8th March 2022 at 03:16 PM
‘मन मिट्टी दा बोलिया’ नाटक ने ज़ाहर कीं औरत मन की परतें
चंडीगढ़: 8 मार्च 2022: (पंजाब स्क्रीन डेस्क)::
सन 1958 में एक फिल्म आई थी साधना। साहिर लुधियानवी साहिब का एक गीत था औरतों की दुर्दशा पर।
औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला, जब जी चाहा दुत्कार दिया
इस गीत को आवाज़ दी थी लता मंगेशकर जी ने और संगीत दिया था एन. दत्त्ता ने। दिल और दिमाग को बुरी तरह झंकझोर देने वाले इस गीत के शब्द समाज के मुंह पर चांटे की तरह लगते महसूस होते थे। इस पर उस समय भी कुछ नेताओं को तो एतराज़ हुआ था लेकिन समाज को फिर भी शर्म नहीं आई। जिस अत्याचार का साहिर साहिब ज़िक्र करते हैं उसका रंगरूप बदलता रहा। आम्रपाली को सर्वभोग्य और नगरबधू बनाने वाले इस तथाकथित महान समाज का मन उसके साथ अन्याय कर के भी भरा नहीं, रुका नहीं। अन्याय और अत्याचार का सिलसिला लगातार जारी रहा। आज भी जारी है।
महानता के नारे लगाने वालों ने बस अपनी सुविधा के मुताबिक औरत पर किए जाने वाले अत्याचारों के रंगरूप बदल दिए हैं। महिला के साथ होते अन्याय का असर उसकी मूक संवेदना पर भी पड़ता है। उसकी सोच पर भी पड़ता है। उसके जज़्बातों पर भी पड़ता है और फिर उसकी शख्सियत पर भी पड़ता है।
अन्याय का शिकार होती औरत जानती है कि वास्तव में यह समाज कितना "महान" है? उसने इतना अत्याचार होने के बावजूद कभी समाज से पर्दा नहीं उठाया क्यूंकि वह जानती है कि पर्दा उठते ही सब कुछ तहस नहस नहस हो जाएगा। समाज को बचने के लिए, परिवारों ओके बचने के लिए वह अपनी करूपो दृष्टि बनाए रखती है। औरत मन की परतों को साहिर लुधियानवी और शिव बटालवी जैसे महान शायरों के बाद सामने लाने की हिम्मत दिखाई है शब्दीश ने। महिला मन की थाह पाना कभी भी आसान नहीं होता। इस की कृपा कुछ गिनेचुने अधिकारी लोगों पर ही हुआ करती है।
विश्व नारी दिवस नाट उत्सव के तीसरे दिन सुचेतक रंगमंच मोहाली द्वारा पंजाब कला परिषद के सहयोग से अनीता शब्दीश के निर्देशन में सोलो नाटक 'मन मिट्टी दा बोल्या' का प्रदर्शन किया गया, जिसने नाटक के विभिन्न पात्रों को वही अदा कर रही थी। इस तरह नाटक का मंचन बहुत कठिन भी था। इस तरह की सोलो भूमिका को निभाना आसान नहीं होता।
पंजाबी कवी और नाटककार शबदीश की 'मन मिट्टी दा बोल्या' उन महिलाओं के जीवन को दर्शाती है, जिनके साथ विभिन्न परिस्थितियों में बलात्कार हुआ है। यह नाटक उपयुक्त नाट्य तकनीकों का उपयोग करते हुए कथा को दृश्य-दर-दृश्य आगे ले जाता है, ताकि अभिनेता मंच पर कहानी के अगले चरित्र के लिए दर्शकों के सामने ही दूसरे किरदार में ढाल सके और वह भी उससे एकदम से जुड़ सकें।
नाटक एक स्कूली छात्रा की त्रासदी से भी संबंधित है जो अपने ही पिता और दादा की वासना का शिकार हो जाती है और एक शिक्षित महिला कहानी भी है, जो अपने ही घर में एक दोस्त की वासना का शिकार होती है। इसी तरह दलित समाज की एक साधारण महिला है, जो पति के खिलाफ विद्रोह करने की वजह से सड़क पर तो आ जाती है, लेकिन मर्दाना अहंकार को खारिज कर देने की बात प्रवान नहीं करती.
नाटक पाकिस्तान में बलात्कार पीड़िता मुख्तार माई के संघर्ष की सच्ची कहानी में परिणत होता है, जो एक पिछड़े समाज में बलात्कार महिला द्वारा आत्महत्या की प्रथा को चुनौती देकर संघर्ष का रास्ता चुनती है। इन सभी भूमिकाओं को निभाने के लिए अनीता शब्दीश एक नाटकीय तकनीक में एक दुपट्टा तब्दील करने का उपयोग करती है।
नाटक की शुरुआत वर्जीनिया वूल्फ के हवाले से एक कविता से होती है, जो एलिजाबेथ के समय के मद्देनजर यूरोपीय समाज के बारे में सवाल उठाती है। यहीं से नाटक भारतीय और पाकिस्तानी जीवन में प्रवेश करता है। नाटक यह सवाल उठाता है कि स्त्री और पुरुष सामाजिक जीवन में एक साथ यात्रा करना शुरू कर देते हैं, फिर क्या कारण है कि सदियों बाद स्त्री ने अपने मन की बात कहने के लिए पुरुष से कलम उठाई। कई घटनाएं जो इस नाटक का हिस्सा हैं, मीडिया की नजरों से दर्द की आवाजें हैं, जिन्हें हमारा 'सम्माननीय समाज' छिपाने की कोशिश करता है। इस तरह कहानी का कोलाज महिला के अस्तित्व के संकट और उसके संघर्ष को परत दर परत उजागर करता है।
नाटक दुनिया भर में महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के बारे में सच्चाई बताता है और हर तरह से गुलामी से पीड़ित महिलाओं की मानसिकता को बदलने के लिए संघर्ष पर केंद्रित है। नाटक का उद्देश्य पश्चिमी पूंजीवादी नारीवाद पर सवाल उठाना भी है, हालांकि इस संबंध में इसे सीधे तौर पर व्यक्त नहीं किया गया है।
इस अवसर पर पंजाब कला परिषद के अध्यक्ष सुरजीत पातर, पंजाब संगीत नाटक अकादमी के सचिव प्रीतम रूपाल और पंजाब साहित्य अकादमी के अध्यक्ष सरबजीत कौर भी उपस्थित थे।
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