मधु गजाधर का नाम सामने आते ही दिल और दिमाग में एक साथ बहुत कुछ दिखाई देने लगता है बिलकुल उसी तरह जैसे अचानक अँधेरी रात में आसमान से बिजली कोंध उठे और पल भर के लिए एक साथ बहुत कुछ दिख जाए. उसके बाद फिर अन्धेरा. अन्धेरा मैंने इस लिए कहा की मधु के बारे कुछ कहना बहुत कठिन है. दिल बहुत से सुझाव भेजता है पर उन्हें देख कर दिमाग चकरा जाता है की आखिर कहां से शुरू करें? उसकी कविता से, उसके किसी लेख या आलेख से, या फिर उसके किसी रेडियो टी वी के कार्यक्रमों से जुडी किसी याद से. उसकी सफलतायों की सूची इतनी लम्बी है कि जल्दी में समाप्त नहीं होती पर अपने आप को छूपाये रखने और अपनी प्राप्तियों को तुच्छ समझने की उसकी आदत का अनुमान मुझे तब हुआ जब मैंने कहा मधु जी अपने बारे कुछ तो कहिये. बहुत बार कहने पर जो जवाब मिला उसे आप भी देखिये," अपने बारे में कुछ लिखना न जाने क्यों मुझे इतना भारी लगता है | कलम उठती हूँ रख देती हूँ ...फिर उठती हूँ फिर रख देती हूँ और ऐसे ही दिन हफ्ते महीने गुजर जाते है | इस का कारण शायद ये है कुछ ऐसी विशेषता नहीं है मेरे अन्दर जिस पर कुछ लिखा जाए ,अपने बारे में बहुत कुछ बताने को नहीं है...एक अति साधारण सी स्त्री ..जो अति साधारण शकल सूरत, स्वभाव की द्ठ निशचयी , मेहनती ,अद्भुद स्मरण शक्ति वाली और सदा कुछ नया तलाशती आँखों,और सोच के साथ जीने वाली मैं जो जीवन बहुत कुछ करना चाहती थी कर नहीं पायी बहुत कुछ सीखना चाहती थी सीख नहीं पायी बहुत कुछ कहना चाहती थी कह नहीं पायी...वक्त इतनी तेजी से गुजर गया |"
थोडा और कुरेदा तो जवाब था, "मेरे जीवन में दो ही ऐसी बाते हुई जिन पर मैं गर्व कर सकती हूँ...प्रथम तो बेटी के रूप में जन्म लेना और दूसरा भारत में मेरा जन्म होना...और ये दो बातें ऐसी थी जिन का चयन करने का अधिकार मेरा नहीं था इस इश्वर की कृपा समझ कर गदगद हो जाती हूँ |और फिर जो कुछ जीवन में पाया वो सब इन्ही दो वरदानों से जुड़ा रहा |" मैंने जन्म और परिवार के बारे में जानना चाहा तो कहने लगीं: देहली के एक अति सज्जन, साहित्य प्रेमी ,देश प्रेमी परिवार में मेरा जन्म हुआ| पापा की पीड़ी में कोई बेटी नहीं जन्मी थी सो पुरातन पंथी परिवार होते हुए भी प्रथम संतान के रूप में जन्मने पर भी मेरे जन्म का स्वागत किया गया | बचपन प्रारंभ से ही अति साहित्यिक वातावरण में गुजरा |मुझे आज भी भली भांति याद है जब हमारे तिलक बाजार देहली ६ वाले घर में अक्सर शाम को साहित्यिक बैठके हुआ करती थी | गोपाल प्रसाद व्यास जी , नीरज, बाल मुकुंद मिश्र जी, काका हाथरसी जी बेकल उत्साही जी, ओम प्रकाश आदित्य जी जैसे महानुभावों का आगमन होता था|
पारिवारिक माहौल और संस्कारों ने साहित्य और संगीत की तरफ भी बढ़ाया. मधु गजाधर ने बताया कि मेरा सौभाग्य ही था कि पति के रूप में मैंने न सिर्फ एक बहुत पढ़े लिखे विद्वान पुरुष को पाया वरन चरित्र और व्यवहार से एक अति दुर्लभ ऐसे मानव को पाया जिन के मन में नारी जाति के प्रति बहुत सम्मान की भावना थी| मेरे पतिदेव ही मेरे गुरु सिद्ध हुए और उन के सान्निध्य में मैंने फ्रेंच भाषा के साथ साथ अनेक विषयों पर गहन जानकारी प्राप्त की |मैं तीन संतान की माँ हूँ | एक बेटा और दो बेटिया| बच्चों ने विदेश में जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त की |
