पहली नवम्बर को पंजाब दिवस पर विशेष काव्य रचना
अपना पंजाब अब पंजाब कहां रह गया!
साज़िशों की बाढ़ में पंजाब सारा बह गया।
कहीं है हिमाचल, कहीं हरियाणा रह गया;
अपना पंजाब अब पंजाब कहां रह गया।
खेत मिट रहे हैं-खतरे में बाग़ है।
मक्की की रोटी कहां सरसों का साग है?
भेलपूरी छा गयी है; बर्गर पीज़ा रह गया!
अपना पंजाब अब पंजाब कहां रह गया।
ख़ुदकुशी की खबरें हैं, जुर्मों का राज है।
ठेके हैं शराब के बस नशे का ही राज है!
कहीं लाल परी, कहीं चिट्टा पाउडर रह गया।
अपना पंजाब अब पंजाब कहां रह गया।
कौन देखे आ के जो पंजाब बना आज है!
रोज़ आती खबरों में लापता सी लाज है!
सत्ता का यह ताज भी मज़ाक बन के रह गया!
अपना पंजाब अब पंजाब कहां रह गया।
लूट गया पंजाब बचा क्या जनाब रह गया?
पानी और खेतों का हिसाब कहाँ रह गया?
प्रेम की निशानी वो चनाब कहाँ रह गया!
अपना पंजाब अब पंजाब कहाँ रह गया?
--कार्तिका सिंह
(शुक्रवार 12अक्टूबर 2018 को रात्रि 11:27 बजे)
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