19th January 2023 at 06:09 PM
कौमी इंसाफ मोर्चा में निरंतर बढ़ रहा है संगत का जमावड़ा
जिन लोगों ने दिल्ली की सीमाओं पर किसान मोर्चा के ऐतिहासिक जमावड़े को देखा, उनकी यादों में उनके दृश्य हमेशा के लिए अंकित हो गए थे। दिल्ली के टिकरी और सिंघू बॉर्डर के मंचों और सड़कों पर उस समय किसानों के लिए इन्साफ मांगने निकले लोगों ने शांतिपूर्ण मोर्चों का एक नया इतिहास रचा था जिसने पूरी दुनिया में कई नए रेकार्ड कायम किए। किसान आंदोलन का वह विशाल मोर्चा भविष्य में भी लोगों का मार्गदर्शन करता रहेगा। जो लोग दिल्ली के मोर्चों को देखना चूक गए थे वे अब वाईपीएस चौक मोहाली में उस समय की एक झलक ज़रूर देख सकते हैं, जहां गुरु के अटूट लंगर चल रहे हैं, वाशिंग मशीनें भी जोरों पर काम कर रही हैं और पानी के नलों की कतारें भी लगातार चल रही हैं जैसे किसी धार्मिक स्थल का दृश्य हो।
सड़क पर सजे हुए बहुत बड़े पंडाल में गुरबानी, कीर्तन और कथा का प्रवाह किसी धर्म स्थल की तरह ही सभी का ध्यान खींच रहा है। स्पीकर से आती हुई गुरुबाणी के पाठ की मधुर आवाज़ बार बस ही मन के ख्यालों को दिव्यता की तरफ आकर्षित करती है। अगर आप किसी से पूछें कि आप इतनी ठंड में इतने उत्साह में कैसे हैं तो इसका जवाब तो तुरंत बहुत ही मिठास भरे अंदाज़ में जवाब मिलता जैसा ही होता है। हम अपने उन बेटों, भाईओं और बज़ुर्गों के वे हमारे राजनीतिक बंदी हैं जिनका संघर्ष न तो व्यक्तिगत लाभ के लिए था और न ही किसी अन्य उद्देश्य के लिए। उन्होंने सभी संघर्ष केवल पंथ और पंजाब के लिए लड़े। और पंथ और पंजाब के लिए ही सभी सुख छोड़ कर सभी जोखिम उठाए। उन्होंने आजीवन कारावास की तुलना में सलाखों के पीछे कहीं अधिक समय बिताया है। यह मोर्चा उन सभी की रिहाई के लिए है और जब तक आरपार का अब अंतिम फैसला नहीं हो जाता हम यहां डटे रहेंगे।
ट्रैक्टर-ट्रालियों की लम्बी लाईनों ने दिल्ली के सिंघू बॉर्डर जैसा माहौल बना दिया है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए पंडालों में भी जगह बनाई गई है, टूरिस्ट कैंप जैसे छोटे-छोटे टेंट भी लगाए गए हैं और कुछ लोगों ने किराए पर आसपास के इलाकों में मकान लिए हैं। कुल मिलाकर लंबे संघर्ष की पूरी तैयारी है। हो सकता है सर्दी की कंपकंपाती ठिठुरन के बाद गर्मियों का मौसम भी यहां इसी माहौल में गुज़रे।
जो लोग इस मोर्चे पर पहुंचे हैं वे सोच के मामले में भी काफी सुचेत हैं। किसी भी मुद्दे पर किसी से भी बात करें तो उसके जवाब से पता चलता है कि वह पूरी कहानी जानता है। लोग न केवल 84 जून से पहले का समय बल्कि 47 के बंटवारे से पहले का समय भी याद करते हैं। नई पीढ़ी के युवा लड़के-लड़कियों ने भी इस सरे इतिहास का पूरा अध्यन कर रखा है। उन्हें राजनीतिक नेताओं द्वारा किए गए झूठे वायदे भी याद हैं और अपने ही लोगों द्वारा किए गए विश्वासघात भी याद हैं।
यहां पहुंचे श्रद्धालु अब पूरी तरह से जागरूक हैं और सिख समुदाय के भविष्य की योजनाओं के बारे में बहस कर रहे हैं। वे खालिस्तान की मांग और अन्य मुद्दों को लेकर भी बहुत स्पष्ट हैं, लेकिन खालिस्तान के खुले समर्थन का स्वर कहीं सुनाई नहीं देता. हां, संत भिंडरां की तस्वीरों वाले बड़े-बड़े पोस्टर जरूर लगे हैं, जिनमें दरबार साहिब पर हमला होने की स्थिति में खालिस्तान की नींव रखे जाने की बातें दर्ज हैं। शरीरक मौत की बजाए अंतरात्मा की मौत ही होती है असली मौत जैसी बातों वाले पोस्टर भी हैं। कुल मिलाकर माहौल दिल में हलचल सी महसूस करवाता है और मन में कई विचारोत्तेजक सवाल भी खड़े कर रहा है।
अब देखना होगा कि सिख बंदियों की रिहाई के लिए और कौन से दुसरे राजनीतिक दल इस मोर्चे में शामिल होने के लिए आगे आते हैं या फिर पंथ सुर पंजाब से दूरी बनाए रखते हैं। उल्लेखनीय है कि भाकपा माले लिबरेशन बहुत बार पहले ही सजा पूरी कर चुके बंदी सिंघों की रिहाई के लिए आवाज उठाती रही है. रविवार 22 जनवरी को पार्टी महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य एक सेमिनार में शामिल होने के लिए चंडीगढ़ आ रहे हैं। वह मोहाली के वाईपीएस चौंक के नज़दीक चल रहे कौमी इन्साफ मोर्चे में अपनी पार्टी की एकजुटता जताने के लिए वाईपीएस चौक जाएंगे या नहीं, इस संबंध में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है।
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