Tuesday, August 10, 2010

वह दिन वह करिश्मा

"....अचानक किसी ने बहुत बेरहमी से मेरे दायें कंधे को बुरी तरह से झकझोरा | मुझे बहुत क्रोध आया ...क्या तरीका है...कौन है ये अशिष्ट व्यक्ति| मैंने सोचा जरूर  कोई जानकार है मैं तुरंत उठ कर बैठ गयी ...और मेरे आशचर्य का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा कि वहां तो कोई भी नहीं है| ये क्या हुआ..अभी किसी ने इतनी बेदर्दी से झकझोरा है ,अभी तक  उन उँगलियों को मैं अपने कंधे पर महसूस कर रही हूँ ..और यहाँ तो दूर दूर तक कोई नहीं है  क्या हुआ कौन था..." इस तरह के सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे इस सच्ची कहानी में जिसे पंजाब स्क्रीन के लिए विशेष तौर पर भेजा है मरीशियस से मधु गजाधर ने.इस रचना पर आप सभी के विचारों की इंतज़ार रहेगी...रेक्टर कथूरिया 
जीवन में कभी कभी कुछ ऐसी चमत्कारिक घटनाएं घटित होती हैं जो इंसान को ये सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि हाँ ईश्वर है ..और वो अपने भक्तों की मदद के  लिए आता है ..वो सन्देश देता है ...वो आगाह करता है ...और वो सदा हमारे साथ हैहाँ ये और बात है कि हम  कभी अपनी अज्ञानता और कभी अपने अहंकार के चलते उसे पहचान नहीं पाते | ऐसी ही कुछ घटनाएं मेरे जीवन  में भी घटित हुई हैं 
 आज तक संसार का कोई विज्ञान इस प्रकार की चमत्कारिक घटनाओं की तह में नहीं पहुच पाया है | लोग कहते हैं कि यदि कुछ चमत्कारिक अनुभव जीवन में प्राप्त हो तो उसे कभी किसी को बताना नहीं चाहिए...सिर्फ अपने तक सीमित रखना चाहिए| वर्ना इन चमत्कारों  का असर नहीं रहता ...या भविष्य में फिर आप के जीवन में ऐसे चमत्कार नहीं होंगे| 
 लेकिन मुझे लगता है कि ये एक बहुत ही छोटी सोच है | मेरे अनुसार यदि कुछ भी ऐसा घटित हो तो उसे अवश्य लोगों के साथ बाँटना चाहिए. इस से ना सिर्फ लोगों की ईश्वर में आस्था बढ़ेगी वरन ये उस मालिक के चरणों में हमारा श्रद्धामय नमन भी होगा जिस ने कठिन वक्त में आकर हमारी  रक्षा  की | इसी विशवास के आधार पर आज मैं आप के समक्ष अपने जीवन की एक  ऐसी सच्ची घटना  प्रस्तुत कर रही हूँ जिन्हें याद कर कर  मैं आज भी सिहर जाती हूँ , आज भी मेरी आँखें भर आती है ..आज भी मैं उस मालिक के समक्ष करोड़ों धन्यवाद समर्पित करती हूँ |
         बात उस वक्त की है जब मेरा बड़ा बेटा केवल तीन वर्ष का और बेटी दो वर्ष की थी | सभी और बच्चों की भांति ये दोनों  बहुत ही प्यारे नन्हे मासूम बच्चे थे हम लोग भारत में छुट्टियाँ बिता कर  लौटे थे  और अभी कुछ दिन और मेरे पति छुट्टियों पर थे इसी बीच  इन के एक मित्र अपनी इंग्लिश पत्नी जिनी के साथ हमसे मिलने के लिए आये | उन दिनों मारीशस में सर्दियों का मौसम था |और समुद्र के किनारे मौसम कुछ गरम होता है | 
 इस लिए बातों बातों में प्रोग्राम बना समुन्द्र के किनारे जाने का  जैसे ही हम लोग वहां पहुचे मेरे पति देव उन के मित्र और उन की विदेशी पत्नी तुरंत स्वीमिंग सूट पहन कर पानी में उतरने के लिए तैयार हो गए मुझे तैरना  पसंद नहीं है इस लिए मैं तो चटाई डाल कर उस सुनहरे रेत पर बैठ गयी जिनी ने मुझ से  पूछा  बच्चों को समुंदर में ले जाने के लिए तो मेरे बेटे ने मना कर दिया लेकिन मेरी बेटी गीतांजली तुरंत उस के साथ पानी में खेलने जाने को तैयार हो गयी हालाँकि  एक बार मेरे मन में आया कि उसे ना जाने दूं पर एक तो जिनी उसे बहुत प्यार करती थी दूसरे मेरे पति देव भी साथ थे इस लिए मैंने रोका नहीं |