पारिवारिक जिम्मेदारियों और साहित्य से लगाव दोनों के साथ तालमेल बैठाना कोई कम कठिन नहीं होता. पर मधु इस में भी पारंगत हैं. कहती हैं,"बच्चों के और घर परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए मैंने मारीशस के नेशनल चेनल से रेडियो और टीवी के प्रोग्राम्स प्रस्तुत करने शुरू किये| मैं रेडियो पर दो लाइव प्रोग्राम्स सप्ताह में दो बार देती हूँ|"
मैं उत्सुक था यह जानने को कि ये प्रोग्राम कौन से हैं? पूछा तो जवाब मिला
मेरा घर मेरा संसार के अंतर्गत घर संसार से सम्बंधित विषयों पर और आप की चिठ्ठी मिली प्रोग्राम के अंतर्गत पत्रों द्वारा भेजी गयी पारिवारिक ,सामाजिक, मानसिक समस्याओं पर चर्चा करती हूँ| मेरे रेडियो और टीवी के प्रोग्राम्स मारीशस भर में और मारीशस से बाहर बहुत पसंद किये जाते है| इन प्रोग्रामों के माध्यम से मैंने हिंदी भाषा ,भारतीय संस्कृति , भारतीय भोजन, आयुर्वेद,भारत के तीज त्योहारों की बहुत जानकारी लोगों तक पहुचाई है | टीवी के लिए भी महीने में दो प्रोग्राम्स बनाती हूँ| स्वाद स्वास्थ्य सौन्दर्य और दूसरा है दीपांजली | क्या होता है आपके इस कार्यक्रम दीपांजली में तो पता चला कि यह तो एक नयी सामाजिक क्रान्ति कि शुरुआत है. मधु जी ने बताया,"दीपांजलि प्रोग्राम के अंतर्गत मैंने देश की समस्त महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने का बीड़ा उठाया है |इस प्रोग्राम्स के अंतर्गत मैं अनेक प्रकार के होम बिजनेस प्रारंभ करने के प्रयोगात्मक तरीके बताती हूँ.| दीपांजलि प्रोग्राम के माध्यम से बहुत सी महिलायें आज अपने पैरों पर खड़ी हैं|प्रोग्राम्स की दो सफलताएं रही प्रथम तो लोगों में हिंदी भाषा में बात करने का प्रचलन हुआ दूसरा इन प्रोग्राम्स के माध्यम से मैं हिन्दू और मुस्लिम्स दोनों को एक दूसरे के प्रति बहुत प्रेम और सम्मान की भावना लिए एक मंच पर लाने में सफल हो पायी हूँ जो अपने में एक उदहारण है | अब आगे क्या नया कर रहीं हैं आप. भविष्य के लिए भी मधु के पास ठोस योजनायें हैं,"मैंने बहुत देशों की यात्रायें की है और वो सब अनुभव एक पुस्तक के रूप में तयार करने की चेष्टा है |साथ ही आजकल तीन पुस्तकों को एक साथ लिखने में सलंगनहूँ|" पर अगर आप मधु गजाधर कि कविता का रंग न देखें तो बात अधूरी रहेगी. ....डूब जाना ही गर इश्क की तहजीब हैं तो या रब ! मुझे डूबने में लुत्फ़ की तौफिक फरमा दे. |
सुबह की किरण का देवनहार अगर तू है ,
तो रात की स्याही का खुदा क्या कोई और है ?
...लिए मन्नतों का टोकरा मैं निकली थी अपने घर से ,
तेरे दर तक आते आते या खुदा ! न मन्नत रही न मैं.
....ख़्वाबों का क्या है बंद आँखों में उतर ही आते है ,
खुली आँखों से देखे ख्वाब की ताबीर गजब होती है.
ना उम्मीदी के अंधेरों से घबरा मत ऐ दिल,
उम्मीदों की हवाएं भी चिरागों को बुझा देती हैं
उम्मीदों की हवाएं भी चिरागों को बुझा देती हैं
मेरे ख्वाबों की ताबीर हो ये ख्वाब तो नहीं है मेरा,
मेरे ख्वाबों की दुनिया में मुझे बस रहने दे मालिक नक़्शे कदम पर चलने की हसरत तो है हमको ,
पर वक्त की ये हवाएं तो निशां ही मिटाए जाती हैमैं पूछती तो हूँ तुझ से पर जवाब के लिए नहीं,
क्यों बनायीं तूने दुनिया, अब क्यों मिटा रहा है
बिखरना तो जिंदगी में लाजिम है एक दिन ,
बिखरे जो गुलाब की मानिंद तो खुशबुओं में सिमटे रहोगे.
