Monday, November 24, 2025

धर्मेंद्र ...वह सीधा-सादा हीरो जिसने दिल जीत लिए

Neelima Sharma on Dharmendera Death News for Punjab Screen Readers on 24th November 2025 at 18:20

जीवन संग्राम को अपने शब्दों में सहेजते हुए ---नीलिमा शर्मा

धर्मेंद्र भारतीय सिनेमा की उस परंपरा से आते हैं जहाँ अभिनेता सितारे होने से पहले इंसान होते थे। पंजाब के लुधियाना ज़िले के सहनेवाल (Sahnewal) कस्बे में 8 दिसंबर 1935 को जन्मे धर्मेंद्र का बचपन साधारण, संस्कारों में डूबा हुआ और गाँव की मिट्टी की महक से भरा हुआ था। वह हमेशा कहते रहे, “मैं गाँव की मिट्टी से निकला हुआ एक सीधा-सादा आदमी हूँ, सितारा बनना कभी सपना नहीं था, बस काम की तलाश में चला आया था।” उनके पिता स्कूल में हेडमास्टर थे और माँ धार्मिक स्वभाव की गृहिणी। धर्मेंद्र अक्सर याद करते रहे कि घर में प्यार, अनुशासन और स्वाभिमान तीनों बराबर मात्रा में मौजूद थे। इसी वातावरण ने उनके व्यक्तित्व में वह विनम्रता और सहजता भर दी जिसने बाद में उन्हें लाखों दिलों की धड़कन बनाया।

धर्मेंद्र जब जवान हुए तो फिल्मों के प्रति आकर्षण बढ़ा। वह स्वीकारते  थे कि बचपन में वह दिलीप कुमार को देखकर दीवाने हो गए थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “मैंने दिलीप साहब को पर्दे पर देखा तो लगा यही बनना है, बस कोई रास्ता मिल जाए।” संघर्ष से भरी शुरुआत थी। एक फिल्मी पत्रिका के टैलेंट कॉन्टेस्ट में 1958 में चुने गए, और फिर मुंबई की राह पकड़ ली। मुंबई उन दिनों आसान शहर नहीं था। रहने के लिए जगह कम, काम मिलना मुश्किल लेकिन हिम्मत और उम्मीद बहुत बड़ी थी। वह कहते थे  “मुंबई ने मुझे बहुत रुलाया, लेकिन हर आँसू की कीमत बाद में मुस्कान बनकर लौटी।”

धरम जी के फिल्मी करियर की शुरुआत 1960 की फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे से हुई, लेकिन असली पहचान धीरे-धीरे बनना शुरू हुई। उनका आकर्षक व्यक्तित्व, सरल संवाद-शैली और मासूम-सी मुस्कान दर्शकों को अपनी ओर खींचती चली गई। शुरुआती दौर में उन्हें सीरियस और रोमांटिक किरदार मिले। नूतन, मीना कुमारी और माला सिन्हा जैसे कलाकारों के साथ काम करते हुए उनकी अभिनय क्षमता और व्यक्तित्व दोनों तराशते गए। मीना कुमारी के साथ उनकी जोड़ी ने तो 1960 के दशक में नई ऊँचाई छू ली। उस समय के एक इंटरव्यू में मीना कुमारी ने कहा था, “धर्मेंद्र में वह सादगी है जो अक्सर कलाकारों में कामयाबी के बाद खो जाती है।”

धीरे-धीरे यह बात स्पष्ट होने लगी कि धर्मेंद्र केवल खूबसूरत चेहरे और दमदार कद-काठी वाले अभिनेता नहीं, बल्कि भीतर से बेहद संवेदनशील और जज़्बाती कलाकार हैं। उनकी आँखों में दर्द और प्रेम को अभिव्यक्त करने की एक दुर्लभ क्षमता थी। वह कहते थे “मैंने कभी अभिनय को अभिनय की तरह नहीं किया, मैं जो महसूस करता था वही कैमरे पर बह जाता था।”

उनकी फिल्म अनुपमा (1966) इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। इस फिल्म में उन्होंने एक शांत, शर्मीले और संवेदनशील युवक का किरदार निभाया बिना किसी दिखावे के, बस आँखों से बोलते हुए। हृषिकेश मुखर्जी उनकी अभिनय क्षमता से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने कहा था कि धर्मेंद्र की आँखें किसी भी संवाद से ज़्यादा गहरी बात करती हैं।

इसके बाद उनकी फिल्मी यात्रा कई धाराओं में बहने लगी। एक ओर वह रोमांटिक नायक रहे, दूसरी ओर कॉमेडी में भी कदम रखा और फिर 1970 के दशक में एक्शन हीरो के रूप में उभरे। यहीं से उन्हें “He-Man of Bollywood” कहा जाने लगा। पर धर्मेंद्र स्वयं इस उपाधि को हल्के हास्य के साथ लेते हुए कहते “अरे भाई, ही-मैन वगैरह कुछ नहीं… मैं तो बस मेहनत करता था और लोग प्यार करते गए।”

उनकी एक्शन छवि फिल्मों जैसे शोले, धर्म वीर, प्रतिज्ञा, राजा जानी और यादों की बारात से मजबूत हुई। खासकर शोले में वीरू का किरदार उनके करियर का ऐसा मील का पत्थर बना जिसने उन्हें सदाबहार लोकप्रियता दी। आज भी ‘बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना’ जैसा संवाद लोगों की ज़ुबान पर है, जबकि दिलचस्प बात यह है कि यह संवाद जितना हल्का-फुल्का था, उतना ही भावनात्मक भी।  मौसी वाला सीन तो आज भी एपिक सीन माना जाता हैं I धर्मेंद्र उस समय के इंटरव्यू में कहते हैं, “वीरू के अंदर जो शरारत थी, वह असल में मेरे अंदर की ही शरारत थी। मैं वैसा ही हूँ मज़ाकिया, हँसमुख और कहीं-कहीं बच्चे जैसा।”

