Wednesday, February 09, 2022

दलित कार्ड के लिए कांग्रेस के योद्धा ताम्रध्वज साहू भी मैदान में

चंडीगढ़ में पहुंच कर की कांग्रेस को जिताने की अपील 


चंडीगढ़
: 9 फरवरी 2022: (पंजाब स्क्रीन डेस्क::

मिर्ज़ा ग़ालिब साहिब की एक प्रसिद्ध गज़ल का एक शेयर है-

ज़िंदगी यूं भी गुज़र ही जाती  

क्यूं तेरा रह गुज़र याद आया!

कुछ महीने पहले भी ज़िंदगी यूं ही गुज़रती जा रही थी। आम जनता की भी और पंजाब की भी। कांग्रेस पार्टी की आन्तरिक कलह थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। राष्ट्रपति शासन की सम्भावनाएं हर हर रोज़ तेज़ होती जा रहीं थीं। तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरेन्द्र सिंह और नवजोत सिद्धू पूरी तरह आमने सामने थे। पंजाब में कांग्रेस शासन बेहद नाज़ुक स्थिति में था। उस समय कांग्रेस की कश्ती को बचाने के लिए लिए निकले कुछ ख़ास लोगों ने जो रास्ता निकाला उस का रंग रूप चरणजीत सिंह चन्नी के नाम से सामने आया। चन्नी सरकार ही शायद एकमात्र रास्ता था। यह रास्ता बेहद मुश्किल भी था लेकिन चन्नी चल पड़े। 

बीजेपी ने भी सवाल किया कि क्या केवल तीन महीने का मुख्यमंत्री या बाद में भी? कहीं यह सब दलितों के साथ कोई मज़ाक तो नहीं? दुसरे दलों से भी इस स्वर के सवाल आए। जब कांग्रेसियों के लिए एकमात्र उम्मीद बने राहुल गांधी ने लुधियाना में बाकायदा चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया तो सभी को बात गंभीर लगने लगी। चन्नी ग्रुप के मित्रों को भी और विरोधियों को भी। मुख्यमंत्री चन्नी तो इतने उत्साहित हुए की कर की छत पर ही अपने चुनावी अभियान के लिए निकल पड़े। इसके साथ ही दलित मतदाता भी उत्साह में आए। उन्हें लगने लगा कि हमने आधी लड़ाई जीत ली है। 

इसके साथ ही ज़मीनी हकीकतों की तरफ नज़रें गईं तो यह सवाल कायम था कि कौन करेगा दलित वर्ग को फिर से एकजुट और मज़बूत? पंजाब में ऐसा कोई चेहरा सक्रिय रूप से नज़र नहीं आ रहा था। कांग्रेस की हाईकमान इस सारी स्थिति से अवगत थी लेकिन कहीं कहीं बेबसी का अहसास भी था। कांग्रेस हाईकमान को अपने सभी सियासी विरोधियों से भी लड़ाई लड़नी पड़ रही थी, केंद्र की सत्ता में मौजूद मोदी सरकार  के साथ भी, कैप्टेन अमरेंद्र सिंह जैसे उन अपनों से भी जो अब विरोधी कैम्पों में जा बैठे थे और हर रोज़ उठ रही समस्याओं से भी। चुनावी मुकाबिले में अकालीदल और बीएसपी भी कम बड़ी चुनौती नहीं गिने जा सकते थे। चुनावी समर सिर पर है। मतदान में बस अब कुछ ही दिन शेष हैं। 

अब कौन बचाए पंजाब की कांग्रेस सरकार? कौन बचाए चन्नी सरकार? कौन बचाए दलित सरकार? ऐसे कई सवाल उन सभी लोगों के ज़हन में हैं जो चन्नी सरकार को ही एक बार फिर से देखना चाहते हैं।  ऐसे लोगों में न कांग्रेसी वर्करों और समर्थकों के साथ साथ गैर कांग्रेसी लोग भी शामिल हैं। चन्नी सरकार को विजयी बनाना इन सभी का मकसद है अब। सेकुलर सोच वाली ट्रेड यूनियनें और अन्य संगठन भी इस मकसद में सक्रिय हो कर काम कर रहे हैं। यह बात अलग है की वे खुल कर सामने नहीं आ रहे। चन्नी सरकार का समर्थन करने वाले लोग काफी हैं लेकिन ख़ामोशी से काम कर रहे हैं। बहुत से दलित वर्कर और दलित नेता कांग्रेस विरोधी हो कर भी अंदर से चन्नी सरकार के साथ ही हैं। इसके बावजूद कांग्रेस ने चुनावी अभियान तो लगातार तेज़ करना ही है।  

