपोर्ट का नाम है फिर से "संत जी" . इसी अंक में पंजाब पर एक और खास रिपोर्ट है पंजाब और भाजपा को बहुत ही गहराई से समझाने वाले नदीम अंसारी की. बादल की भाजपा को मात शीर्षक से  प्रकाशित इस रिपोर्ट में बताया गया है राज्य के भाजपा नेता अब अकाली नेता परकाश सिंह बादल के सामने बौने होते जा रहे हैं और बिजली की बढ़ी दरें वापिस कराने के मामले पर भाजपा के सामने इधर कूंयां उधर खाई  वाली स्थिति पैदा हो गई है.

इसी तरह डेटलाइन इंडिया में भी १५ जनवरी को कहा गया है कि....अब भी सक्रिय हैं भिंडरांवाले के भक्त....पंजाब के दौरे पर आधरित इस विशेष रिपोर्ट को तैयार किया है अनिल पाण्डेय ने. इस रिपोर्ट में बहुत ही साफ शब्दों में कहा गया है कि

पंजाब में सिखों की आज भी ऐसी बड़ी तादाद  है जिनके दलों में भिण्डरावाला के लिए इज्जत है। वे उसे सिक्खी का स्वाभिमान मानते हैं। वे मानते हैं कि भिण्डरावाला मरा नहीं है बल्कि हजार-हजार रूपों में पैदा हुआ है और अलग सिख राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए प्रयत्नशील है। इस रिपोर्ट के साथ भी एक बहुत लोकप्रिय तस्वीर है. इस रिपोर्ट में मुलाकातों के ज़रिये पंजाब के लोगों की  सोच और नब्ज़ पर हाथ रखने का प्रयास किया गया है.

Thursday, January 14, 2010

बंदूक भी अपनी, गोली भी अपनी और निशाना भी अपनी मर्ज़ी का...! सावधान...! बस प्यार से...!


 प्रसन्नता की बात है कि ब्लॉग जगत बहुत ही तेज़ी से विकसित हो रहा है.आम लोगों के साथ साथ बहुत से ख़ास लोग भी अब इस की अहमियत को पहचान रहे हैं.  अभिनय की दुनिया में नयी क्रांति लाने वाले अमिताभ बच्चन   की और से ब्लॉग पर आने के बाद ही इस दुनिया ने एक नयी करवट लेनी शुरू कर दी थी. उनका ब्लॉग 633 वें दिन में प्रवेश कर चुका है. अमर सिंह जैसे नेताओं का इस दुनिया में आना एक ऐसा साफ़ संकेत है अब ब्लॉग का मंच बहुत ही महत्वपूर्ण बनता जा रहा है. ब्लॉग के मंच से अमर सिंह जिस तरीके से अपने दिल की बात कह रहे हैं वह निश्चय ही  उन्हें आम लोगों के और नज़दीक लेकर जानेवाली है. इसके साथ
ही हमारे जाने माने ब्लॉगर और ब्लोगों की इस दुनिया के दिल की धड़कन समीर लाल जी ने भी कुछ ख़ास बातें की हैं जो ब्लॉग जगत से जुड़े लोगों को कम से कम एक बार अवश्य पढ़ लेनी चाहियें. रचनाकार के सम्पादक रवि रतिलामी जी का मार्गदर्शन भी नए लोगों को बहुत सी काम की बातें बताता है. बी एस पाबला जी के योगदान से सभी परिचित ही हैं पर नए लोगों से भी पाबला जी को मिलवाना मुझे ज़रूरी लग रहा है. तस्लीम से भी आप लोग परिचित हैं और ब्लागवाणी, जनोक्ति संवाद मंच, चिठ्ठाजगत और ब्लॉग प्रहरी सहित बहुत से उन ब्लोगों से भी जो ब्लॉग की दुनिया का भविष्य संवारने के लिए अपने अपने अंदाज़ से बहुत कुछ कर रहे हैं. अभी हाल ही में नयी दिल्ली की पत्रिका शुक्रवार ने अपनी कवर स्टोरी इसी मुद्दे पर दी है...ब्लॉग----बोलो--बेलाग..इस पत्रिका की इस कवर स्टोरी में यूं तो काफी कुछ है जिसे केवल पढ़ कर ही जाना जा सकता है पर साथ ही है ब्लॉग विस्फोट के प्रमोटर संजय तिवारी से एक भेंट वार्ता जिस में पते की बातें हैं और वे भी बहुत सी.
            ब्लॉग केवल मन का बोझ हल्का करने वालों का मंच ही नहीं रहा बल्कि उनलोगों की जंग का एक मैदान भी है जो बन्दूक की भाषा बोलते हैं. इस तरह के ब्लोगों में से एक ब्लॉग है मओवादिओं का. इन्टरनेट पर लड़ी जा रही इस जंग में मओवादिओं को जवाब भी इसी भाषा में मिल रहा..अर्थात  ब्लॉग के ज़रिए. आप ब्लॉग की दुनिया में जानी मानी पुलिस अधिकारी किरण बेदी की कलम का जादू भी देख सकते हैं. किरण बेदी से आप यहाँ भी मिल सकते हैं. आमिरखान भी ब्लॉग की इस दुनिया में मौजूद हैं. और शोभा डे  जैसे लोग भी जिनकी कलम के एक एक शब्द का  बेसब्री से इंतज़ार किया जाता है.. अब देखना यह होगा कि ब्लॉग जगत से जुड़े लोग इस अवसर का उपयोग और प्रयोग कैसे करते हैं. बंदूक भी अपनी, गोली भी अपनी और निशाना भी अपनी मर्ज़ी का...! सावधान...! बस प्यार से...केवल इतना सोच कर कि हम भी आने वाला इतिहास रच रहे हैं...!

