उन बहादर लोगों का मेला था जिन्होंने सपने देखने की हिम्मत की
लुधियाना: 19 फरवरी 2020: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन)::
जनजीवन तेज़ी से बदल रहा है। यह अलग बात है कि लोग अभी इसे देख नहीं पा रहे या फिर देखने का मन नहीं बना पा रहे है। बदलाव को देखने के लिए भी एक हिम्मत की ज़रूरत होती है। इस हिम्मत को जुटाना हर किसी के बस में नहीं होता। हर एक नव निर्माण आमतौर पर पुराने का विध्वंस होने के बाद ही होता है। इस विध्वंस की सच्चाई को देखना, सहन करना और स्वीकार करना बेहद मुश्किल काम होता है। जब हम ब्रह्मा, विष्णु महेश का नाम लेते हुए सृष्टि के जन्म, पालन पोषण और फिर नाश की बातों को प्रतीकों के ज़रिये करते हैं तो वास्तव में वह यही सच्चाई होती है। हर पल सृजन भी चल रहा है--पालन-पोषण भी और विध्वंस भी। तीनों देवों प्रयासों से ही चल रहा है यह संसार। इसके बावजूद हम न तो पुराने को भूल पाते हैं और न ही नए को स्वीकार कर पते हैं। निरंतर जारी इस बदलाव की झलक दिखाई दी सीटी यूनिवर्सिटी के एक दिवसीय किसान मेले में। यहां उन बदलावों की झलक थी जो घट तो तेज़ी से रहे हैं लेकिन फिर भी हमें पूरी तरह से दिख नहीं रहे। विध्वंस हमें अच्छा नहीं लगता न! इस लिए हम घटित हो रहे सृजन को भी नहीं देख पाते।
खुदकुशियां बढ़ रही हैं। तेज़ी से बढ़ रही हैं। जनजीवन का एक निराशाजनक दौर जारी है लेकिन इसके बावजूद न तो लोगों ने सपने देखने छोड़े और न ही इन सपनों को साकार करने के प्रयास बंद किये। इन्हीं उम्मीदों, इन्हीं सपनों और इन्हीं कोशिशों की झलक दिखा रहा था यूनिवर्सिटी का किसान मेला जो वास्तव में बदलाव की झलक दिखने वाला मेला रहा। यह किसान मेला उन उद्यमियों का मेला था जिन्होंने अपने सपने टूटते हुए देखे हैं। विपत्तिओं के पहाड़ों को खुद पर टूटते हुए देखा है। जीवन में विध्वंस के तांडव को बेहद नज़दीक से महसूस किया है। इस सब के बावजूद फिर से हिम्मत की, फिर से कोशिशें शुरू कीं और फिर खड़े हो गए सूर्य से आंख मिलाने। इन्होंने मौत के मुंह से जीवन छीन कर नयी बुलंदियां छूने का चमत्कार दिखाया है। इसका अहसास इस मेले में जगह जगह होता था।
कृषि खत्म होने की कगार पर है। यह तो अब स्पष्ट होने ही लगा है। इसके बावजूद जो लोग अभी भी डटे हुए हैं उनके लिए नए नए बीजों की शानदार किस्में लेकर आये स्टाल भी मेले में थे। इन बीजों की खासियतें उन्होंने पंजाब स्क्रीन की टीम को भी बतायीं। यह बात अलग है कि मेले में सिर्फ बीजों की बिक्री नहीं थी-बहुत कुछ और भी था।
यहां जानेमाने ट्रेक्टर भी थे बिलकुल नए मॉडलों में भी। साथ ही टायर कंपनियां भी मौजूद रहीं। कृषि से सबंधित हर तकनीक यहां उपलब्ध थी। जिन लोगों ने हालात को देखते हुए अभी से कृषि छोड़ दी है उन्होंने अपने सहायक धंधों का भी शानदार प्रदर्शन किया था। यहां गुड़ और पंजीरी के स्टाल भी थे। गुड़ भी कई किस्म का था। तिलों से मिला गुड़ और उसका तांबे जैसा रंग। स्वाद गज़ब का। शायद मैंने ऐसा गुड़ पहली बार खाया। इसी तरह पंजीरी भी थी। चार सो रूपये किलो। ड्राई फ्रूट से भरी हुई और देसी घी से बनी। इसका स्वाद भी कमाल का था। । इसी तरह शहद भी कई तरह का था खूबसूरत पैकिंग में। दावा था कि प्रोसेसिंग के दौरान इसमें चीनी नहीं मिलाई गई। टेस्ट इसका भी यादगारी रहा।
गेंहूं का जूस तो आजकल सभी लोग आवश्यक महसूस करने लगे हैं लेकिन घरों में यह समय न होने के कारण बनाना मुश्किल लगता है और बाजार में यह हर जगह नज़दीक नहीं मिलता। इसलिए भी बहुत से लोग चाह कर भी इसका सेवन हर रोज़ नहीं कर पाते। उनके लिए इस मेले में था इसका पाऊडर बेचने वाला स्टाल। कीमत थी 350/-रूपये की। वज़न था 250 ग्राम। एक पैकेट से निकलता महीना और पूरा कोर्स है कम से कम तीन महीने का। आप इसे बाद में भी जारी रख सकते हैं।
इसी तरह यूनिवर्सिटी के छात्रों ने भी अपने स्टाल लगा रखे थे। इन युवाओं ने भी तकनीकी विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। छोटे छोटे रोबोटस, बैटरी से चलने वाली सस्ती सी कारें , खेतों में पंक्षियों को डराने के लिए आधुनिक किस्म के डिजिटल "डराने" भी थे जो कई तरह की आवाज़ों से पंक्षियों को डरा कर भगा देते हैं।
इस मेले में स्वास्थ्य को कायम रखने और बढ़ाने वाले प्रोडक्ट बेचने वाले बहुत से अन्य स्टाल भी मौजूद थे। बहुत कुछ और भी था जिसकी चर्चा अलग से की जा रही है। --रेक्टर कथूरिया
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