Wednesday, March 08, 2023

गहन चुनौतियों का सामना करने के बाद आ रही है यह वर्कशाप

Wednesday  8th March 2023 at 04:02 PM

प्रदीप शर्मा ला रहे हैं संस्कार भारती और TTC की कला वर्कशाप 

इप्टा के सहयोग का भी दावा दोहराया प्रदीप शर्मा ने-10 को शुभारम्भ

लुधियाना: 8 मार्च 2023: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

दिग्गज कलाकारों के साथ थिएटर की दुनिया में कई बार कमाल दिखा चुके प्रदीप शर्मा अचानक लुप्त जैसे हो गए थे। ज़िंदगी के झमेलों ने उन्हें बुरी तरह से थका दिया।मंचन की दुनिया से जुड़े बहुत से साथी भी हालात ने या तो कुछ दूर  दराज के स्थानों पर शिफ्ट कर कर दिए या ज़िंदगी की गुज़र बसर ने एक अंतराल पैदा कर दिया। इसी बीच सरकारी नौकरी ने अपनी गर्दिश के रंग दिखाए। कभी इधर कभी उधर यह एक आम सी बात हो गई। एक बरगद का पेड़ फ़िरोज़पुर रोड पर आज भी मौजूद है। किसी सर्वेक्षण में ड्यूटी वहां लगी हुई थी। सड़क के किनारे एक बहुत बड़ा व्यापारिक संस्थान था जिसके मालिकों को लगा यह बरगद हमारी शानोशौकत को खराब करता है। उन्होंने डयूटी पर तायनात सिवल इंजिनियर प्रदीप शर्मा से सम्पर्क किया कि सड़क के रस्ते में आने का बहाना बना कर इसे रातो रात कटवा दें मुँह माँगा मौल ऐडा कर दिया जाएगा। लेकिन इधर मामला ही गड़बड़ा चूका था। प्रदीप शर्मा जी को उस पेड़ से इश्क जैसा लगाव होने लगा था। झुलसा देने गर्मी  के दिन चल रहे थे। उस भीषण गर्मी में शर्मा जी अपने साथियों और मज़दूरों के साथ बरगद के उसी पेड़ की छाया के नीचे दोपहर का भोजन करते और कुछ पल सांस ले कर फिर काम में जुट जाते। उस छाया ने एक ममत्व भी दिया। शर्मा जी चाहते तो मन मांगीं रकम जेब में डालते और पेड़ कटवा देते लेकिन मन नहीं माना। जिस ने हर रोज़ छाया दी उसे कटवाना उन्हें घोर पाप लगने लगा। उन्होंने बिना एक पल भी सोचे इससे इंकार लकर दिया। उन लोगों ने शर्मा जी का तबादला भी करवा दिया लेकिन वो पेड़ आज भी वहीं पर सलामत है। शर्मा जी और मैं कई बार अब भी वहां जा कर चाय का कप या कुछ ठंडा पीते हैं तो एक सकूं सा मिलता है। शायद यही है हमरी पूजा और इबादत। हम इस तरह उस पेड़ को सजदा कर के लौट आते हैं। लोगों को धार्मिक स्थानों पर जाए कर भी भगवान नज़र आता है या नहीं लेकिन हमें अनुभूति महसूस होती है उस पेड़ के पास जा कर। ज़िंदगी और नौकरी ने ऐसे बहुत से रंग दिखाए। 

एक बार एक बहुत बड़े नेता ने जो आजकल बहुत चर्चित भी है उसने भी किसी काम के लिए दबाव डाला लेकिन शर्मा जी नहीं माने। वह सीधे और गुस्ताख़ शब्दों में बोला हम तुम्हें नौकरी करना आज ही सीखा देंगे। कल से तुम्हें यहाँ नहीं आने देंगें। रिटायरमेंट नज़दीक थी। शायद डेड दो साल का समय बाकी था। शर्मा जी ने उसी दिन लौट कर उस नौकरी से अपना त्यागपत्र दे दिया। नाटकों के लोइए डायलॉग लिखने एक अलग बात है और जब ज़िंदगी के रंगमंच पर मुश्किल घड़ियां सामने आती हैं तो फैसला लेना आसान नहीं होता। शर्मा जी ने ऐसे हालात में भी हिम्मतर से काम लिया।  