धर्मेंद्र केवल एक्शन और कॉमेडी तक सीमित नहीं रहे। उनकी संजीदा फिल्मों सत्यकाम, मां, छुपा रुस्तम, काला पत्थर में उनकी अभिनय गहराई खुलकर सामने आई। सत्यकाम को तो उनकी सबसे बेहतरीन फ़िल्मों में से एक माना जाता है। सत्यवादी, आदर्शवादी और भीतर से टूटते हुए व्यक्ति की भूमिका यह रोल बहुत जटिल था। धर्मेंद्र ने एक साक्षात्कार में कहा था, “सत्यकाम मेरे दिल के सबसे करीब है… जब फिल्म खत्म हुई तो लग रहा था जैसे मैं खुद भी टूट गया हूँ।”

धर्मेंद्र ने 300 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने कई बेहतरीन एक्शन, रोमांटिक और हास्य भूमिकाएँ निभाईं, जिससे उनका अभिनय स्पेक्ट्रम बहुत व्यापक रहा। शोले जैसी फिल्म में उनकी भूमिका आज भी बॉलीवुड की आइकॉनिक छवियों में गिनी जाती है। उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला (1997)। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण (2012) से सम्मानित किया गया, जो नागरिकों को दिया जाने वाला तीसरा सबसे बड़ा सम्मान है। अन्य पुरस्कारों में FICCI “Living Legend” अवार्ड, IIFA लाइफटाइम अचीवमेंट, ज़ी सिने लाइफटाइम अचीवमेंट, मुम्बई अकादमी ऑफ़ मूविंग इमेज (MAMI) अवार्ड, आदि। उनके योगदान के लिए अन्य सार्वजनिक सम्मान, जैसे वारल्ड आयरन मैन अवार्ड भी प्राप्त हुए। 

धर्मेंद्र ने फिल्म निर्माण (विजेता प्रोडक्शन) में भी कदम रखा और अपने बेटे सनी देओल को बेताब जैसी फिल्मों से लॉन्च किया। उन्होंने अपनी कंपनी के ज़रिए घायल जैसी फिल्म बनाई, जिसे नेशनल फिल्म अवार्ड भी मिला। 

उनके परिवार ने भी अभिनय में अपनी पहचान बनाई I उनके बेटे सनी देओल, बॉबी देओल, और बेटी ईशा देओल सभी फ़िल्मी दुनिया में सक्रिय रहे। 

1970 के दशक में धर्मेंद्र को उनकी सच्ची और मजबूत बॉडी के चलते “सबसे हैंडसम” अभिनेताओं में गिना गया। उनकी स्क्रीन पर सरलता, बहुत मानवीय भावनाएँ व्यक्त करने की क्षमता और दोस्ताना छवि ने उन्हें लाखों लोगों का प्रिय बना दिया।

उन्होंने अपने करियर में नागरिक जीवन को भी महत्व दियाI राजनीति में सक्रिय रहकर जनता की सेवा की।

उनका राजनीतिक सफर फिल्मी करियर जैसा नहीं रहा, राजनीति उन्हें रास नहीं आई। वह खुलकर कहते हैं, “मैं राजनीति के लिए बना ही नहीं था… वहाँ बहुत बातें होती हैं और मैं बातों से ज़्यादा दिल से काम करने में यक़ीन रखता हूँ।

उनकी निजी जिंदगी भी हमेशा चर्चा में रही। 1954 में प्रकाश कौर से उनकी शादी हुई थी और फिर 1980 में हेमा मालिनी से विवाह ने मीडिया को खूब सामग्री दी, लेकिन धर्मेंद्र इन बातों पर कम ही बोलते हैं। एक बार एक पत्रकार ने निजी जीवन पर सवाल किया तो उन्होंने बड़े शांत स्वर में कहा था, “ज़िंदगी कई मोड़ों से गुज़रती है, और हर मोड़ इंसान को कुछ सिखाता है। इंसान प्यार में भी सच्चाई ढूँढता है और रिश्तों में भी।”

उनके जीवन में परिवार हमेशा प्राथमिकता रहा। वह अपने बच्चों सनी, बॉबी, ईशा और अहाना सभी के बेहद करीब हैं। वह कहते हैं, “मैंने परिवार को हमेशा जोड़कर रखा… मेरी कोशिश यही रही कि बच्चे एक-दूसरे से जुड़े रहें।”

बॉलीवुड में उनकी छवि एक सरल, जमीन से जुड़े, मिलनसार और प्यार बाँटने वाले इंसान की रही है। उनके सभी साथी कलाकार उनकी दिलदारी और विनम्रता की मिसालें देते हैं। अमिताभ बच्चन ने एक कार्यक्रम में कहा था कि धर्मेंद्र की मुस्कान में एक ऐसा अपनापन है कि कोई भी उनसे पहली मुलाकात में ही सहज हो जाता है। धर्मेंद्र खुद कहते रहे हैं, “मैंने कभी खुद को स्टार समझा ही नहीं… मैं आज भी वही गाँव वाला धर्मू हूँ।”

