सियासत और पूंजीवाद का मायाजाल-हर कदम पे धोखा
लुधियाना: 30 नवम्बर 2017: (पंजाब स्क्रीन फीचर डेस्क)::
नशे की जंग चरमसीमा पर है। या तो नशा हार जायेगा या फिर यह दुनिया अपना भविष्य किसी अंधेरी सुरंग में ले जाएगी जिसका शायद अंत न हो। जंग का ऐलान हो चुका है। आरपार की रेखा खिंच चुकी है। इस तरफ कौन है और उस तरफ कौन यह भी अब सामने आने लगा है। सत्ता और सियासत कहां तक जा सकती है इसका पता अब आम इन्सान को भी लगने लगा है। धर्म के नाम पर क्या क्या हो सकता है यह भी अब खुल कर सामने आने लगा है। पूंजीवाद का करूप और घिनौना चेहरा एक बार फिर सामने आ रहा है।
नशे की जंग चरमसीमा पर है। या तो नशा हार जायेगा या फिर यह दुनिया अपना भविष्य किसी अंधेरी सुरंग में ले जाएगी जिसका शायद अंत न हो। जंग का ऐलान हो चुका है। आरपार की रेखा खिंच चुकी है। इस तरफ कौन है और उस तरफ कौन यह भी अब सामने आने लगा है। सत्ता और सियासत कहां तक जा सकती है इसका पता अब आम इन्सान को भी लगने लगा है। धर्म के नाम पर क्या क्या हो सकता है यह भी अब खुल कर सामने आने लगा है। पूंजीवाद का करूप और घिनौना चेहरा एक बार फिर सामने आ रहा है।
पूंजीवाद के इस दौर में फिर साफ़ हुआ है कि--बाप बड़ा न भैया--सबसे बढ़ा रुपैया
हर हाल में पैसा चाहिए। खुद को भी और अपने ख़ास लोगों को साथ बनाये रखने के लिए भी। पैसे के लिए कुर्सी चाहिए और कुर्सी बचाने के लिए फिर और पैसा और इस पैसे के लिए नशे का कारोबार। दूसरा करेगा तो तस्करी और हम करेंगे तो आमदनी का स्रोत। नशे का कारोबार बचाना है और फैलाना भी है। इसके लिए गुंडे जरूरी हों या बदमाश सब करना होगा। नशे की यह लहर भी ज़ोरों पर है और इसके खिलाफ जंग भी ज़ोरों पर जारी है।
नशे के खिलाफ जंग का जब भी ज़िक्र छिड़ेगा तो बहुत से नाम आएंगे जिन्होंने युवा वर्ग को नशे का गुलाम बनाने में कोई कसर न छोड़ी।
जब इस हकीकत को पढ़ कर आने वाली पीढी को शर्म भी आयेगी और बेहद निराशा भी होगी तो एक नाम सकुन देगा--बेलन ब्रिगेड प्रमुख अनीता शर्मा का नाम।
जन्मभूमि होशियारपुर और कर्मभूमि लुधियाना की एक सुविख्यात आर्किटेक्ट। आज सारा पंजाब और देश उस के लिए युद्धभूमि बन चूका है। देश को बचाना है-नशे को मार भगाना है-बस यही है जनून। लेकिन वायदे करने वाले लोग ज़्यादा और साथ देने वाले लोग कम।
अनीता शर्मा चाहती तो हर रोज़ नक्शे बनाने की सलाह दे कर मोटी कमाई कर लेती लेकिन रास्ता चुना अंतर आत्मा की आवाज़ सुन कर।
वह आवाज़ एक पुकार थी। उन परिवारों की पुकार जो नशे की लत ने उजाड़ दिए। नशे ने बहुत से घरों के चिराग बुझा दिए। बहुत सी माताओं से उनके लाल छीन लिए। बहुत सी बहनों के भाई खा लिए। बहुत से पिता बुढ़ापे में बेसहारा बना दिए। उनका दर्द पुकार रहा था कि कोई तो आये। कोई तो उनका दुःख सुने। कोई तो उठे। कोई तो इस नशे कारोबार को रोके। रास्ता मुश्किल था लेकिन पुकार लगातार आती रही। घर उजड़ते रहे। कारोबारी पैसा कमाते रहे। गांव गाँव से रुदन उठता रहा। रुदन तेज़ होती रही। पर कौन सुनता! निमंत्रण तह था लेकिन अंगारों पर चलने वाली बात थी।
--यह पुकार कहती रही----
इन्हीं पत्थरों पे चल कर गर हो सके तो आना,
मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशां नहीं है....
...और अनीता शर्मा चल पड़ी इस आवाज़ के पीछे--
बहुत से धोखे मिले। बहुत सी धमकियां मिलीं। बहुत से लालच और बहुत से दबाव। पति श्रीपाल ने लगातार साथ निभाया। सडक हादसे में बुरी तरह घायल हो कर भी अनीता शर्मा के मार्ग की चिंता की।
मकसद नेक था लेकिन आसान नहीं थी। अनीता शर्मा भूल गई कि सियासत की दुनिया फरेब की दुनिया होती है। इस दुनिया में कोई किसी का नहीं होता। इस सियासत के माया जाल में जो होता है वो दिखता नहीं और जो दिखता है वो होता नहीं। समाज ने अनीता का कितना साथ दिया यह भी एक दिलचस्प कहानी लेकिन सियासत ने क्या क्या किया यह भी दर्दभरी रहसयमय दास्तान।
अनीता शर्मा के साथ भी वही हुआ जो इस राह पर चलने वालों के साथ अक्सर होता है। विश्वासघात और धोखों की एक और दर्दनाक दास्तान जो आपके दिल को हिला कर रख देगी।
अनीता शर्मा की जंग एक सम्वेदनशील मोड़ पर है। उस मोड़ पर जहां कुछ भी हो सकता है। हालात नाज़ूक हैं। क्या अनीता शर्मा जीत पायेगी यह जंग...? क्या आप उसे हारने देंगें? अगर वह हार गयी तो हार आपकी होगी ! क्या आप नशे के सौदागरों को जीतने देंगें?
फैसला आपके हाथ---नशे से बेहोश समाज या नशा मुक्त दुनिया-----????
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