लेकिन सारी भागदौड़ और संघर्षों के के चलते पिता जी हमेशां के लिए साथ छोड़ गए। उस समय लगा दुखों और ज़िम्मेदारियों का पहाड़ टूट पड़ा। जी को प्रगतिशील विचारधारा ने डगमगाने न दिया। संकट का सामना बहादुरी से करते रहे। फिर ज़िंदगी की सब से करीबी हमसफ़र अर्थात पत्नी भी साथ छोड़ गई। उस दुःख ने शर्मा जी को भी तोड़ कर रख दिया। डाक्टर अरुण मित्र, डाक्टर बबीता जैन, एम एस भाटिया, बेनु सतीश कान्त, स्वर्गीय डाक्टर भारत और हम सभी लोग उन्हें ढांढ़स बंधाते रहे। 

सर्वाधिक सक्रिय भूमिका निभाई संस्कार भारती की टीम ने। शर्मा जी को फिर से नयी हिम्मत और जोश के साथ दोबारा ज़िंदगी की जंग के लिए तैयार किया। शर्मा जी को भी फैज़ अहमद फैज़ साहिब बहुत पसंद है। जब शर्मा जी गुनगुनाने लगते:

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के 

वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के 

पत्नी के बिछुड़ने  ख्याल बना रहता। कुछ पल खामोश रह कर फिर भीगी आँखों से अगला शेयर कहते:

वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं 

तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के 

हम उन्हें हौंसला देते कि मौत ही तो है ज़िंदगी की सच्चाई। सभी के साथ यहॉ होना है।  शर्मा जी सारी बात सुन कर अगला शेयर हमें सुनाते:

इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन 

देखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के!

हम उन्हें रोज़गार और कला की तरफ मोड़ते तो वह गंभीर हो कर देखने लगते। गम के बावजूद ज़नदगी के खर्चे नहीं रुक जाते। वह हाँ ,में सिर हिलाते और फैज़ साहिब का ही शेयर पढ़ते और यह शेयर अपना रंग दिखाता चला गया।

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया 

तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के!

अब वास्तविक बात यह भी कि अब कला और थिएटर की वर्कशॉप के बहाने पत्नी के गम को दिल में ताज़ा भी रखना है। उन यादों के उजालों के सहारे अँधेरे रास्ते तय करने हैं। पत्नी ने इसका वायदा भी लिया था शर्मा जी से।

अब इस वर्कशॉप का आयोजन ज़िंदगी में बहुत मुश्किलों से फिर से जुटाए गए उत्साह और हिम्मत का ही नतीजा है। नाटकों की जो जो पांडुलिपियां, नावल और कहानियां उनकी गैर हाज़िरी में रद्दी के कबाड़ में चली गई उनका गम भुलाते हुए, जिन जिन लोगों ने धोखे दिए उनके सदमों को भी दरकिनार करते उए, वक्त ने जो ज़ख्म दिए उनको भी भुलाते हुए, ज़िंदगी ने जिन नई चुनौतियों को सामने ला कर खड़ा किया उनकी आंख से आंख  मिलाते हुए ही हो रहा है इस कार्यशाला का आयोजन। 

शर्मा जी बताते हैं जब कास्टिंग काल दी गई तो पहले ही दिन पचास से ज़्यादा कलाकारों ने निवेदन भेजे। शर्त राखी गई थी कि सभी कलाकार लुधियाना के हों। इस लिए यह गिनती कम नहीं थी। कार्यशाला डॉन चलेगी दस और ग्यारह मार्च को। अप्रैल में नाटकों कजा मंचन हो जाएगा। जब जब कुछ नया तय होगा उसका पता भी हम आपको देते ही रहेंगे। आपके विचारों की  इंतज़ार रहेगी ही। 

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बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूक के और बेकारी के 

टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के 

जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी 

वो सुब्ह कभी तो आएगी 

फ़ाक़ों की चिताओं पर जिस दिन इंसाँ न जलाए जाएँगे 


सीनों के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगे 

ये नरक से भी गंदी दुनिया जब स्वर्ग बनाई जाएगी 

वो सुब्ह कभी तो आएगी

आज साहिर लुधियानवी साहिब का जन्म दिन भी है, ख़िराज-ए-अक़ीदत साहिर-उनकी शायरी लोगों के साथ होते अन्याय की बात उनकी गैर मौजूदगी में भी करती रहेगी।  शायरी लोगों को जगाती आ है जगाती रहेगी। 

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