जीवन के अंतिम वर्षों में भी धर्मेंद्र सक्रिय रहे।  उनकी अंतिम फिल्म इक्कीस आगामी माह पच्चीस दिसंबर को रिलीज होगी I बाकी समय में वह खेती-बाड़ी करते रहे ,अपने फार्महाउस में पेड़ लगाते,फलों के बगीचे लगाते और प्रकृति के साथ समय बिताते दिखाई देते रहे। वह कहते थे , “शहर ने मुझे नाम दिया, लेकिन सुकून आज भी मिट्टी ही देती है।”

उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स में भी वही सादगी झलकती  रही I कभी किसान के कपड़ों में, कभी फूल तोड़ते हुए, कभी पुराने गीत गुनगुनाते हुए। वह अक्सर कहते रहे, “ज़िंदगी के हर दिन का शुक्रिया अदा करो… जो मिल गया वह भी अच्छा, जो नहीं मिला उसकी भी शिकायत मत करो।”

धर्मेंद्र का फिल्मी योगदान बेजोड़ है। उन्होंने पाँच दशकों से अधिक समय तक दर्शकों का मनोरंजन किया। 350 से भी अधिक फिल्मों में काम किया, जिसमें विविधता इतनी है कि वह भारतीय सिनेमा के सबसे ‘पूर्ण अभिनेता’ कहे जा सकते हैं।

उनकी फिल्मों ने परिवार, प्रेम, दोस्ती, ईमानदारी, संघर्ष और मानवीय भावनाओं के हर रंग को छुआ। चाहे शोले का मस्तीभरा वीरू हो, अनुपमा का संवेदनशील अशोक, सत्यकाम का सत्यप्रिय सत्यप्रकाश, राजा जानी का रोमांटिक-शरारती रईस या प्रतिज्ञा का बहादुर नायक हर किरदार अपनी जगह अविस्मरणीय है। उनका “मैं जट यमला पगला दीवाना” गाने पर किया गया नृत्य आज भी उनका सिग्नेचर नृत्य माना जाता हैं I 

धर्मेंद्र का मानना  रहा कि अभिनेता का असली काम दर्शकों के दिल में जगह बनाना है। उन्होंने एक बार कहा था, “लोग आपको तब तक याद रखते हैं जब तक आप उनके दिलों को छूते रहते हैं… मैंने कोशिश की कि मेरे हर किरदार में इंसानियत बनी रहे।”

उनका यह कथन उनकी पूरी यात्रा का सार लगता है। सफलता की ऊँचाइयों के बावजूद उनका दिल सरल, इंसानियत से भरा और प्रेम से ओतप्रोत रहा। शायद यही कारण है कि वह केवल एक अभिनेता नहीं, बल्कि कई पीढ़ियों की एक भावनात्मक स्मृति बन चुके हैं ।

धर्मेंद्र का जीवन संघर्ष, मेहनत, सफलता, प्रेम, संवेदनशीलता और सादगी का एक अद्भुत मिश्रण है। वह उस पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं जहाँ अभिनय केवल तकनीक नहीं, बल्कि आत्मा का प्रवाह था। आज भी जब वह स्क्रीन पर आते हैं, तो वही पुरानी गर्मजोशी और अपनापन महसूस होता है। उनके सफर को देखते हुए लगता है कि वह अपनी एक बात को हमेशा सच साबित करते रहे—

“मैं दिलों का आदमी हूँ… और दिल से ही काम करता हूँ।”

धर्मेंद्र के जीवन को एक आदर्श जीवन तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन उनके जीवन स्मृतियों को सेलिब्रेट जरूर किया जा सकता हैं...!

Yah sahi

Friday, October 24, 2025

स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने अवेयरनेस कैंप लगाया

 Emailed on Friday 24th October 2025 at 4:45 PM By PIB Jalandhar Regarding SBI Awareness Camp

LIC और निजी बैंकों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए 


बठिंडा
: 24 अक्टूबर 2025: (PIB जालंधर/ /इनपुट पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

यूं तो, इकोनॉमिक्स की बारीकियां समझने वाले लोग वैसे भी बहुत कम हैं, लेकिन लोगों का एक बड़ा तबका ऐसा भी है जिन्हें यह भी याद नहीं रहता कि उनके घर में कितने पैसे हैं और घर के बाहर बैंक या पोस्ट ऑफिस में कितने रखे पड़े हैं? कुछ को पैसे कमाने की होड़ में यह सब याद नहीं रहता और कुछ मुसीबतों में ऐसे घिरे रहते हैं कि उनका दिमाग चकरा जाता है। वे भूल जाते हैं कि मेहनत की कमाई कहां रखी थी। बहुत से लोग विदेश चले जाते हैं और किसी के साथ कोई और अनहोनी हो जाती है। कुछ लोगों को बैंकिंग का काम थोड़ा मुश्किल लगता है और कुछ लोग मौत या बीमारी की वजह से बैंकों से दूर हो जाते हैं।

इस तरह, बैंकों में बहुत सारा पैसा जमा हो जाता है, जिसका वारिस कौन है, यह कंप्यूटर पर देखने पर भी तुरंत पता नहीं चलता। बैंक वाले ऐसी रकम को बड़ी ज़िम्मेदारी से संभालते हैं और उसे रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया को सौंप देते हैं।

इसके बाद भी आगे की प्रक्रिया चलती रहती है। अगर ऐसी रकम का वारिस अचानक मदद के लिए आ जाए, तो उसे भी निराश होने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन फिर भी आप इसे किस्मत का खेल कह सकते हैं। अगर पैसा आपके हाथ में आए और फिर अनजान लोगों के हाथ में चला जाए, तो इसे भी माया का मायाजाल ही कहा जा सकता है।

