Wednesday, April 15, 2020

प्रो. तेलतुंबड़े व गौतम नवलखा को गिरफ्तार करने की निंदा

केंद्र सरकार इन बुद्धिजीवियों को बिना शर्त तुरंत रिहा करे
चंडीगढ़: 15 अप्रैल 2020: (कर्म वकील//पंजाब स्क्रीन)::
प्रगतिशील लेखक संघ मराठी मूल के भारतीय लेखक, प्रतिबद्ध चिंतक व जनपक्षीय बुद्धिजीवी प्रो. आनंद तेलतुंबड़े व गौतम नवलखा की साजिशन गिरफ़्तारी की कड़े शब्दों में निंदा करता है। सामाजिक कार्यकर्ता, अम्बेडकरवादी चिंतक व बाबा साहेब डा. भीम राव अम्बेडकर के पारिवारिक सदस्य प्रो. तेलतुंबड़े को बाबा साहेब की जयंती के अवसर पर ही गिरफ़्तार किया गया है। गोवा इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के मौजूदा प्रोफेसर तेलतुंबड़े भारत पैट्रोलियम, पैट्रोनिट इंडिया व इंस्टिट्यूट ऑफ टैक्नालॉजी, खड़गपुर इत्यादि नामचीन संस्थाओं में शीर्ष पदों पर आसीन रहे हैं। उन्होंने भारतीय जातिवादी प्रथा व अम्बेडकर के चिंतन से संबंधित 'रिपब्लिक ऑफ कास्ट थिंकिंग इकुएल्टी इन द इरा ऑफ न्यू लिब्रलिज़म', 'दलित्स: पास्ट, प्रैजेंट एन्ड फयूचर', 'द प्रोसेस्टिंस ऑफ कास्ट', 'महद: द मेकिंग ऑफ फस्ट दलित रिवोल्ट' व 'खैरलंजी: स्ट्रेंजर एन्ड विंटर क्रॉप' इत्यादि पुस्तकों का सृजन किया है। ‘द रैडिकल इन अम्बेडकर' व हिंदुत्वा एन्ड दलित्स परस्पेक्टिव ऑफ अंडरस्टैंडिंग कम्यूनल प्रैक्सस' उन द्वारा सम्पादित चर्चित पुस्तकें हैं।
प्रो. तेलतुंबड़े की कृतियों में सामाजिक समरसता व न्याय के लिए संघर्षरत दलितों, दमितों, अल्पसंख्यक समुदायों व सामाजिक प्रक्रिया से पूरी तरह हाशियाकृत आदिवासियों व जनजातियों के जज़्बात व रोष को ज़ुबां प्रदान की है। क़लम के साथ-साथ वह जनपक्षीय बुद्धिजीवी व कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर वर्तमान राजनितिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संदृश्य में सदैव पेश-पेश रहे हैं। ‘आल इंडिया फोरम टू राईट ऑफ एजुकेशन’ के चेयरमैन के रूप में उनकी भूमिका किसी से अबूझ नहीं है। 
प्रतिबद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं जिन्होंने नागरिक अधिकार, मानवाधिकार और लोकतान्त्रिक अधिकारों के मुद्दों पर असाधारण काम किया है। अंग्रेज़ी पत्रिका 'इकनॉमिक एन्ड पॉलिटिकल वीकली (ईपीडब्ल्यू )’ के सलाहकार सम्पादक रह चुके गौतम नवलखा 'इंटरनैशनल पीपल्स ट्राइब्यूनल ऑन ह्यूमन राइट्स एन्ड जस्टिस इन काश्मीर' के संयोजक के तौर पर भी अपनी सेवाएं प्रदान कर  चुके हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ के इलाके में एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में विलक्षण कार्य करने के साथ-साथ मज़दूरों, दलितों, आदिवासियों और साम्प्रदायिक हिंसा जैसे मुद्दों पर भी बेहतरीन काम किया है।वर्तमान में वह 'पीपल्स यूनियन फॉर डैमोक्रेटिक राइट्स, दिल्ली के महासचिव की ज़िम्मेवारी का बाखूबी निर्वहन कर रहे हैं।
