Friday, April 26, 2019

SCD कालेज के खिलाफ दर्ज FIR को लेकर सेमिनार 27 अप्रैल को

लोक सुरक्षा मंच ने तोड़ी माहौल में छायी ख़ामोशी 
विवादित नाटक "म्यूज़ियम....." के किसी पुराने मंचन का एक दृश्य 
लुधियाना: 26 अप्रैल 2019: (पंजाब स्क्रीन सांस्कृतिक डेस्क)::    
सतीश चंद्र हवन राजकीय  कालेज में खेले गए नाटक को लेकर उठा विवाद गहराता जा रहा है। कालेज के स्टाफ की सहम भरी खामोशी ने इसके रहस्य और भी गंभीर बना दिया है। गौरतलब है कि कुछ ही दिन पहले कालेज के स्टाफ ने एक तफोंफोन वार्ता में कहा था कि जब तक इस मुद्दे को उठाने संगठन बजरंग दल क्षमा मांगता तब तक सुलह की कोई बात नहीं हो सकती। लेकिन जब उन्हें यही बात कैमरे के सामने रेकार्ड करने को कहा गया तो स्टाफ ने टालमटोल का रवैया अपना लिया। गौरतलब है कि यह नाटक देश भर में कई कई बार खेला जा चुका  है।   पंजाब में भी इसके कई शो हो चुके हैं। इस नाटक के जिन डायलॉग्स पर एतराज़ उठाया गया है उससे मिलते जुलते डायलॉग राज कुमार संतोषी की फिल्म "लज्जा" में भी हैं। इस नाटक के मंचन का समर्थन करने वालों का कहना है कि इस नाटक का मंचन केवल यह दर्शाना था कि महिलाओं के साथ अन्याय आज से नहीं बल्कि युगों युगों से जारी है। सीता माता और द्रोपदी भी इससे बच नहीं सकी। अब जिस युग को आधुनिक कहा जाता है उसमें तो यह सिलसिला बंद होना चाहिए! लेकिन महिलाओं के अधिकारों की बात इस मंचन पर  ऐतराज़ उठने के बाद एक विवादित मुद्दा बन गई। दिलचस्प बात है कि सत्ता लोलुप सियासत के माहौल में कोई भी बड़ा राजनीतिक दल या समाजिक संगठन इस बात पर नहीं बोला।  वाम दलों और बुद्धिजीवियों ने इस ऐतराज़ को अड़े हाथों लिया और कहा चुनावी माहौल में इसे उठाने का मकसद एक ही है की हिन्दुत्वी संगठनों के पास अब जनता के पास जाने का कोई मुद्दा नहीं बचा। दूसरी तरफ बजरंग दल ने 24 अप्रैल को इसी मुद्दे को लेकर फिर से रोष प्रदर्शन का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो सका। सुना है उसी दिन कालेज में चंडीगढ़ से शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी भी आए थे।  लगा था दोनों तरफ के कुछ लोगों को बिठा कर सुलह करवा दी जाये गई लेकिन ऐसी कोई बात नहीं बन सकी। बजरंग दल इस बात पर अड़ा है कि ऍफ़ आई आर में जिन लोगों का नाम है उन्हें गरिफ्तार किया जाए। इस सारी स्थिति में एक चुप्पी सी छा गयी। अक्सर सबसे ज़्यादा बोलने वाले लोग भी खामोश हो गए। जिनका बोलना ज़रूरी था वे भी चुप्प हो गए। बोल रहा था तो केवल बजरंग दल। खुद को सेकुलर कहने वाले खफा थे कि अगर कांग्रेस के शासन में भी हमारे नाटकों को मुद्दा बना कर ऍफ़ आई आर दर्ज होती है तो यह चिंतनीय बात है। अगर सरकार अकाली भाजपा की होती तब क्या हुआ होता! डाक्टर अरुण मित्रा और उनके साथियों  ने इस मुद्दे को लेकर लोक सुरक्षा मंच की तरफ से मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरेंद्र सिंह को एक पत्र भी लिखा। ख़ामोशी की इस हालत में कमाल अहमद सिद्दीक़ी साहिब का शेयर याद आने लगा: 
कुछ लोग...जो ख़ामोश हैं ये सोच रहे हैं
सच बोलेंगे जब सच के ज़रा दाम बढ़ेंगे
इस चुप्पी को तोडा है लोक सुरक्षा मंच ने। इसी मुद्दे पर एक सेमिनार करवाने का एलान करके। सेमिनार की जगह सर्कट हाऊस थी लेकिन उन्होंने एन वक़्त पर मना कर दिया। शायद उन पर भी कोई दबाव काम कर रहा हो। इसके बाद सेमिनार की जगह बदली गयी। नयी जगह थी शहीद करनैल सिंह ईसड़ू भवन। अब्दुल्ला पर बस्ती में आते इंदिरा नगर में स्थित एक विशेष इमारत। सेमिनार का वक़्त होगा बाद दोपहर तीन बजे। इससे पहले जमहूरी अधिकार सभा भी खुल कर सामने आ चुकी है।   
अब देखना है कि इस सेमिनार में अपना सेकुलरिज़्म साबित करने कौन कौन पहुंचता है और कौन कौन बहानेबाज़ी करता है। 

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