Monday, June 12, 2017

माछीवाड़ा में हुई वाम छात्र संगठन AISF की बैठक

महंगी शिक्षा के पीछे छुपी साज़िशों को किया गया बेनकाब 
माछीवाड़ा: 11 जून 2017: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्री):: More Pics on Facebook
जब भी नए समाज के लिए संघर्ष उठेगा तो माछीवाड़ा के जंगल उस वक़्त की याद दिलाएंगे जब श्री गोबिंद सिंह जी महाराज इस पावन भूमि पर पहुंचे थे। माछीवाड़ा एक ऐसी भूमि जिसका सिख इतिहास के साथ गहरा संबंध है। सरबत्त दा भला के मिशन को सफल बनाने के संघर्ष का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है माछीवाड़ा। मित्र प्यारे नूं हाल मुरीद दा कहना... इसी भूमि पर रचा गया शब्द है जिसे सुन कर आज भी दिल और दिमाग उस समय के हालात को बहुत गहन संवेदना से महसूस करने लगता है। More Pics on Facebook
शोषण रहत समाज के निर्माण में लगा शायद ही कोई मानव हो जिसे माछीवाड़ा की भूमि के  जंगलों ने संघर्ष का संकल्प याद कराने की आवाज़ न दी हो। इस बार इस आवाज़ को सुना वामपंथी छात्र संगठन आल इंडिया स्टूडेंटस फेडरेशन ने। मीटिंग बहुत अल्प समय के लिए थी लेकिन जब बात चली तो यह मीटिंग भी लम्बे समय तक चली। मीटिंग दुर्गा शक्ति मंदिर के हाल में हुई लेकिन वाम के वरिष्ठ जिला नेता कामरेड रमेश रत्न ने इस पावन भूमि के इतिहास की चर्चा भी शुरू की। वहां मीटिंग में मौजूद छात्रों से चमकौर की गढ़ी और आनंदपुर साहिब के इतिहास से जुड़े सवाल भी पूछे गए। श्री भैणी साहिब से जुड़े इतिहास की भी चर्चा हुई। 
मीटिंग में मुख्य मुद्दा था दिन-ब-दिन महंगी हो रही शिक्षा का। लगातार कम हो रहे सरकारी स्कूलों का। आम जन साधारण को शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित करने की साज़िश का तांकि गरीब का बच्चा कभी भी अमर बच्चों के सामने चुनौती न बन सके। More Pics on Facebook
वहां विशेर्ष तौर पर पहुंचे डाक्टर अरुण मित्रा ने लार्ड मैकाले और उसकी शिक्षा पद्धति और शिक्षा नीति की भी विस्तृत चर्चा की। डाक्टर मित्रा ने बहुत ही आसान शब्दों में इस क्षेत्र में काम कर रही गहन साज़िशों का पर्दाफाश किया। मीटिंग में मौजूद छात्र छात्राओं ने यह सब कुछ बहुत ही ध्यान से तकरीबन तकरीबन सांस रोक कर सुना।  शिक्षा के क्षेत्र की अहमियत को समझा और इस मामले में हो रही खतरनाक साज़िशों के खतरों को बहुत नज़दीक से महसूस किया।  More Pics on Facebook
इस युवा वर्ग की समझ आ रहा था कि  क्यों हर बार फीसें बढ़ा दी जाती हैं? क्यों आसमान छूने लगती है किताबों की कीमत? क्यों मुश्किल होता जा रहा है आम छात्र का पढ़ना लिखना। 
इस मीटिंग में आर एस एस और वीर सावरकर के इतिहास की भी विस्तृत चर्चा हुई। शहीद भगत सिंह की कुरबानी और वीर सावरकर द्वारा माफ़ी का इतिहास यहाँ मौजूद छात्र-छात्राओं को आज समझ में आ रहा था। साम्प्रदायिक संगठन क्यों ढून्ढ लेते हैं प्रगतिशील तत्वों के साथ दुश्मनी निभाने का कोई न कोई बहाना यह भी समझ आ रहा था। More Pics on Facebook
कामरेड रमेश रत्न ने छात्र वर्ग को समझाया कि गुरु साहिब की जंग किसी विशेष सम्प्रदाय या धर्म से नहीं थी। उनकी सेना में मुस्लिम वर्ग भी शामिल था।  दूसरी तरह आनंदपुर साहिब का किला घेरने वालों में हिन्दू राजाओं की सेनाएं भी शामिल थी। इस लिए श्री गुरु ग्बिन्द सिंह जी के संघर्ष को हिन्दू-मुस्लिम या सिख मुस्लिम संघर्ष में बाँट कर न देखा जाये। यह शोषण और अन्याय के खिलाफ ऐतिहासिक संघर्ष था।
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