इन बातों के बावजूद, बैंक नहीं चाहते कि आप अपनी मेहनत की कमाई को किस्मत का मारा समझें। वे हमेशा यह पक्का करने की कोशिश में रहते हैं कि आपकी मेहनत की कमाई किसी न किसी तरह आप तक पहुँच ही जाए। इसके लिए वे लगातार मेहनत भी कर रहे हैं।

इस बारे में केंद्रीय वित्त मंत्रालय और स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी SLBC के निर्देश भी बिल्कुल साफ़ हैं। इन्हीं निर्देशों के मुताबिक, बठिंडा के लीड बैंक, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया बठिंडा की तरफ से टीचर्स होम बठिंडा में एक अवेयरनेस कैंप लगाया गया।

इस कैंप के दौरान ऐसी रकमों पर डिटेल में बात की गई, जिन पर कोई दावा नहीं कर रहा है। इस अवेयरनेस कैंप की अध्यक्षता डिप्टी जनरल मैनेजर अभिषेक शर्मा ने की। मौजूद लोगों को उद्गम पोर्टल के ज़रिए ऐसी रकम के बारे में भी अवेयर किया गया।

इस मौके पर, लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया यानी LIC और दूसरे सरकारी और प्राइवेट बैंकों के रिप्रेजेंटेटिव ने भी इस कैंप में हिस्सा लिया। इस मौके पर रीजनल मैनेजर मिस्टर रोहित कक्कड़, चीफ डिस्ट्रिक्ट मैनेजर मिस्टर कुलभूषण बंसल और चीफ मैनेजर मिस्टर जिमी मेहता, चीफ मैनेजर मिस्टर गुरजीत सिंह भी मौजूद थे।

इस कैंप से कई लोगों को फाइनेंशियली और मनी मैनेजमेंट से जुड़े नियमों के ज़रिए फ़ायदा हुआ।

Tuesday, October 14, 2025

नूरपुर बेट, लुधियाना में सजी यादगारी किसान चौपाल

कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय//Azadi Aa Amrit Mahotsav//प्रविष्टि तिथि: 14 OCT 2025 at 7:19 PM by PIB Delhi

केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों से संवाद किया


केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने नूरपुर बेट, लुधियाना में किसान चौपाल में किसानों से संवाद किया और कृषि यंत्रों का अवलोकन किया

नूरपुर बेट, लुधियाना में किसान सजी यादगारी किसान चौपाल 

कृषि मंत्री ने धान की कटाई के लिए एसएसएमएस फिटेड कंबाइन हार्वेस्टर का लाइव डेमो देखा

कृषि मंत्री श्री चौहान ने गेहूं की बुआई के लिए हैप्पी स्मार्ट सीडर मशीन का प्रदर्शन भी देखा

केंद्रीय कृषि मंत्री ने किसान भाइयों-बहनों से पराली ना जलाने और पराली का उचित प्रबंधन करने की अपील की

श्री शिवराज सिंह ने दोराहा गांव में "समन्यु हनी" मधुमक्खी पालन केंद्र का भी किया अवलोकन

नई दिल्ली//लुधियाना: 14 अक्टूबर 2025:(PIB Delhi//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के पंजाब आने से पंजाब को एक बार फिर से नई आशाएं बंधीं हैं। इस बार की चौपाल चर्चा में केंद्र सर्कार और किसानों की आपसी दूरियां कम हुई हैं और नज़दीकियां बढ़ने की उम्मीदें जगी हैं। दोराहा और नूरपुर बेदी इलाकों के लोगों में काफी उत्साह पाया गया। 

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आज पंजाब प्रवास के दौरान ग्राम नूरपुर बेट, लुधियाना में किसानों से चौपाल पर चर्चा की, कृषि यंत्रों का प्रदर्शन देखा और दोराहा गांव में "समन्यु हनी" मधुमक्खी पालन केंद्र का अवलोकन किया। गौरतलब है कि मधुमक्खी पालन  में किसान वर्ग का आकर्षण काफी बढ़ा है। किसान परिवारों की महिलाएं भी इस क्षेत्र में बहुत काम कर रही हैं। 


इस अवसर पर कृषि मंत्री ने
धान की कटाई के लिए एसएसएमएस फिटेड कंबाइन हार्वेस्टर और गेहूं की बुआई के लिए हैप्पी स्मार्ट सीडर मशीन का लाइव डेमो देखा। इस मशीनी विकास से पंजाब की खुशहाली भी तेज़ी से बढ़ेगी ही। तकनीक हमेशां ही महत्वपूर भूमिका अदा करती है। 


इस मौके पर मीडिया से बातचीत करते हुए श्री चौहान ने कहा कि
नूरपुर ऐसा गांव है जहां साल 2017 से पराली नहीं जलाई जाती। किसानों ने यहां पराली के उचित प्रबंधन का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि कंबाइन को चलाने के बाद पराली का बड़ा हिस्सा खेत में ही फैल कर बिखर जाता है, इकट्ठा नहीं होता। इसी तरह स्मार्ट सीडर से सीधे सीडिंग भी उत्कृष्ट तकनीक है। यह एक तरफ पराली ढकता है और दूसरी ओर इसका सिस्टम मिट्टी और दाने को कॉम्पेक्ट कर लेता है। श्री चौहान ने कहा कि मशीनों के इस्तेमाल से किसानों के श्रम, धन और समय की अत्यधिक बचत होती है।