Thursday, January 07, 2010

ईरानी अधिकारी अपनी स्वयं की जनता के विचारों और शब्दों से डरते हैं--वौयस औफ़ अमेरिका



                वौयस औफ़ अमेरिका ने  समाचार माध्यमों से संपर्क पर निषेध लगाने की करवाई को  ईरान का धमकाने का प्रयास बताया है.  वौयस औफ़ अमेरिका के निदेशक डैनफ़र्थ औस्टिन ने कहा कि यह शर्म की बात है कि ईरानी अधिकारी अपनी स्वयं की जनता के विचारों और शब्दों से डरते हैं.  उन्हें आशा है कि ईरान, जो विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार में विश्वास रखता है, वीओए के साथ विचारों का आदान प्रदान जारी रखेगा जिससे ईरानी जनता और संपूर्ण विश्व के अन्य लोग ईरान में “घटनाओं को दमनकारी मोड़” लेते देख सकें.  गौरतलब है कि ईरानी समाचार माध्यमों ने देश के विदेशी मामलों के गुप्तचर विभाग के उप मंत्री के हवाले से कहा कि चुनावों के बाद हुई हिंसा भड़काने में प्रतिबंधित दलों की भूमिका थी. इसके अलावा ईरान के एक क़ानूनी विशेषज्ञ मोहम्मद सायफ़ज़ादेह ने भी कहा कि ईरान के संविधान में विदेशी प्रसारकों के साथ लोगों को बात करने से रोकने का कोई आधार नहीं है.

Tuesday, January 05, 2010

पाश और बाबा बूझा सिंह पर फिल्म बनाने का एलान


पंजाब की पत्रकारिता में लम्बे समय तक काम करने वाला जुझारू पत्रकार बखाशिंदर अब एक बार फिर सरगरम हो गया है.मुझे लगता  था की अब शायद वह आराम करेगा क्योंकि उसने पंजाब के उस दौर में भी काम क्या जब कलम के साथ साथ अपना सर भी हथेली पर रख कर चलना पड़ता था. सुबह काम पर निकलो तो यह निश्चित नहीं होता था की रात को घर लौटना होगा या नहीं..एक तरफ पुलिस और दूसरी तरफ मिलिटेंट ...दबाव की उस हालत में खबर लिखना हर किसी के बस का रोग नहीं रह गया था...इस सब कुछ की यादें अब तक ताज़ा होने के कारण ही मुझे लगता था की अब बख्शिंदर आराम करेगा  और कविता या ग़ज़ल लिखेगा..पर मुझे किसी मित्र ने कहा वह कुछ करने की योजना बना रहा है...हमारी मुलाकात हो नहीं पाई और बात आयी गयी हो गयी...पर फिर भी मेरे जहन में यही रहा कि वह शायद ब्लू स्टार या उसके बाद के हालातों पर लिखेगा....पर मामला तो कुछ और ही निकला..बखशिंदर तो और भी पीछे की गहरी घटनायों की यादों को ताज़ा करने वाले मुद्दे  बटोर लाया...अब जबकि नक्सलवाद के खिलाफ बहुत कुछ कहा सुना जा रहा है तो मुझे याद आती है 1980 में बनी  एक फिल्म The Naxalites  जिसे बनाया था जाने माने पत्रकार और फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास ने. फिल्म के रिलीज़ होने से पहले ही इसकी कहानी का पेपर-बेक  एडिशन  मेरे हाथ लग गया था. कहानी के अंत में दिखाया जाता है एक पुलिस एंकाउन्टर..जिसमें सभी नक्सलवादी मारे जाते हैं और पुलिस अफसर जोर से चिल्ला कर पूछता है..कोई नक्सलवादी जिंदा बचा हो तो अपने हाथ उठा कर बाहर आ जाये...! इस पर एक मासूम बच्चा सामने आता है और कहता है मेरा नाम सूरज है...और यह था आरम्भ...!.... कभी कभी मुझे नंदिता दास  की फिल्म लाल सलाम की भी याद आती और इसी मुद्दे पर बनी कुछ और फिल्मों की भी. आखिकार यह समस्या रातो रात तो पैदा नहीं हुयी थी. इसके पीछे बहुत से कारण हैं जिन्हें लम्बे अरसे तक नज़रंदाज़ किया गया या फिर गलत ढंग से हल करने के प्रयास हुए जो नाकाम होते रहे...यहाँ मुझे  याद आ रहा  है एक और