प्रो. तेलतुंबड़े और गौतम नवलखा देश के उन अविरल बुद्धिजीवियों में से हैं जो हमारी धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक व तर्कशील ज्ञान परम्परा की रक्षार्थ हर तरह का ज़ोखिम उठा रहे हैं। ज़ुबाँबंदी के इस दहशती परिदृश्य में भी प्रो. तेलतुंबड़े, गौतम नवलखा व उनके साथियों ने मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज़ बुलंद की है।
प्रलेस के अध्यक्ष पुन्नीलन, कार्यकारी अध्यक्ष अली जावेद , अध्यक्षमंडल के सदस्य राजेंद्र राजन, महासचिव डा. सुखदेव सिंह सिरसा, सचिवमंडल के सदस्य विनीत तिवारी, डा. वी. मोहन दास, डा. सुनीता गुप्ता, शाहीन रिज़वी, प्रेमचंद गाँधी, अमिताव चक्रवर्ती व प्रो. सरबजीत सिंह ने प्रो. तेलतुंबड़े व गौतम नवलखा की गिरफ़्तारी की सख़्त शब्दों में पुरजोर निंदा करते हुए केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि वह इन बुद्धिजीवियों को बिना शर्त तुरंत रिहा करे। आज जब समस्त विश्व व मुल्क़ कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी से ख़ौफ़ज़दा एवं त्रस्त है, केंद्र सरकार अपने फासिस्ट मंसूबों को अंज़ाम देने की फ़िराक़ में है। 
प्रलेस ने नागरिकता संशोधन क़ानून 2019 के ऐतिहासिक शांतिमय विरोध-प्रदर्शन के दौरान और जामिया के छात्रों व महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षार्थ संघर्षरत जॉइंट कोआर्डिनेशन कमिटी (जेसीसी) की मीडिया संयोजक सफूरा जरगर व सक्रिय कार्यकर्ता मीरान हैदर को गिरफ़्तार किए जाने की भी कड़ी भर्त्स्ना करते हुए उनकी बिना शर्त रिहाई की मांग की है। यह घोरनिन्दनीय और गैरमानवीय है कि जब इस वैश्विक महामारी के चलते आपराधिक छवि वाले कैदियों को बाहर भेजा जा रहा है वहां सफूरा जरगर जो गर्भ से हैं और जिन्हें इस समय चिकित्सा सुविधा की सख़्त ज़रूरत है उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन करते हुए उन्हें बेवजह जेल में ठूंस दिया गया है। प्रलेस मांग करता है कि सफूरा जरगर और मीरान हैदर को तुरंत रिहा करते हुए उनके संवैधानिक अधिकार बहाल किए जाएं।
प्रलेस के तमाम पदाधिकारियों व समस्त कार्यकारिणी ने आरएसएस की साम्प्रदायिक नीतियों व फासिस्ट वैचारिक एजंडे के अनुरूप चलने वाली वर्तमान केंद्र सरकार को चेताया है कि वह लेखकों, बुद्धिजीवियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के अभिव्यक्ति के अधिकार को छीनने का कुत्सित प्रयास न करे। अभिव्यक्ति की आज़ादी, सामाजिक समरसता, न्याय एवं  बंधुत्व व साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए आवाज़ उठाने वाले लेखकों, बुद्धिजीवियों, चिंतकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के पक्ष में ज़रूरत पड़ने पर प्रलेस सड़कों पर उतरने व तीखे संघर्ष के लिए भी तैयार है।
प्रगतिशील लेखक संघ महासचिव डा. सुखदेव सिंह सिरसा और उनके सहोगी साथी इस मुद्दे को लेकर पंजाब हरियाणा और चंडीगढ़ में सकरी हैं। इस अभियान से जुड़ने के इच्छुक उनसे 98156-36565 पर सम्पर्क कर सकते हैं। 

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