कृषि और भूमि के मामलों में गहरी समझ रखने अले केंद्रीय मंत्री श्री चौहान ने कहा कि उचित पराली प्रबंधन के साथ बुआई करने से दो साल के बाद मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ेगी जिससे यूरिया के कम इस्तेमाल की आवश्यकता होगी। साथ ही एक एकड़ में 2 क्विंटल अधिक उत्पादन भी होगा। केंद्रीय कृषि मंत्री ने किसान भाइयों-बहनों से पराली ना जलाने और पराली का उचित प्रबंधन करने की अपील भी की।


इसके बाद कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह ने दोराहा गांव में "समन्यु हनी" मधुमक्खी पालन केंद्र का भी अवलोकन किया। यहां किसानों से संवाद कर कृषि मंत्री ने मधुमक्खी पालन व्यवसाय के नए मॉडल और नवाचारों की जानकारी प्राप्त की और कृषि मंत्रालय की संबंधित योजनाओं के बारे में भी चर्चा की।

****//आरसी/एआर//(रिलीज़ आईडी: 2179076) 

Monday, October 13, 2025

पद्मश्री ओंकार सिंह पाहवा को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड

Email From Brij Bhushan Goyal on Monday 13th Oct 2025 at 4:32 PM Regarding Onkar Singh Pahwa 

पाहवा की उद्यमशीलता हर युवा में आत्मविश्वास जगाती है


लुधियाना
: 13 अक्टूबर 2025: (*बृजभूषण गोयल//पंजाब स्क्रीन)::

एससीडी गवर्नमेंट कॉलेज, लुधियाना के पूर्व छात्र संघ ने पद्मश्री ओंकार सिंह पाहवा को उनके संस्थान, जहाँ से उन्होंने वर्ष 1973 में स्नातक किया था, द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किए जाने की सराहना की है, जो एक दुर्लभ सम्मान है। कॉलेज को यहाँ आयोजित क्षेत्रीय युवा एवं विरासत महोत्सव में उन्हें सम्मानित करने का यह प्रतिष्ठित अवसर प्राप्त हुआ, जहाँ पंजाब के 24 कॉलेजों की टीमें अपने शिक्षकों के साथ उपस्थित थीं। प्राचार्य डॉ. गुरशरण जीत सिंह संधू ने कहा कि यह कॉलेज के लिए गर्व का क्षण है क्योंकि पाहवा की उद्यमशीलता की यात्रा हर युवा में आत्मविश्वास जगाती है।

पाहवा के लिए एक और उपयुक्त सम्मान कॉलेज की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘सतलुज’ के वर्ष 2024-2025 के शीर्षक पृष्ठ पर राष्ट्रपति से पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त करते हुए उनका चित्र है, जिसका इस अवसर पर विमोचन किया गया। छात्रों को संबोधित करते हुए पाहवा ने उस कॉलेज के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जिसने उन्हें तैयार किया है। उन्होंने छात्रों को स्टार्टअप के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि हर पहला कदम छोटा होता है। 

उन्होंने प्रतिष्ठित शिक्षकों की भी प्रशंसा की। समारोह में उद्योग जगत के एक और दिग्गज सुरिंदर सिंह भोगल, जो 1960 के दशक के मध्य के पूर्व छात्र हैं, के अलावा कई अन्य पूर्व छात्र भी उपस्थित थे। ओ.पी. वर्मा, के.बी. सिंह, बृजभूषण गोयल, पी.डी. गुप्ता, नवदीप सिंह, गुरमीत सिंह, गीतांजलि पबरेजा, डॉ. सजला कालरा, हरीश कौरा, गुरमीत सिंह, अशोक धीर, डॉ. विकास लूंबा, दलबीर सिंह मौली, परमजीत चंदर, डॉ. सौरभ (सभी पूर्व छात्र) और कॉलेज के पूर्व प्राचार्यों ने कॉलेज के पूर्व छात्र संबंधों की प्रशंसा की। गोयल ने बताया कि पाहवा ने कॉलेज के लिए अपने परोपकारी कार्यों में पहले ही काफी मदद की है।

*बृज भूषण गोयल, पूर्व छात्र संघ, एससीडी राजकीय महाविद्यालय, लुधियाना के संगठन सचिव हैं। 

होलिस्टिक होम्योपैथिक क्लिनिक द्वारा निःशुल्क शिविर

Monday 13th October 2025 at 10:06//07 AM Regarding Medical Camp

बहरामपुर (गुरदासपुर) में शिविर से हुआ लोगों को फायदा  


बहरामपुर: (ज़िला गुरदासपुर):: (गुरदासपुर स्क्रीन)::

लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से होलिस्टिक होम्योपैथिक क्लिनिक मुकेरियां की ओर से ग्राज़िट्टी इंटरएक्टिव आईटी कंपनी पंचकुला के सहयोग से एक मुफ़्त होम्योपैथिक मेडिकल कैम्प का आयोजन किया गया। यह शिविर राधा कृष्ण मंदिर, बेहरामपुर में लगाया गया।

इस शिविर के दौरान डॉ. अमन पठानिया और डॉ. दीपक ठाकुर के नेतृत्व में अनुभवी डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की टीम ने 100 से अधिक मरीजों की जांच कर उन्हें मुफ़्त होम्योपैथिक दवाइयां प्रदान कीं। मरीजों को जीवनशैली, आहार और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी गई।

