आप भी सुनिए थैलेसीमिक बच्चों की पुकार और कुछ कीजिए
लुधियाना: 18 जून 2021: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन)::
विज्ञान से आंखें मूंद कर जीवन जीने के जो भयानक परिणाम इस दुनिया को भुगतने पड़े उनमें थैलेसीमिया भी एक है। ज्योतिषी के पास जा कर लोग जन्मकुंडली बह बनवाते रहे और विवान की कुंडली भी मिलवाते रहे लेकिन बहुसंख्यक लोगों ने डाक्टर के पास जा कर कभी पूछा कि विवाह कर के घर बसाने जा रहे युवक युवती को आपस में विवाह करना भी चाहिए या नहीं? ऐसे विवाह होते रहे और थैलासीमिया बढ़ता रहा। लोग अपने बच्चों को खून न मिलने के कारण तड़पता भी देखते रहे और दम तोड़ता भी देखते रहे। स्थिति विकराल बनती गई। अनगिनत घरों के चिराग बुझ गए। सरकारें भी कोई ज़्यादा काम न कर सकीं। रेड क्रास से ब्लड मिल जाना ही बहुत बड़ी बात हुआ करती थी। डाक्टर किनकी बोपाराए, डाक्टर मंगला और कुछ अन्य लोगों ने देवदूतों की तरह लोगों की सहायता की।
उस खून को निश्चित समय के अंदर अंदर अस्पताल ले जाकर पीड़ित बच्चे नहीं होता था। गरीब और मध्यवर्गीय परिवार इसी चक्र में टूट जाते थे। फिर पीड़ितों में से ही कुछ लोग उठे। उनके परिवार भी उठे। दिल्ली के बाद चंडीगढ़ में थैलेसीमिक बच्चों के लिए एक संगठन बना जिसका केंद्र बिंदु था चंडीगढ़ का पीजीआई। इससे थैलेसीमिक परिवारों को बहुत ही राहत मिली। हर रजिस्टर्ड बच्चे को निश्चित तारीख पर ब्लड लगाया जाता था। खर्चा भी मुनासिब सा था। बहुत से लोग बाजार की बेरहम लूट से बच गए थे। चंडीगढ़ में डाक्टर आर के मरवाहा और उनके साथियों ने बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया।
चंडीगढ़ में ही लुधियाना, जालंधर और अमृतसर के बच्चे भी आने लगे। फिर लुधियाना में भी इसी तरह के संगठन बने। सीएमसी अस्पताल की डाक्टर शीला दास ने तो बहुत ही जज़्बाती हो कर कार्य किया। सीएमसी में एक विशेष सेक्शन इन्हीं बच्चों के लिए बनाये जाने के लिया डाक्टर शीला दास ने बहुत ही उल्लेखनीय काम किया।
इसी तरह लुधियाना के डीएमसी अस्पताल में सोबती ने तो इन बछ्कों को बचने के लिया एक ा भियाँ ही चला दिया था। वह परिवारिक सदस्यों की तरह इन बच्चों से भी मिलते और इन बच्चों के परिवारों से भी। इन्हें इलाज भी देते और हौंसला भी। इस तरह इन लोगों किया। लुधियाना के ही कपूर अस्पताल में ही डाक्टर प्रदीप हांडा और डाक्टर पलविंदर कौर सैनी ने भी बहुत अच्छा काम किया।
गौरतलब है कि थैलेसीमिया पीड़ित मरीजों को खून ना मिलने के कारण उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उन्हें हर सप्ताह, दो सप्ताह बाद या तीन सप्ताह बाद खून चढ़वाना ज़रूरी होता है। न तो यह खून आसानी से मिलता है और न ही इसे चढ़वाना आसान होता है। बस खून का लगातार निश्चित अंतराल के बाद दिया जाना ही इन बच्चों को ज़िंदगी देता है।
फिर इसके बाद भी कई काफिले सरगर्म हुए। सक्रिय हैं। अब नई लुधियाना से आई सुकृत बस्सी की तरफ से तरफ से। आज अर्थात शुक्रवार 18 जून 2021 को ही सुकृत बस्सी और उनके साथियों ने मिलजुल कर अभियान चलाया। खून, खुराक अन्य सुविधाओं के साथ साथ सबसे बड़ी आवश्यकता है। विवाह से पहले डाक्टर के पास जा कर इस मकसद की कुंडली बनवानी होगी बनवानी होगी। वही होगी आज के युग की असली जन्मकुंडली जिसे विवाह पर आवश्यक मन जाना चाहिए।
सुकृत बस्सी बताते हैं हम सब स्टूडेंट्स और थैलेसीमिया पेशेंट्स ने भारत नगर चौक, लुधियाना में लोगों को जागरूक किया जिससे लोग फिर से रक्तदान करेंगे और थैलेसीमिया पीड़ित मरीजों को जीवनदान दे पाएंगे। इसके साथ ही हम सब स्टूडेंट्स नै लोगों को थैलेसीमिया के बारे में समझाया कि थैलेसीमिया क्या है और इससे कैसे बचा जा सकता है क्योंकि हम सब स्टूडेंट्स और थैलेसीमिया पेशेंट्स का एक ही मकसद है थैलेसीमिया फ्री इंडिया। थैलेसीमिक मुक्त भारत। इस अभियान के दौरान सुकृत बस्सी के साथ थे विशाल अरोड़ा काकू, सुकृत बस्सी,रितविन,अमनदीप, आदि स्टूडेंट्स मौजूद थे
यहां याद दिलाना ज़रूरी है कि थैलेसीमिया पीड़ित मरीजों को हर 15 दिन बाद खून की आवश्यकता पड़ती है अगर उन्हें टाइम से खून ना चढ़ाया जाए तो उनको काफी समस्याएं आ सकती हैं थैलेसीमिया नामक बीमारी बचपन से लेकर बच्चे की अंतिम जिंदगी तक रहती है। इसका लेकिन बहुत ही उलझन भरा और महंगा भी। इस इलाज का नाम है बोनमैरो ट्रांसप्लांट। इस पर शायद फ़िल्में भी बन चुकी हैं।
आप अगर मानवता के लिए कुछ करना चाहते हैं तो इस अभियान को सफल बनाइए। समाज को सुदृढ़ बनाने में अपना योगदान दीजिए। थैलेसीमिक बच्चों के लिए कुछ कीजिए।
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