Friday, September 13, 2024

जब जेब खाली होती है तो कैसे हो बीमारी में इलाज?

सरकार कैसे बन सकती है गरीबों के लिए लाईफ लाईन?


चंडीगढ़:13 सितंबर 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

जब जेब खाली होती है और कोई न कोई बिमारी बुरी तरह से घेर लेती है तो उस समय यही सवाल मन में उठता है कि काश कोई डाक्टर या अस्पताल हमारे लिए जीवन रेखा बन कर आ आ जाता। कई बार ऐसा हो भी जाता है लेकिन हर बार हर मामले में हर किसी के साथ कहां होता है एशिया चमत्कार? कोशिश की कि ऐसा सवाल समाज और सरकार के सामने रखा जाए। पंजाब और अन्य भारतीय राज्यों में सिवल अस्पताल और अन्य सरकारी स्वास्थ्य संस्थान गरीब और मध्य वर्गीय लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए लाईफ लाईन कैसे बन सकते हैं? जवाब ढूंढ़ने के प्रयासों में कुछ काम की बातें भी सामने आईं। 

एक तथ्य तो यह था कि पंजाब और अन्य भारतीय राज्यों में सरकारी स्वास्थ्य संस्थान, जैसे सिविल अस्पताल, गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसे सफल बनाने के लिए कई सुधार किये जा सकते और  नए कदम उठाए जा सकते हैं। 

इस मकसद के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाना सबसे पहले स्थान पर है। सिविल अस्पताल और अन्य सरकारी संस्थान ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में अधिक संख्या में खोले जाएं ताकि हर व्यक्ति को आसानी से स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। जनसंख्या के मुकाबिले स्वास्थ्य संस्थानों की संख्या भी कम है डाक्टरों की संख्या भी।  इसके साथ ही बहुत सी आवश्यक दवाएं भी सभी को उपलब्ध नहीं होतीं। उन्हें अस्पताल या डिस्पेंसरी से मिली डाक्टर की लिखी पर्ची लेकर बाज़ार  है।  पर महंगी दवाएं ही मिला करती हैं। 

मरीज़ों तक पहुंच बढ़ाने के लिए मोबाइल हेल्थ वैन जैसे कदम भी उठाए जाएं ताकि दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों तक भी स्वास्थ्य सेवाएं  से पहुंच सकें। दूर दराज के गांवों और कस्बों में इसी तरीके से प्रभावी पहुंच हो सकती है जो ज़्यादा लोगों तक फायदा पहुंचा सकेगी। 

अस्पतालों में बुनियादी ढांचे का सुधार भी अब ज़रूरी बन गया है। आधुनिक युग में सरकारी अस्पतालों  बड़े और महंगे अस्पतालों के  बराबर ले जाना ही होगा। इस मकसद के लिए आधुनिक उपकरणों की उपलब्धता और चिकित्सा सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए निवेश भी किया जाए। इस निवेश के लिए गांवों और शहरों से सामर्थ्यवान प्रायोजक भी ढूंढे  हैं। 

समाज में सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों को निजी क्षेत्र के बराबर पहुँचाने के लिए अस्पतालों की साफ-सफाई और व्यवस्था को भी प्राथमिकता दी जाए ताकि संक्रमण और अन्य समस्याएं न हों। इससे इन संस्थानों के प्रति मनोवैज्ञानिक तौर पर भी एक नया विश्वास भी पैदा होगा। अधिक  आकर्षित भी होंगें। 

मुफ्त और किफायती चिकित्सा सेवाएं भी बढ़ाई जा सकें तो बहुत अच्छा होगा। सरकार द्वारा सभी सरकारी अस्पतालों में आवश्यक दवाइयां, जांच और इलाज मुफ्त या किफायती दामों पर उपलब्ध कराए जाएं, खासकर गरीब और मध्यवर्गीय लोगों के लिए। गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को स्वास्थ्य बीमा योजनाओं से जोड़ा जाए ताकि उन्हें आर्थिक बोझ न उठाना पड़े। इस मकसद के लिए तकनीकी उलझनों और बारीकियों को भी पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता तो कम ज़रूर किया जाए। 

सरकार की देखरेख में चलने वाले इन स्वास्थ्य संस्थानों में डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ की पर्याप्त संख्या भी अवश्य पूरी होनी चाहिए। सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में डॉक्टर्स, नर्सेज़ और अन्य स्टाफ की पर्याप्त संख्या होनी चाहिए। इसके लिए मेडिकल स्टाफ की भर्ती और ट्रेनिंग की प्रक्रिया को भी सुधारना चाहिए।

आधुनिक युग की तकनीकों का फायदा उठाते हुए टेलीमेडिसिन जैसी आधुनिक तकनीक का भी उपयोग किया जाना चाहिए। इसको इस्तेमाल करके दूर-दराज के इलाकों में विशेषज्ञ डॉक्टरों से सलाह-मशविरा किया जाना चाहिए तांकि  मरीज़ के लिए बहुत से डॉक्टरों  सम्मिलित राय बनाने में आसानी हो। 

इस मकसद के लिए समय समय पर चलाए जाते स्वास्थ्य जागरूकता अभियान को भी और तेज़ और व्यापक  चाहिए। लोगों में स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए सरकार को नियमित रूप से स्वास्थ्य शिविर भी लगाने चाहिएं और जागरूकता अभियान भी चलाने चाहिए। निवारक स्वास्थ्य सेवाओं, जैसे टीकाकरण और नियमित स्वास्थ्य जांच, पर भी जोर दिया जाए ताकि बीमारियों को रोका जा सके।

इसके साथ ही अस्पतालों का डिजिटलीकरण भी पहल के आधार पर किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य सेवाओं को डिजिटल रूप में उपलब्ध कराया जाए, जैसे ऑनलाइन अपॉइंटमेंट बुकिंग, मेडिकल रिकॉर्ड्स का रखरखाव, और टेली-कंसल्टेशन की सुविधा भी होनी चाहिए। इससे स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता आएगी और लोगों को सुचारू रूप से सेवाएं मिलेंगी।

इस दौर में सर्वाधक ज़रूरत है सभी स्वास्थ्य और चिक्तिसा पैथियों का सम्मान और आपसी सहयोग हो। स्थानीय और पारंपरिक स्वास्थ्य सेवाओं का समावेश अच्छे परिणाम ही लाएगा। आयुर्वेद, योग और अन्य पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को सरकारी अस्पतालों में शामिल किया जाए, जिससे लोगों को वैकल्पिक उपचार का भी लाभ मिले।

इन सभी सुधारों के साथ-साथ, सरकार को स्वास्थ्य के लिए बजट आवंटन बढ़ाना चाहिए और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को निरंतर मॉनिटर करने की आवश्यकता है। इससे सिविल अस्पताल और अन्य सरकारी स्वास्थ्य संस्थान गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए एक सशक्त जीवन रेखा बन सकते हैं।

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