डॉ. अमन पठानिया ने कहा कि होम्योपैथी एक प्राकृतिक और सुरक्षित पद्धति है जो शरीर को अंदर से संतुलित करती है। वहीं, डॉ. दीपक ठाकुर ने बताया कि इस तरह के कैंप ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने और लोगों को सही उपचार की दिशा में प्रेरित करने में मददगार साबित हो रहे हैं।

इस शिविर का आयोजन और प्रबंधन पवन कुमार, राजेश कुमार, पंडित अजय शास्त्री और सुभाष चंद्र जी द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रयासों से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच आसान होती है।

स्थानीय निवासियों ने डॉक्टरों की टीम का धन्यवाद किया और कहा कि इस प्रकार के शिविर गाँवों के लोगों के लिए एक वरदान हैं। आयोजकों ने बताया कि आने वाले महीनों में आसपास के अन्य क्षेत्रों में भी ऐसे स्वास्थ्य शिविर लगाए जाएंगे

Friday, September 05, 2025

“ गुरुबिना ज्ञान कहां, ज्ञान बिना इंसान कहां”

Received From M S Bhatia on Thursday 4th September 2025 at 12:28 PM Regarding Teachers Day

शिक्षक दिवस 2025-हमारे शिक्षकों को नमन//मनिंदर सिंह भाटिया

गुरुबिना ज्ञान कहां, ज्ञान बिना  इंसान कहां! को समझा रहे हैं जानेमाने लेखक एम एस भाटिया 


भारत में, शिक्षक दिवस 5 सितंबर को, प्रख्यात दार्शनिक, शिक्षक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर मनाया जाता है। उनका मानना ​​था कि "शिक्षकों को देश का सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क होना चाहिए"। उनका संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना दशकों पहले था: किसी राष्ट्र की प्रगति उसकी कक्षाओं में समर्पित शिक्षकों से शुरू होती है।

ए.एस. सीनियर सेकेंडरी स्कूल, खन्ना, ज़िला लुधियाना में, 1968 से 1975 तक की शैक्षिक यात्रा ने हमारे जीवन में एक नया अध्याय शुरू किया। साधारण कक्षाओं और समर्पित शिक्षकों के साथ, उस समय उन मूल्यों और अनुशासन की नींव रखी गई थी जिनके लिए यह विद्यालय आज भी जाना जाता है।

जब हम शिक्षक दिवस 2025 मनाते हैं, तो हम उन शिक्षकों को कृतज्ञतापूर्वक याद करते हैं जिन्होंने धैर्य और प्रतिबद्धता के साथ हमारे बाल मन को आकार दिया। उनकी विरासत आज भी शिक्षकों का मार्गदर्शन करती है तथा हमें याद दिलाती है कि यद्यपि पद्धतियां बदलती रहती हैं, परंतु शिक्षा की भावना शाश्वत रहती है।

उस समय स्कूल में खन्ना से जितने छात्र पढ़ने आते थे, लगभग उतने ही आसपास के गाँवों जैसे छोटा खन्ना, राहौं, बहोमाजरा, मोहनपुर, इकलाहा, सलाना, अमलोह, सेह आदि से भी। हालाँकि उस समय ज़्यादातर छात्रों के माता-पिता आर्थिक रूप से बहुत मज़बूत नहीं थे, फिर भी छात्रों में संतोष का भाव था। कुछ सीखने की ललक थी। मुझे याद है कि हमारे कई दोस्त दोपहर का खाना अचार के साथ परांठे के रूप में लाते थे और हम साथ बैठकर खाते थे।

हर दिन स्कूल में सुबह की प्रार्थना सभा की गूँज, कॉपियों की खनक और शिक्षकों का अपने छात्रों के प्रति स्नेह, ताज़गी भरा होता था। शिक्षक दिवस पर, रोज़मर्रा के इस जादू को याद किया जाता है: हम उन शिक्षकों का धन्यवाद करते हैं जो जिज्ञासा जगाते थे, कांपते हाथों को थामते थे और संभावना को उद्देश्य में बदल देते थे। वे छात्रों को स्वच्छता अभियान, पौधारोपण, सड़क सुरक्षा और सामाजिक जागरूकता में भी आगे बढ़ाते थे और उन्हें ज्ञान को सेवा में बदलना सिखाते हैं। परिणाम न केवल अंकतालिकाओं में, बल्कि व्यवहार में भी स्पष्ट दिखाई देते थे: उन विद्यार्थियों में जिन्होंने ध्यान से सुना, प्रश्न पूछे, सहयोग किया और नेतृत्व किया।

यद्यपि विद्यालय के विद्यार्थी सभी अध्यापकों का आदर करते थे, परन्तु उनमें सबसे अधिक आदर तत्कालीन प्रधानाचार्य मदन गोपाल चोपड़ा जी का था, जो 25 वर्षों (5.11.1949 से 14.10.1974) तक विद्यालय के प्रधानाचार्य रहे और जिनके समय में यह विद्यालय पंजाब के शीर्ष तीन या चार विद्यालयों में से एक था। यहाँ के विद्यार्थी बोर्ड परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त करते थे और बहुत बड़ी संख्या में विद्यार्थी  बोर्ड की कक्षाओं में मैरिट पर आते थे। श्री मदन गोपाल चोपड़ा जी के बाद, श्री रिखी राम शर्मा जी 15.10.1974 से प्रधानाचार्य बने। मास्टर विनोद कपिला जी और लाजपत राय जी उप-प्रधानाचार्य थे, मास्टर अविनाश चंदर जी और मास्टर नरेश चंद जी भी बाद में स्कूल के प्रधानाचार्य बने।