कश्तियाँ किनारों से लग जाती हैं उन मेहरबानों की ,
जिन की कश्तियों में दूआओं का असबाब(सामान) भरा होता है |
गलियां कूचे,मंदिर मस्जिद घर आँगन की बात ही छोड़ो ,
दिल से निकली हर दुआ में जिन्दगी भर के लिए सबाब(पुन्य) होता है |
यूँ तो मैंने उस जहाँ के मालिक को कभी देखा नहीं है मगर,
हर माँ की आँखों में उस के होने का एहसास होता है |
जिन्दगी के पन्नो पर क्या लिखूं ,क्या मिटाऊं मेरे मालिक ,
कि तुझ से तुझी को मांगने का जज्बात जवां होता है |
तस्वीरों की बात: सब से ऊपर वाली तस्वीर में मधु गजाधर मरिशिअस के प्रधान मन्त्री डाक्टर नवीन रामगुलाम और उनकी पत्नी वीणा रामगुलाम के साथ नजर आ रही हैं.उससे नीचे वाली तस्वीर में पंडित जसराज जी के साथ....आपको यह प्रस्तुतु कैसी लगी इसे अवश्य बताएं.आप उनसे फेसबुक पर भी मिल सकते हैं और उनके ब्लॉग पर भी. आप उनकी अन्य रचनायें भी पढ़ सकते हैं. --रेक्टर कथूरिया
मेरे ख्वाबों की दुनिया में मुझे बस रहने दे मालिक
पर वक्त की ये हवाएं तो निशां ही मिटाए जाती है
क्यों बनायीं तूने दुनिया, अब क्यों मिटा रहा है
बिखरे जो गुलाब की मानिंद तो खुशबुओं में सिमटे रहोगे.
जिन की कश्तियों में दूआओं का असबाब(सामान) भरा होता है |
दिल से निकली हर दुआ में जिन्दगी भर के लिए सबाब(पुन्य) होता है |
हर माँ की आँखों में उस के होने का एहसास होता है |
कि तुझ से तुझी को मांगने का जज्बात जवां होता है |
10 comments:
Subah ki kiran ka dewanhar agar tu hai,
Toh raat ki syahi ka khuda kya koi aur hai?
bahut hi badhiya likha hai.....!!!
Subah ki kiran ka dewanhar agar tu hai,
Toh raat ki syahi ka khuda kya koi aur hai?
bahut hi badhiya likha hai.....!!!
Madhu Gujdhar at Facebook on June 12, 2010 8:10 PM : एक बार फिर स्वयं को असमंजस की स्थिति में पाती हूँ ...एक बार फिर शब्दों के अभाव हो गया है मेरी भाषा के खजाने में, एक बार फिर औकात से बढ कर पाने पर शर्मिंदा हूँ और एक बार फिर नमन करती हूँ आप को भाई कथूरिया जी जो मुझ जैसी अति साधारण स्त्री को आपने इतने ऊंचे मंच पर विराजमान किया है..| आप के स्नेह प्रेम और अपन्तत्व ने मुझे बहुत आन्तरिक शक्ति दी है ...मेरे अन्दर कुछ कर दिखा देने का उत्साह भरा है ...और मैं आप को और आप के माध्यम से मुझ तक पहुचने वाले सभी अपनों को विश्वास दिलाती हूँ की देश धर्म भाषा और संस्कृति के क्षेत्र में आजीवन एक प्रहरी बन कर अपने कर्तव्य को निभाऊंगी |
आईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!
Navin C. Chaturvedi at Facebook on June 12, 2010 at 9:29 PM: "बहुत अच्छा परिचय| बहुत अच्छी रचनाएँ| वैसे मुझे ये वाली ज़्यादा अच्छी लगी:-
खुली आँखों से देखे ख्वाब की ताबीर ग़ज़ब होती है|"
बहुत अच्छा परिचय .. ऐसे व्यक्तित्वों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है !!
मेरा जो अनुमान था वह सही सिद्ध हुआ ,मैंने बात-चीत के क्रम में ही समझ लिया था कि मैंने
मधु जी के रूप में एक असाधारण व्यक्तित्व से दोस्ती करने में सफलता पा ली है , अब तो मै
अपने सौभाग्य पर न चाहते हुए भी गुरूर कर सकता हूँ .
सचमुच बहुत ही शानदार परिचय.....मधु जी के बारे में जान कर जहाँ मन में ख़ुशी होती है...प्रशंसा के भाव आते हैं वहीँ पर ज़िन्दगी जीने के लिए....
....ऊंचा उठकर आकाश छूने के लिए एक प्रेरणा भी मिलती है....घर परिवार की सभी ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए बड़े बड़े लोगों से मुलाकात करना और उनसे सवाल पूछना...सच बहुत ही गर्व होता है मधु जी जैसी भारतीय नारी पर
...आप उनका कोई रेडिओ टीवी का प्रोग्राम लिंक भी जोड़ देते तो कितना अच्छा होता....!
Madhu ji ke bare mein padh kar bahut hi achcha laga.unki jitni bhi tarif ki jaye kam hi hai.unki kavitaye bahut hi sachchai se bhari hoti hai, marmik hoti hai.meri shubh kamanayein unke sath hain
I have enjoyed reading about you.
My congratulations on your accomplishments.
Please continue to spread happiness and sunshine around you.
=Yogendra Kumar Nagpal
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