Sunday, October 18, 2020

पुरुष मानसिकता को बदल कर ही होगा बदलाव

 सहमभरी ख़ामोशी को तोड़ने आगे आया सोशल थिंकरज़ फोरम 


लुधियाना
: 17 अक्टूबर 2020: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन):: 

 मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है 

कि ख़ून-ए-दिल में डुबो ली हैं उँगलियाँ मैं ने 

ज़बाँ पे मोहर लगी है तो क्या कि रख दी है 

हर एक हल्क़ा-ए-ज़ंजीर में ज़बाँ मैं ने        --(जनाब फैज़ अहमद फैज़ साहिब) 

कोरोना का कहर, कानून की पाबंदियां, लॉकडाउन से टूटी आर्थिकता की कमर--कुल मिला कर बोलना नामुमकिन जैसा हो गया। दर्द असहनीय हद तक बढ़ा लेकिन चीखना भी सम्भव न रहा। माहौल में अजीब सी सहम भरी चुप्पी, दर्द के मारे कोई कराहता तो उस आवाज़ को सुनना भी मुश्किल लगता। ऐसे माहौल में डाक्टर अरुण मित्रा और एम एस भाटिया की टीम आगे आई। महिलाओं के खिलाफ लगातार बढ़ रहे अत्याचार और जुर्म को बेनकाब करना ज़रूरी हो गया। सोशल थिंकर्ज फोरम ने जब इस मकसद की आवाज़ बुलंद करनी चाही तो उसे दुविधा का अहसास भी था लेकिन उसे उत्साहित किया इसी टीम ने। उत्साह से जोश भी मिला हिम्मत भी बढ़ी। सोशल थिंकर्ज फोरम के सक्रिय सहयोग से महिलाओं का यह काफिला निकल पड़ा अत्याचार की साज़िशों को बेनकाब करने। इस काफिले को देख कर याद आया डा. कविता किरण का वह शेयर जिसमें कमाल की बात कही गयी है, इस काले स्याह दौर में भी रौशनी देती बात, लगातार चलने का संदेश देती बात--:   

नामुमकिन को मुमकिन करने निकले हैं,

हम छलनी में पानी भरने निकले हैं।

                                आँसू पोंछ न पाए अपनी आँखों के

                               और जगत की पीड़ा हरने निकले हैं।

बुद्धिजीवियों के इस काफिले ने डा. अरुण मित्र से प्रेरणा पा कर वेबिनार का आयोजन किया। पितृ सत्ता को चुनौती देने का नारा एक बार फिर बुलंद किया गया। महिला वर्ग के कदम कदम पर बेड़ियां ले कर तैयार खड़ा पितृ सत्ता का वर्ग बहुत से रूप बदल कर भी हर तरफ मौजूद मिला। इस दबाव से मुक्ति की आवाज़ उठाई इस वेबिनार ने। इस दबाव से मुक्ति के लिया आवश्यक है इस पितृ सत्ता से आज़ाद होना। इस जागीरदारी सोच से मुक्ति परमावश्यक हो गयी है। महिला वर्ग की प्रतिभा, कौशल और शक्ति पर एक पहाड़ बन कर जमा हुआ है पितृसत्ता से भरी सोच का ढांचा। इसका नाश हुए बिना शायद बदलाव सम्भव ही नहीं। इस वेबिनार में मौजूद रहे पूर्व जिला अटार्नी जनरल और जानेमाने लेखक मित्र सेन मीत। उन्होइने कानून की बारीकियां समझाते हुए बताया कि महिलाओं की रक्षा-सुरक्षा के लिए कानून तो बहुत से बने हुए हैं लेकिन उन्हें सही तरह से लागु ही नहीं किया जाता। पुरुष प्रधान सत्ता और समाज में यौन हिंसा से सबंधित मामलों में भी जब तफ्तीश शुरू होती है तो उसका केंद्रीय बिंदु महिला ही रहती है। आरोपियों का न तो मेडिकल होता है और न ही उनसे इस तरह के तीखे सवाल हैं। परिणाम यही होता है दोषी ही बड़ी हो जाते हैं। पुलिस पर सियासी दबाव भी उनके हक में ही जाता है। हाथरस मामले की बात करते हुए उन्होंने कहा कि योगी सरकार से मिले आदेशों के अंतर्गत पुलिस ने जिस तरीके से वहां काम किया वह बेहद निंदनीय है। संविधानिक धाराओं की बुरी तरह से धज्जियां उड़ाई गयीं हैं। वहां की पुलिस ने पूरी तरह से गैरपेशेवराना ढंग से काम किया है। यहाँ तक कि गैर पारम्परिक ढंग से जिस तरह रात में लाश को जला कर सबूतों को पुरी तरह से नष्ट कर दिया गया वह कानून और संविधान के उलंघन की सभी सीमाओं को पार करने जैसी बात है। 

