Monday, November 24, 2025

धर्मेंद्र ...वह सीधा-सादा हीरो जिसने दिल जीत लिए

Neelima Sharma on Dharmendera Death News for Punjab Screen Readers on 24th November 2025 at 18:20

जीवन संग्राम को अपने शब्दों में सहेजते हुए ---नीलिमा शर्मा

धर्मेंद्र भारतीय सिनेमा की उस परंपरा से आते हैं जहाँ अभिनेता सितारे होने से पहले इंसान होते थे। पंजाब के लुधियाना ज़िले के सहनेवाल (Sahnewal) कस्बे में 8 दिसंबर 1935 को जन्मे धर्मेंद्र का बचपन साधारण, संस्कारों में डूबा हुआ और गाँव की मिट्टी की महक से भरा हुआ था। वह हमेशा कहते रहे, “मैं गाँव की मिट्टी से निकला हुआ एक सीधा-सादा आदमी हूँ, सितारा बनना कभी सपना नहीं था, बस काम की तलाश में चला आया था।” उनके पिता स्कूल में हेडमास्टर थे और माँ धार्मिक स्वभाव की गृहिणी। धर्मेंद्र अक्सर याद करते रहे कि घर में प्यार, अनुशासन और स्वाभिमान तीनों बराबर मात्रा में मौजूद थे। इसी वातावरण ने उनके व्यक्तित्व में वह विनम्रता और सहजता भर दी जिसने बाद में उन्हें लाखों दिलों की धड़कन बनाया।

धर्मेंद्र जब जवान हुए तो फिल्मों के प्रति आकर्षण बढ़ा। वह स्वीकारते  थे कि बचपन में वह दिलीप कुमार को देखकर दीवाने हो गए थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “मैंने दिलीप साहब को पर्दे पर देखा तो लगा यही बनना है, बस कोई रास्ता मिल जाए।” संघर्ष से भरी शुरुआत थी। एक फिल्मी पत्रिका के टैलेंट कॉन्टेस्ट में 1958 में चुने गए, और फिर मुंबई की राह पकड़ ली। मुंबई उन दिनों आसान शहर नहीं था। रहने के लिए जगह कम, काम मिलना मुश्किल लेकिन हिम्मत और उम्मीद बहुत बड़ी थी। वह कहते थे  “मुंबई ने मुझे बहुत रुलाया, लेकिन हर आँसू की कीमत बाद में मुस्कान बनकर लौटी।”

धरम जी के फिल्मी करियर की शुरुआत 1960 की फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे से हुई, लेकिन असली पहचान धीरे-धीरे बनना शुरू हुई। उनका आकर्षक व्यक्तित्व, सरल संवाद-शैली और मासूम-सी मुस्कान दर्शकों को अपनी ओर खींचती चली गई। शुरुआती दौर में उन्हें सीरियस और रोमांटिक किरदार मिले। नूतन, मीना कुमारी और माला सिन्हा जैसे कलाकारों के साथ काम करते हुए उनकी अभिनय क्षमता और व्यक्तित्व दोनों तराशते गए। मीना कुमारी के साथ उनकी जोड़ी ने तो 1960 के दशक में नई ऊँचाई छू ली। उस समय के एक इंटरव्यू में मीना कुमारी ने कहा था, “धर्मेंद्र में वह सादगी है जो अक्सर कलाकारों में कामयाबी के बाद खो जाती है।”

धीरे-धीरे यह बात स्पष्ट होने लगी कि धर्मेंद्र केवल खूबसूरत चेहरे और दमदार कद-काठी वाले अभिनेता नहीं, बल्कि भीतर से बेहद संवेदनशील और जज़्बाती कलाकार हैं। उनकी आँखों में दर्द और प्रेम को अभिव्यक्त करने की एक दुर्लभ क्षमता थी। वह कहते थे “मैंने कभी अभिनय को अभिनय की तरह नहीं किया, मैं जो महसूस करता था वही कैमरे पर बह जाता था।”

उनकी फिल्म अनुपमा (1966) इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। इस फिल्म में उन्होंने एक शांत, शर्मीले और संवेदनशील युवक का किरदार निभाया बिना किसी दिखावे के, बस आँखों से बोलते हुए। हृषिकेश मुखर्जी उनकी अभिनय क्षमता से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने कहा था कि धर्मेंद्र की आँखें किसी भी संवाद से ज़्यादा गहरी बात करती हैं।

इसके बाद उनकी फिल्मी यात्रा कई धाराओं में बहने लगी। एक ओर वह रोमांटिक नायक रहे, दूसरी ओर कॉमेडी में भी कदम रखा और फिर 1970 के दशक में एक्शन हीरो के रूप में उभरे। यहीं से उन्हें “He-Man of Bollywood” कहा जाने लगा। पर धर्मेंद्र स्वयं इस उपाधि को हल्के हास्य के साथ लेते हुए कहते “अरे भाई, ही-मैन वगैरह कुछ नहीं… मैं तो बस मेहनत करता था और लोग प्यार करते गए।”