         उन लोगों को कुछ देर तो मैंने पानी में तैरते  देखा ,जिनी मेरी बेटी को बहुत प्यार से गोद में लेकर पानी में खिला रही थी | मेरा बेटा भानु मेरे नजदीक बैठ कर रेत से घरोंदा बनाने की कोशिश में लगा हुआ था | सब तरफ से निशचिंत होकर मैं उस मीठी मीठी धूप में पेट के बल चटाई पर लेट गयी अभी मुझे लेटे हुए दस मिनिट भी नहीं हुए होंगे..मुझे अच्छी तरह से याद है की मैं सोयी नहीं थी बस लेटी हुयी थी, समुन्द्र की लहरों से उत्पन्न शोर को सुन रही थी | अचानक किसी ने बहुत बेरहमी से मेरे दायें कंधे को बुरी तरह से झकझोरा | मुझे बहुत क्रोध आया ...क्या तरीका है...कौन है ये अशिष्ट व्यक्ति| मैंने सोचा जरूर  कोई जानकार है मैं तुरंत उठ कर बैठ गयी ...और मेरे आशचर्य का ठिकाना न रहा जब मैंने देख कि वहां तो कोई भी नहीं है| ये क्या हुआ..अभी किसी ने इतनी बेदर्दी से झकझोरा है ,अभी तक  उन उँगलियों को मैं अपने कंधे पर महसूस कर रही हूँ ..और यहाँ तो दूर दूर तक कोई नहीं है  क्या हुआ कौन था  और यदि कोई था तो अब कहाँ गया ..यहाँ तो दूर दूर तक सुनसान है ..आसपास कोई पेड़ भी नहीं जो मैं ये सोचूँ की कोई पेड़ के पीछे न छिप गया हो ..मैं इस असमंजस की अवस्था में थी मैंने अपने बेटे से भी पूछा जो अब तक वहीं रेत का घरोंदा बनाने में लगा हुआ था 
" अभी यहाँ कोई आया था बेटा?"
'नहीं मम्मा ..कोई नहीं आया "
मैं कुछ परेशान सी थी ,सोच रही थी ये सब क्या हो रहा है...
फिर मैंने सोच चलो जाकर अपनी बेटी को देखती हूँ .
जैसे ही मैं समुन्द्र के किनारे पहुची मेरी तो जान ही निकल गयी |मेरी नन्ही सी बेटी पानी में डूब रही थी...पानी के ऊपर उस के सुनहरे घुंघराले  बाल ही नज़र  आ रहे थे |मैं भूल गयी कि मुझे तैरना नहीं आता...मैं चिल्लाते हुए " बचाओ..बचाओ...अरे कोई मेरी बेटी को बचाओ चीखते हुए मैं खुद पानी में उतर गयी .|
तभी मेरे चीखने की आवाज सुन कर मेरे पति जल्दी से तैरते हुए आये ..जल्दी से उन्होंने नन्ही सी बेटी को डूबने से बचाया ..गोद में लिए उसे पानी से बाहर निकले |
तब तक मेरी बेटी बेहोश हो चुकी थी और उस के पेट में बहुत पानी भी चला गया था ..लेकिन उस की साँसे चल रही थी | जिनी मेरी बेटी को छोड़ कर खुद तैरते हुए  दूर निकल गयी थी | भूल तो मेरी ही थी मुझे अपनी बेटी को किसी के साथ ऐसे छोड़ना ही नहीं चाहिए था...मेरे मन में संशय आया भी था कि उसे रोक लूं  पर मैं दबा गयी | 
हम लोग जल्दी से उसे लेकर क्लिनिक भागे..जहाँ डाक्टर्स ने उसे तुरंत प्राथमिक चिकित्सा दी ,ओक्सिजन दी बहुत भाग दौड़ कर मेरी बेटी को खतरे से बचा लिया|
इस सब में लगभग पांच घंटे लग गए इन पांच घंटों में मैं ना जाने कितनी बार मरी | आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे |
जब वो खतरे से बाहर हुई तो डाक्टर्स ने कहा की यदि और थोड़ी देर हो गयी होती तो हम कुछ नहीं कर सकते थे |सुन कर मैं कांप गयी तब ही मेरे पतिदेव बोले वो तो अचानक मधु वहां आ गयी वर्ना तो....वर्ना तो....
अब मुझे ख्याल आया ..कि अरे मैं खुद कहाँ आई. थी ... वो तो किसी ने झकझोर कर मुझे उठा कर वहां भेजा था...कौन था वो ...किसकी उँगलियों ने पकड़ कर झकझोरा था मुझे ? वो मेरा परमात्मा था ..वो मेरा मालिक था ..हां मैं मूर्ख उसे पहचान भी ना सकी. 
हाय रे .. ,मेरी बच्ची तो मौत के मुंह में जा रही थी मेरे मालिक ने आकर उसे मौत से बचाया और मैं पैर पकड़ कर धन्यवाद भी न दे सकी...मेरे भगवान् खुद चल कर आये और मैं पहचान भी ना सकी|
और तब मैं फूट फूट कर रोने लगी ..सब ने समझाया कि अरे अब तो बेटी खतरे से बाहर है अब रोओं नहीं ...
तब मैंने रो रो कर बताया कि मेरे साथ क्या हुआ था ..कैसे मैं झकझोर कर उठा कर भेजी गयी |उस वक्त सब की आँखे भर आई|
आज मेरी बेटी एक बहुत सफल मेकेनिकल  इंजीनियर है ...बहुत बड़ी कंपनी में काम कर रही है लेकिन मैं आज भी उस हादसे को भुला नहीं पाती हूँ...आज भी मैं उस घडी को याद कर के काँप जाती हूँ ..वो द्रश्य आज भी मेरी आँखों के सामने है  |मैं उस अद्रश्य शक्ति को करोड़ों नमन करती हूँ ...बारम्बार धन्यवाद देती हूँ और यही प्रार्थना करती हूँ कि जैसे विपत्ति की घडी में आकर आपने मेरी बच्ची की जान बचाई वैसे ही मालिक दुनिया  की हर माँ की ऐसे ही मदद करना और आप सभी पाठकों से यही प्रार्थना करती हूँ कि उस मालिक पर अपना विशवास बनाये रखना | बड़ा दयालु है ..हम सब का पालनहार है वो |   ------मधु गजाधर 


मां.....!


डूब जाना ही गर इश्क की तहजीब है तो या रब,
मुझे डूबने में लुत्फ़ की तौफीक फरमा दे...! 


कविता कार्यशाला

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