इस मकसद के लिए जो रणनीति बनी उसके अंतर्गत कई कदम उठाए जा रहे हैं। उन्हीं कदमों में से एक कदम था छत्तीसगढ़ से ताम्रध्वज साहू को चुनावी अभियान के अंतर्गत पंजाब में भी लाने का फैसला। ताम्रध्वज साहू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के एक ऐसे मंझे हुए अनुभवी नेता हैं जिन्होंने कांग्रेस के लिए बहुत से राजनैतिक युद्ध जीते हैं। छत्तिसगढ के बेमतरा जिला स्थित पटोरा गा‍ँव के एक सामान्य परिवार में जन्मे ताम्रध्वज साहू औपचारिक शिक्षा के नाम पर तो बेशक हायर सेकेंडरी ही पूरी कर सके लेकिन ज़िंदगी के संघर्षों ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया। ज़िंदगी ने गर्दिश की जो राहें उन्हें दिखाईं उन पर चलते हुए वह युवावस्था से ही सामाजिक कार्यों से जुड़ गए थे। उनके राजनीतिक जीवन का आरंभ कांग्रेस कार्यकर्त्ता के रूप में हुआ और वह धीरे-धीरे सफलता की सीढी चढते चले गए। अब साहू जी कौन हैं इस पर आप अलग से भी एक पोस्ट देख सकते हैं यहां क्लिक करके। ऊके चेहरे पर अभी भी युवाओं जैसा जोश और चमक है। उनकी चर्चा अलग पोस्ट में है यहां इसी पोस्ट के मुद्दे पर। 

लौटते हैं पंजाब की चर्चा पर। श्री साहू के आगमन पर 9 फरवरी को एक सादगी भरा आयोजन हुआ चंडीगढ़ के पंजाब कांग्रेस भवन में। कार्यक्रम का आयोजन बाद दोपहर को था। कांग्रेस के ओबीसी सेल से सबंधित कार्यकर्ता सुबह 11 बजे ही पहुंचना शुरू हो गए थे। छत्तीसगढ़ से चंडीगढ़ तक का रास्ता भी लम्बा है और मौसम की दुश्वारियां भी बहुत हैं। इसके साथ ही ट्रैफिक जाम जैसी समस्याएं भी। श्री साहू तकरीबन डेढ़ दो घंटे की देरी से ही कांग्रेस भवन में पहुंच पाए। सर्दी के प्रकोप का सामना करते हुए 72 वर्षीय श्री साहू युवाओं जैसे जोश की भावना से सक्रिय दिखे। इस आयोजन में पहुंचे वर्करों को समझाया गया कि किस तरह हमारे दलित भाई चरणजीत सिंह चन्नी को केवल तीन महीने का समय ही मिल पाया। इसमें भी श्री चन्नी ने बहुत कुछ कर के दिखाया।  सरकार बहुत कुछ और भी करेगी अगर उनके हाथ में ताकत आई तो। दलित वर्गों को यही यकीन दिलाना इस वक्त इन लोगों का मकसद है कि चन्नी सरकार ही बन सकती है उनकी सरकार।

पंजाब कांग्रेस भवन में हुआ आयोजन इस बात को समझाने में सफल भी रहा। घर घर जा कर लोगों को चन्नी सरकार की उपलब्धियां गिनवाने में जो लोग जुटे हुए हैं वे दलित वर्गों से ही जुड़े हुए हैं। कोई साईकल पर कैम्पेनिंग करने जा रहा है तो कोई पैदल ही लोगों से सम्पर्क साध रहा है। इस जोश और उत्साह को भरने में श्री साहू के दौरे ने बहुत सफलता से योगदान दिया है। गौरतलब है कि श्री साहू आल इंडिया कांग्रेस कमेटी ओबीसी सेल के चेयरमैन भी हैं और छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री भी हैं। उन्हें ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है। 

इस सारे आयोजन की सफलता के पीछे जो लोग सक्रिय रहे उनमें चुने हुए लोगों की एक पूरी टीम शामिल है। श्री साहू के साथ देश भर में ऐसे लोग जुड़े हुए हैं। पांचों चुनावी राज्यों में इस तरफ विशेष ध्यान दिया जा रहा है। पंजाब में उनके साथ कांग्रेस पंजाब ओबीसी  सेल के चेयरमैन संदीप कुमार टिंकू, पंजाब के इंचार्ज हरदीप चाहल और सह इंचार्ज अरुण सोनी भी रहे। इस समय श्री सोनी तो  साथ उत्तराखंड की तरफ रवाना हो चुके हैं और श्री टिंकू जगराओं की तरफ इसी अभियान में हैं। इस तरह दलित वर्ग के लिए एक लड़ाई यह विंग भी लड़ रहा है जिससे ज़ाहिर है कि दलित वर्ग के अधिकारों की लड़ाई अभी अभीआसान नहीं हुई। अब देखना है कि श्री साहू का पंजाब दौरा कांग्रेस पार्टी को और चन्नी सरकार को कितना लाभ पहुंचा पाता है। 

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