जानीमानी लेखिका डा. परम सैनी ने कहा कि इस  तरह से महिला की मानसिकता पर बहुत ही बुरा प्र भाव पढ़ता है। बुरी तरह से निराश और हताश हो कर वह हौंसला छोड़ बैठती है। इससे इस तरह की बहुत सी अन्य घटनाओं को शह मिलती है। इस तरह के मुजरिमों का हौंसला बढ़ जाता है। यदि उसे परिवार और समाज की तरफ से आश्रय, सहायता और सहयोग न मिले तो हालत बुरी तरह बिगड़ जाती है जिसका परिणाम  लिए घातक होता है। इस स्थिति में से निकलने के लिए पुरुषों की मानसिकता में बदलाव बहुत ही आवश्यक है जिसकी शुरुआत बचपन से ही की जनि चाहिए। 

एटक  महासचिव समरजीत कौर ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा प्राचीन समय से चलती चली आ रही है और इसका ज़िक्र हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी आता है।  समाज में व्याप्त जागीरदारी वाली इस सोच को बदलना बेहद आवश्यक है। समाज को केवल पितृ सत्ता पर आधारित न रखते हुए इसे बराबरी का समाज बनाना होगा। शक्ति के प्रदर्शन को सामने रख कर की जाती यह हिंसा केवल  महिलाओं के प्रति ही नहीं है बल्कि बच्चों और समाज के दबे कुचले लोगों के प्रति भी भी उसी तरह से बर्बर है। मैडम अमरजीत कौर ने यूपी  द्वारा दिए गए ब्यान की तीखी निंदा की जिसमें मंत्री  कि महिलाओं को संस्कारी बनाओ। मंत्री के ब्यान को बुरी  अशोभनीय और एतराज़योग्य बताते हुए  बास्तव में आवश्यकता तो लड़कों में अच्छे संस्कार भरने की है। यूं तो बच्चे बुरे नहीं होते लेकिन जब उन्हें सरकार से शह मिलने लगती है तो वे गलत रास्तों पर चलते हुए किसी भी किस्म की हिंसा करने से गुरेज़ नहीं करते क्यूंकि उन्हें सरकार  डर नहीं रहता। वे यह समझने लगते हैं  भी करें आखिर सरकार में बैठे उनके लोग उन्हें बचा ही लेंगें।

पंजाब स्त्री सभा लुधियाना की प्रधान डा.गुरचरण कौर कोचर में महिलाओं के प्रति हो  रही हिंसक वारदातों का विस्तार बताते हुए कहा कि आज के युग में हमारे देश की यह शर्मनाक स्थिति बन गई है कि जो बेहद चिंतनीय भी है। 

आल इण्डिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के  जिला सचिव दीपक कुमार ने कहा कि वह छात्रों में इसे लेकर जाग्रति पैदा करने का ज़ोरदार अभियान चलाएंगे। शिक्षा नीति में अर्थपुर्ण तब्दीलियों के लिए छात्रवर्ग को लामबंद भी करेंगे क्यूंकि केंद्रीय सरकार की मौजूदा शिक्षा नीति में तो आर्थिक तौर पर कमज़ोर वर्गों के  शिक्षा से ही पूरी तरह से वंचित हो जायेंगे। 

सोशल थिंकर्ज फोरम के संयोजक डा. अरुण मित्रा ने कहा कि विचार विमर्श को समाज  तक लेजाने की आवश्यकता है। 

फोरम के सह संयोजक एम एस भाटिया ने कहा कि यह अकेला महिलाओं का मुद्दा है बल्कि समुचित समाज की ज्वलंत समस्या है जिस पर गहन चिंतन पर आधारित कार्यों की आवश्यकता है। 

इस वेबिनार में अलग अलग वर्गों से बड़ी संख्या में हुए जिनमें प्रमुख हैं कुसुम लता, कुलवंत कौर, इंद्रजीत सिंह सोढ़ी एडवोकेट, डा. राजिंदरपाल, डा. गुरप्रीत रत्न,  अजीत जवद्दी, रंजीत सिंह, अवतार छिब्बड़, अनु कुमारी, प्रदीप शर्मा  कुमार इत्यादि। 

इस तरह के आयोजन भविष्य  में भी होते रहेंगे। यदि आप  ऐसे  किसी भी आयोजन में शामिल होने के इच्छुक हैं तो अपना नाम पता  फॉर्म संयोजक डा. अरुण मित्रा से उनके मोबाईल फोन नंबर   +91IDAG@@@CF@  पर या फिर सह संयोजक एम एस भाटिया के मोबाईल फोन नंबर-919988491002 पर सम्पर्क करके अपनी इच्छा व्यक्त करें। भविष्य के लिए आपका नाम पता दर्ज कर लिया जायेगा।  

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