कई और नाम भी याद आ रहे हैं। मास्टर हेम राज, मास्टर सोम नाथ- हिंदी- साहित्य और संस्कृत, राम सरूप चोपड़ा, मास्टर गुरुमीत सिंह, मास्टर हरद्वारी लाल- हिंदी, मास्टर वासुदेव-संस्कृत, मास्टर तिलक राज- हिंदी, मैडम गोपाल शर्मा, अविनाश चंद्र, मास्टर नरेश नौहरिया, मास्टर ओ.पी. टककियार, मास्टर महिंदर पाल- गणित, मास्टर ओम प्रकाश नौहरिया-गणित, मास्टर जोगिंदर सिंह- पंजाबी, मास्टर बचन सिंह, मास्टर निर्मल सिंह- पीटी, मास्टर ओ.पी. वर्मा- वॉलीबॉल, मास्टर जोगिंदर पाल गुप्ता- अंग्रेजी, मास्टर मुख्तियार सिंह सामाजिक अध्ययन और एनसीसी एयर विंग के प्रभारी, मास्टर उजागर सिंह, मास्टर सुरजीत सिंह और मास्टर तरलोचन सिंह स्पोर्ट्स, मास्टर गुरदयाल सिंह, मास्टर एम.एल. कांडा, मास्टर मंगत राय, मास्टर हरद्वारी लाल, मास्टर तिलक राज, मास्टर राम नाथ, मास्टर खरैती लाल जी (सीनियर) तथा मास्टर खरैती लाल जूनियर, मास्टर कमल कुमार शर्मा इतिहास और हिंदी (लुधियाना से), मास्टर राम दास जी (बाद में दूसरे सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल बने), मास्टर देस राज, मास्टर रूलाराम-अंग्रेजी/हिंदी और हॉकी कोच, मास्टर मदन लाल, पीटीआई मास्टर करनैल सिंह तथा प्रेम सिंह, मास्टर धर्मपाल गर्ग, मास्टर हरि ओम, मास्टर विजय मोहन भांबरी, मास्टर सतपाल मैनरो, मास्टर देस राज  गणित-मास्टर वेद प्रकाश  हिंदी तथा मास्टर शिव प्रकाश 5वीं कक्षा में एबीसी पढ़ाते थे, मास्टर सतपाल वर्मा, मास्टर साधु राम-ड्राइंग, मास्टर बचना राम, मास्टर एन के वर्मा, मास्टर जतिंदर वर्मा, मास्टर मेहर सिंह, मास्टर हरिओम, मास्टर अजीत कुमार - फिजिक्स (कुछ समय बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी), ड्राइंग मास्टर गुरमेल सिंह, पंजाबी मास्टर करम सिंह, मास्टर धरम पाल अंगरीश, मास्टर तरलोचन सिंह गिल, *मास्टर भोला नाथ जी गणित पढ़ाने में समर्पण की मिसाल थे। वे हर सवाल ब्लैकबोर्ड पर हल करते थे।

स्कूल में ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ बेटा और बाप दोनों एक साथ शिक्षक रहे, जैसे मास्टर अयोध्या प्रकाश जी और मास्टर नरेश चंद खन्ना। वी.पी. कपूर - भौतिकी और मास्टर हेमराज - सरल गणित।

मास्टर कृष्ण कुमार शर्मा जी 1972 में हमारे स्कूल आए थे। उन्होंने शिक्षक-छात्र संबंधों में एक नया अध्याय शुरू किया। बाद में वे स्कूल के प्रधानाचार्य भी बने। पंजाबी पढ़ाने के अलावा, वे वॉलीबॉल के एक बहुत अच्छे कोच भी थे। उनके प्रयासों से स्कूल की वॉलीबॉल टीम न केवल राज्य स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिद्ध हुई।

शिक्षकों की भावना छात्रों को एक नई पीढ़ी के रूप में गढ़ने की थी, न कि आज की तरह व्यावसायिक संबंध बनाने की। सीमित बुनियादी ढाँचे और अभिभावकों में कम साक्षरता दर के बावजूद, कई प्रतिभाशाली छात्र अच्छे मानवीय मूल्यों वाले थे। वेतन बहुत ज़्यादा नहीं था, पेंशन योजना भी नहीं थी, यह शिक्षकों में नौकरी के प्रति उत्साह और संस्था प्रमुख द्वारा मानव संसाधन के अच्छे प्रबंधन का परिणाम था, जिसने हमारे संस्थान में बहुत बड़ी भूमिका निभाई और देशभक्ति का जोश इन संस्थानों की आत्मा था।

हमारे सम्मानित शिक्षकों में से एक श्री ओम प्रकाश शर्मा जी-कॉमर्स के शिक्षक थे और एनसीसी की आर्मी विंग के प्रभारी थे, जो अंबाला में सेवानिवृत्त जीवन जी रहे हैं। मास्टर सुरजीत सिंह बैडमिंटन कोच थे।

वैसे तो हर बैच में स्कूल के विद्यार्थी प्रथम स्थान और मैरिट में आते थे, लेकिन 1974 का 10वीं और 1975 का 11वीं का बैच आज भी नहीं भूला है, जब 1974 में 10वीं में सुधीर घई पंजाब में तीसरे और जगदीश घई पंजाब में सातवें स्थान पर रहे थे। 1974 में 10वीं कॉमर्स में लखमीर सिंह पंजाब में प्रथम आए थे। 1975 में 11वीं में सुधीर घई नॉन-मेडिकल में पंजाब में प्रथम और जगदीश घई पंजाब में पाँचवें स्थान पर रहे थे। इसी तरह, मेडिकल स्ट्रीम में रविंदर कुमार अरोड़ा टॉपर रहे थे। सुधीर घई और जगदीश घई ज़िला स्तर पर 10वीं और 11वीं दोनों में क्रमशः पहले और दूसरे स्थान पर रहे थे*।

