Wednesday 8th March 2023 at 04:02 PM
प्रदीप शर्मा ला रहे हैं संस्कार भारती और TTC की कला वर्कशाप
इप्टा के सहयोग का भी दावा दोहराया प्रदीप शर्मा ने-10 को शुभारम्भ
एक बार एक बहुत बड़े नेता ने जो आजकल बहुत चर्चित भी है उसने भी किसी काम के लिए दबाव डाला लेकिन शर्मा जी नहीं माने। वह सीधे और गुस्ताख़ शब्दों में बोला हम तुम्हें नौकरी करना आज ही सीखा देंगे। कल से तुम्हें यहाँ नहीं आने देंगें। रिटायरमेंट नज़दीक थी। शायद डेड दो साल का समय बाकी था। शर्मा जी ने उसी दिन लौट कर उस नौकरी से अपना त्यागपत्र दे दिया। नाटकों के लोइए डायलॉग लिखने एक अलग बात है और जब ज़िंदगी के रंगमंच पर मुश्किल घड़ियां सामने आती हैं तो फैसला लेना आसान नहीं होता। शर्मा जी ने ऐसे हालात में भी हिम्मतर से काम लिया।
लेकिन सारी भागदौड़ और संघर्षों के के चलते पिता जी हमेशां के लिए साथ छोड़ गए। उस समय लगा दुखों और ज़िम्मेदारियों का पहाड़ टूट पड़ा। जी को प्रगतिशील विचारधारा ने डगमगाने न दिया। संकट का सामना बहादुरी से करते रहे। फिर ज़िंदगी की सब से करीबी हमसफ़र अर्थात पत्नी भी साथ छोड़ गई। उस दुःख ने शर्मा जी को भी तोड़ कर रख दिया। डाक्टर अरुण मित्र, डाक्टर बबीता जैन, एम एस भाटिया, बेनु सतीश कान्त, स्वर्गीय डाक्टर भारत और हम सभी लोग उन्हें ढांढ़स बंधाते रहे।
सर्वाधिक सक्रिय भूमिका निभाई संस्कार भारती की टीम ने। शर्मा जी को फिर से नयी हिम्मत और जोश के साथ दोबारा ज़िंदगी की जंग के लिए तैयार किया। शर्मा जी को भी फैज़ अहमद फैज़ साहिब बहुत पसंद है। जब शर्मा जी गुनगुनाने लगते:
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
पत्नी के बिछुड़ने ख्याल बना रहता। कुछ पल खामोश रह कर फिर भीगी आँखों से अगला शेयर कहते:
वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं
तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के
हम उन्हें हौंसला देते कि मौत ही तो है ज़िंदगी की सच्चाई। सभी के साथ यहॉ होना है। शर्मा जी सारी बात सुन कर अगला शेयर हमें सुनाते:
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन
देखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के!
हम उन्हें रोज़गार और कला की तरफ मोड़ते तो वह गंभीर हो कर देखने लगते। गम के बावजूद ज़नदगी के खर्चे नहीं रुक जाते। वह हाँ ,में सिर हिलाते और फैज़ साहिब का ही शेयर पढ़ते और यह शेयर अपना रंग दिखाता चला गया।
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के!
अब वास्तविक बात यह भी कि अब कला और थिएटर की वर्कशॉप के बहाने पत्नी के गम को दिल में ताज़ा भी रखना है। उन यादों के उजालों के सहारे अँधेरे रास्ते तय करने हैं। पत्नी ने इसका वायदा भी लिया था शर्मा जी से।
अब इस वर्कशॉप का आयोजन ज़िंदगी में बहुत मुश्किलों से फिर से जुटाए गए उत्साह और हिम्मत का ही नतीजा है। नाटकों की जो जो पांडुलिपियां, नावल और कहानियां उनकी गैर हाज़िरी में रद्दी के कबाड़ में चली गई उनका गम भुलाते हुए, जिन जिन लोगों ने धोखे दिए उनके सदमों को भी दरकिनार करते उए, वक्त ने जो ज़ख्म दिए उनको भी भुलाते हुए, ज़िंदगी ने जिन नई चुनौतियों को सामने ला कर खड़ा किया उनकी आंख से आंख मिलाते हुए ही हो रहा है इस कार्यशाला का आयोजन।
शर्मा जी बताते हैं जब कास्टिंग काल दी गई तो पहले ही दिन पचास से ज़्यादा कलाकारों ने निवेदन भेजे। शर्त राखी गई थी कि सभी कलाकार लुधियाना के हों। इस लिए यह गिनती कम नहीं थी। कार्यशाला डॉन चलेगी दस और ग्यारह मार्च को। अप्रैल में नाटकों कजा मंचन हो जाएगा। जब जब कुछ नया तय होगा उसका पता भी हम आपको देते ही रहेंगे। आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी ही।
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टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी
वो सुब्ह कभी तो आएगी
फ़ाक़ों की चिताओं पर जिस दिन इंसाँ न जलाए जाएँगे
ये नरक से भी गंदी दुनिया जब स्वर्ग बनाई जाएगी
वो सुब्ह कभी तो आएगी
आज साहिर लुधियानवी साहिब का जन्म दिन भी है, ख़िराज-ए-अक़ीदत साहिर-उनकी शायरी लोगों के साथ होते अन्याय की बात उनकी गैर मौजूदगी में भी करती रहेगी। शायरी लोगों को जगाती आ है जगाती रहेगी।
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