उनकी एक्शन छवि फिल्मों जैसे शोले, धर्म वीर, प्रतिज्ञा, राजा जानी और यादों की बारात से मजबूत हुई। खासकर शोले में वीरू का किरदार उनके करियर का ऐसा मील का पत्थर बना जिसने उन्हें सदाबहार लोकप्रियता दी। आज भी ‘बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना’ जैसा संवाद लोगों की ज़ुबान पर है, जबकि दिलचस्प बात यह है कि यह संवाद जितना हल्का-फुल्का था, उतना ही भावनात्मक भी।  मौसी वाला सीन तो आज भी एपिक सीन माना जाता हैं I धर्मेंद्र उस समय के इंटरव्यू में कहते हैं, “वीरू के अंदर जो शरारत थी, वह असल में मेरे अंदर की ही शरारत थी। मैं वैसा ही हूँ मज़ाकिया, हँसमुख और कहीं-कहीं बच्चे जैसा।”

धर्मेंद्र केवल एक्शन और कॉमेडी तक सीमित नहीं रहे। उनकी संजीदा फिल्मों सत्यकाम, मां, छुपा रुस्तम, काला पत्थर में उनकी अभिनय गहराई खुलकर सामने आई। सत्यकाम को तो उनकी सबसे बेहतरीन फ़िल्मों में से एक माना जाता है। सत्यवादी, आदर्शवादी और भीतर से टूटते हुए व्यक्ति की भूमिका यह रोल बहुत जटिल था। धर्मेंद्र ने एक साक्षात्कार में कहा था, “सत्यकाम मेरे दिल के सबसे करीब है… जब फिल्म खत्म हुई तो लग रहा था जैसे मैं खुद भी टूट गया हूँ।”

धर्मेंद्र ने 300 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने कई बेहतरीन एक्शन, रोमांटिक और हास्य भूमिकाएँ निभाईं, जिससे उनका अभिनय स्पेक्ट्रम बहुत व्यापक रहा। शोले जैसी फिल्म में उनकी भूमिका आज भी बॉलीवुड की आइकॉनिक छवियों में गिनी जाती है। उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला (1997)। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण (2012) से सम्मानित किया गया, जो नागरिकों को दिया जाने वाला तीसरा सबसे बड़ा सम्मान है। अन्य पुरस्कारों में FICCI “Living Legend” अवार्ड, IIFA लाइफटाइम अचीवमेंट, ज़ी सिने लाइफटाइम अचीवमेंट, मुम्बई अकादमी ऑफ़ मूविंग इमेज (MAMI) अवार्ड, आदि। उनके योगदान के लिए अन्य सार्वजनिक सम्मान, जैसे वारल्ड आयरन मैन अवार्ड भी प्राप्त हुए। 

धर्मेंद्र ने फिल्म निर्माण (विजेता प्रोडक्शन) में भी कदम रखा और अपने बेटे सनी देओल को बेताब जैसी फिल्मों से लॉन्च किया। उन्होंने अपनी कंपनी के ज़रिए घायल जैसी फिल्म बनाई, जिसे नेशनल फिल्म अवार्ड भी मिला। 

उनके परिवार ने भी अभिनय में अपनी पहचान बनाई I उनके बेटे सनी देओल, बॉबी देओल, और बेटी ईशा देओल सभी फ़िल्मी दुनिया में सक्रिय रहे। 

1970 के दशक में धर्मेंद्र को उनकी सच्ची और मजबूत बॉडी के चलते “सबसे हैंडसम” अभिनेताओं में गिना गया। उनकी स्क्रीन पर सरलता, बहुत मानवीय भावनाएँ व्यक्त करने की क्षमता और दोस्ताना छवि ने उन्हें लाखों लोगों का प्रिय बना दिया।

उन्होंने अपने करियर में नागरिक जीवन को भी महत्व दियाI राजनीति में सक्रिय रहकर जनता की सेवा की।

उनका राजनीतिक सफर फिल्मी करियर जैसा नहीं रहा, राजनीति उन्हें रास नहीं आई। वह खुलकर कहते हैं, “मैं राजनीति के लिए बना ही नहीं था… वहाँ बहुत बातें होती हैं और मैं बातों से ज़्यादा दिल से काम करने में यक़ीन रखता हूँ।

उनकी निजी जिंदगी भी हमेशा चर्चा में रही। 1954 में प्रकाश कौर से उनकी शादी हुई थी और फिर 1980 में हेमा मालिनी से विवाह ने मीडिया को खूब सामग्री दी, लेकिन धर्मेंद्र इन बातों पर कम ही बोलते हैं। एक बार एक पत्रकार ने निजी जीवन पर सवाल किया तो उन्होंने बड़े शांत स्वर में कहा था, “ज़िंदगी कई मोड़ों से गुज़रती है, और हर मोड़ इंसान को कुछ सिखाता है। इंसान प्यार में भी सच्चाई ढूँढता है और रिश्तों में भी।”