इन शिक्षकों द्वारा पढ़ाए गए कई छात्र आईएएस, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, सीए, शिक्षक, बैंकर या अन्य सरकारी कार्यालयों में कर्मचारी और अधिकारी बने। कुछ ने अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया और सफल उद्यमी बने। हमारे कुछ मित्र समाज सेवा और राजनीति के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं।

हमारे एक मित्र अविनाश सिंह छतवाल, जिन्होंने पहले एमबीबीएस और बाद में आईएएस किया। वे पंजाब के सचिव के पद तक पहुँचे।

खेलों में भी, उस समय के कई प्रतिभाशाली छात्रों ने ख्याति अर्जित की और जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर स्कूल का नाम रोशन किया।

सन 1972 में, स्कूल में एक खो-खो टीम बनाई गई और मुझे याद है कि 12 में से 9 खिलाड़ी आठवीं-डी सेक्शन से चुने गए थे। मुझे कुछ नाम याद हैं - छोटे खन्ने से दर्शन सिंह और दर्शन लाल, रसूलडा से प्रीतम सिंह और मेहर सिंह आदि और मैं भी उस टीम का हिस्सा था। हमने 1973 में सुधार में आयोजित जिला स्तरीय खेलों में खो-खो में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

अंत में, मैं यही कहूँगा कि हमारे गुरु ही हमारी ताकत हैं। वे ही हैं जिन्होंने हमारे सपनों को उड़ान दी। हम आज जो भी हैं यह सब हमारे शिक्षकों की कड़ी मेहनत, सच्चाई और प्रेम की वजह से है जिन्होंने हमारी बहुत मजबूत नींव रखी ।

हम अपने आदरणीय शिक्षकों, विशेषकर प्रधानाचार्य मदन गोपाल चोपड़ा जी जैसे शिक्षकों के प्रति उनके समर्पण और मार्गदर्शन के लिए भी आभारी हैं, जिन्होंने हमारे विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आज, 50 वर्षों के बाद, हमारे गुरुओं के प्रति हमारा सम्मान हमारे हृदय में पहले से कहीं अधिक है।

शिक्षक दिवस की एक बार फिर शुभकामनाएँ!

(लेखक 1968 से 1974 तक ए.एस. सीनियर सेकेंडरी (तत्कालीन हायर सेकेंडरी) स्कूल, खन्ना के छात्र रहे और 5वीं, 8वीं और 10वीं कक्षा में मैरिट सूची में स्थान प्राप्त किया।)

Sunday, August 24, 2025

भाजपा कैंप पर पुलिस का हमला–डॉ. सुभाष शर्मा भी गिरफ्तार

Received from Hardev Singh on Sunday 24th August 2025 at 20:20 Regarding Police Action on BJP Workers

और गरमा सकता है टकराव का यह आंदोलन 


चण्डीगढ़
: 24 अगस्त 2025: (मीडिया लिंक रविंदर//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

खरड़ विधानसभा के मुल्लापुर बाज़ार, न्यू चंडीगढ़ स्थित खेड़ा मंदिर के नज़दीक केंद्र सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को लेकर लगाए गए भाजपा कैंप को पंजाब सरकार ने पुलिस बल के सहारे कुचलने की कोशिश की। इस दौरान पंजाब भाजपा के उपाध्यक्ष डॉ. सुभाष शर्मा समेत कई कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी का विरोध करते हुए कार्यकर्ताओं ने जमकर नारेबाज़ी की और इसे आप सरकार की तानाशाही व गुंडागर्दी करार दिया।

डॉ. शर्मा ने तीखा प्रहार करते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी सरकार पूरी तरह बौखला चुकी है। राज्य भर में भाजपा कार्यकर्ताओं को गांवों में जाने से रोका जा रहा है, रास्तों पर पुलिस की नाकेबंदी कर दी गई है। उन्होंने कहा, “एक तरफ पंजाब गैंगस्टरों का अड्डा बनता जा रहा है, नशा खुलेआम बिक रहा है, लेकिन मान सरकार इन गंभीर मुद्दों पर आंखें मूंदे हुए है। उल्टा, उसे भाजपा कार्यकर्ताओं के शांतिपूर्ण कैंप से डर लग रहा है।”

डॉ. शर्मा ने पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर कटाक्ष करते हुए कहा कि मान सरकार उनके बताए “साम, दाम, दंड, भेद” के रास्ते पर चल रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भाजपा कार्यकर्ता न तो रुकने वाले हैं, न ही दबाव में झुकने वाले। पुलिस की लाठीचार्जनुमा कार्रवाई से कई कार्यकर्ता घायल भी हुए हैं।

उन्होंने कहा कि आश्चर्य की बात है कि आप सरकार खुद जगह-जगह कैंप लगाती है तो उसे लोकतंत्र कहते हैं, लेकिन भाजपा जनता को योजनाओं की जानकारी दे तो उसे ‘डाटा चोरी’ का नाम देकर रोक दिया जाता है।

“यह सरकार की हताशा और भाजपा के बढ़ते जनसमर्थन का सबूत है। साफ़ है कि मान सरकार की जमीन खिसक चुकी है और वह भाजपा की बढ़ती ताक़त से डरी हुई है।”