वीडियो संकलन  जो इसी मुद्दे पर बना था  पर मुझे मालूम नहीं था कि पंजाब में एक बार फिर यही आवाज़ बुलंद होने जा रही है और वह भी कहीं आस पास ही....कभी कभी मैंने बलबीर परवाना  की कविताएँ और लेख ज़रूर पढ़े थे, या फिर भाई मन्ना सिंह अर्थात मंच के जानेमाने बाबा बोहड़ गुरशरण सिंह जी के नाटकों का मंचन भी ज़रूर देखा था....पर इस से ज्यादा कभी  कुछ मेरी जानकारी में नहीं आ सका. अब इस आवाज़ को बुलंद करने का सिलसिला आगे बढ़ाया  है  पत्रकार बखशिंदर ने  इस लहर के शहीद बाबा बूझा सिंह पर फिल्म का ऐलान  करके.  इसके साथ ही उसने पंजाब के काले दौर में शहीद हुए पाश  पर भी फिल्म बनाने की बात की है. आप आसानी से अनुमान लगा सकते हैं कि यह  बखशिंदर सिंह थका नहीं वह अब भी आराम करने वाला नहीं और जो मैंने सोचा  था वह गलत निकला है पर मुझे अपने इस अनुमान के गलत होने पर ख़ुशी ही हुयी है.                       --रैक्टर कथूरिया 

एक नज़र पंजाब सक्रीन (पंजाबी)  की  तरफ भी

Friday, January 01, 2010

तब राम भी अपना और नानक भी......



              जिंदगी में बहुत बार ऐसे पल भी आते  हैं जब लगता है कि दोराहा या फिर कभी कभी चौराहा ही आ गया. समझ में नहीं आता कि किस  राह पर आगे बढ़ा जाये या किस तरीके से पीछे हटा जाये. शायद वो इन्सान भी कुछ इसी तरह की हालत से गुज़र रहा होगा. एक तरफ दुनिया और दुनियादारी कि चमक दमक  और दूसरी तरफ सन्यास मार्ग के आनंद का आकर्षण. अमृता प्रीतम उसका नक्शा अपने चिर-परिचित  अंदाज़ में खीचती हुयी कहती है....रजनीश जी के पास कोई आया, कुछ घबरा कर बैठा रहा, कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी. फिर उनकी नज़र से हिम्मत बंधी, कहने लगा--"मैं सन्यास लेना चाहता हूँ, लेकिन एक मुश्किल है---मैं रिश्वत लेता हूँ-----आदत हो चुकी है,  छूटती नहीं---फिर सन्यास कैसे होगा ?"

          रजनीश जी कहने लगे---"कोई मुश्किल नहीं तुम रिश्वत भी लेते रहो और सन्यास भी ले लो. सन्यास ले लोगे तो, तो भीतर चेतना अंकुरित हो जाएगी. और जब चेतना फलित होगी,  तो रिश्वत छूट जाएगी. तुम्हे छोडनी नहीं पड़ेगी----वो खुद ही छूट  जाएगी....."
         इस घटना  के रहस्यपूर्ण अर्थों को कुछ और भी आसान करते हुए अमृता प्रीतम ने आगे कहा....उसी रौशनी में कहना चाहती हूँ कि आपका जो भी मज़हब है, उसकी आत्मा को पा लो. फिर जो भी गलत है, किसी दूसरे से जितनी भी नफरत है, वो अपने आप छूट जाएगी छोडनी नहीं पड़ेगी, छूट जाएगी,  और फिर राम भी अपना हो जायेगा,  मोहम्मद और नानक भी अपने हो जायेंगे....