उनके जीवन में परिवार हमेशा प्राथमिकता रहा। वह अपने बच्चों सनी, बॉबी, ईशा और अहाना सभी के बेहद करीब हैं। वह कहते हैं, “मैंने परिवार को हमेशा जोड़कर रखा… मेरी कोशिश यही रही कि बच्चे एक-दूसरे से जुड़े रहें।”

बॉलीवुड में उनकी छवि एक सरल, जमीन से जुड़े, मिलनसार और प्यार बाँटने वाले इंसान की रही है। उनके सभी साथी कलाकार उनकी दिलदारी और विनम्रता की मिसालें देते हैं। अमिताभ बच्चन ने एक कार्यक्रम में कहा था कि धर्मेंद्र की मुस्कान में एक ऐसा अपनापन है कि कोई भी उनसे पहली मुलाकात में ही सहज हो जाता है। धर्मेंद्र खुद कहते रहे हैं, “मैंने कभी खुद को स्टार समझा ही नहीं… मैं आज भी वही गाँव वाला धर्मू हूँ।”

जीवन के अंतिम वर्षों में भी धर्मेंद्र सक्रिय रहे।  उनकी अंतिम फिल्म इक्कीस आगामी माह पच्चीस दिसंबर को रिलीज होगी I बाकी समय में वह खेती-बाड़ी करते रहे ,अपने फार्महाउस में पेड़ लगाते,फलों के बगीचे लगाते और प्रकृति के साथ समय बिताते दिखाई देते रहे। वह कहते थे , “शहर ने मुझे नाम दिया, लेकिन सुकून आज भी मिट्टी ही देती है।”

उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स में भी वही सादगी झलकती  रही I कभी किसान के कपड़ों में, कभी फूल तोड़ते हुए, कभी पुराने गीत गुनगुनाते हुए। वह अक्सर कहते रहे, “ज़िंदगी के हर दिन का शुक्रिया अदा करो… जो मिल गया वह भी अच्छा, जो नहीं मिला उसकी भी शिकायत मत करो।”

धर्मेंद्र का फिल्मी योगदान बेजोड़ है। उन्होंने पाँच दशकों से अधिक समय तक दर्शकों का मनोरंजन किया। 350 से भी अधिक फिल्मों में काम किया, जिसमें विविधता इतनी है कि वह भारतीय सिनेमा के सबसे ‘पूर्ण अभिनेता’ कहे जा सकते हैं।

उनकी फिल्मों ने परिवार, प्रेम, दोस्ती, ईमानदारी, संघर्ष और मानवीय भावनाओं के हर रंग को छुआ। चाहे शोले का मस्तीभरा वीरू हो, अनुपमा का संवेदनशील अशोक, सत्यकाम का सत्यप्रिय सत्यप्रकाश, राजा जानी का रोमांटिक-शरारती रईस या प्रतिज्ञा का बहादुर नायक हर किरदार अपनी जगह अविस्मरणीय है। उनका “मैं जट यमला पगला दीवाना” गाने पर किया गया नृत्य आज भी उनका सिग्नेचर नृत्य माना जाता हैं I 

धर्मेंद्र का मानना  रहा कि अभिनेता का असली काम दर्शकों के दिल में जगह बनाना है। उन्होंने एक बार कहा था, “लोग आपको तब तक याद रखते हैं जब तक आप उनके दिलों को छूते रहते हैं… मैंने कोशिश की कि मेरे हर किरदार में इंसानियत बनी रहे।”

उनका यह कथन उनकी पूरी यात्रा का सार लगता है। सफलता की ऊँचाइयों के बावजूद उनका दिल सरल, इंसानियत से भरा और प्रेम से ओतप्रोत रहा। शायद यही कारण है कि वह केवल एक अभिनेता नहीं, बल्कि कई पीढ़ियों की एक भावनात्मक स्मृति बन चुके हैं ।

धर्मेंद्र का जीवन संघर्ष, मेहनत, सफलता, प्रेम, संवेदनशीलता और सादगी का एक अद्भुत मिश्रण है। वह उस पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं जहाँ अभिनय केवल तकनीक नहीं, बल्कि आत्मा का प्रवाह था। आज भी जब वह स्क्रीन पर आते हैं, तो वही पुरानी गर्मजोशी और अपनापन महसूस होता है। उनके सफर को देखते हुए लगता है कि वह अपनी एक बात को हमेशा सच साबित करते रहे—

“मैं दिलों का आदमी हूँ… और दिल से ही काम करता हूँ।”

धर्मेंद्र के जीवन को एक आदर्श जीवन तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन उनके जीवन स्मृतियों को सेलिब्रेट जरूर किया जा सकता हैं...!

Yah sahi

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