अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए इप्टा के आए बहुत से संगठन
दिल्ली//लुधियाना//इंदौर: 13 अक्टूबर 2016: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन):
हमला करने वालों ने सोचा होगा बस थोड़ी सी गुंडागर्दी और इप्टा खत्म। जो लोग बचेंगे उन के दिलों में भी हमारी दहशत। फिर डरे हुए कलाकार करेंगे हमारे फाशी इरादों की प्रशंसा। पर हमला उल्टा पड़ा। इप्टा के साथ जुड़े हुए लोग भी एक बार फिर एकजुट हो गए और जो नहीं जुड़े थे वे भी इप्टा के समर्थन में आ गए। जम्मु, रांची, भिलाई, आगरा, दिल्ली, इंदौर और आंध्रप्रदेश में कलाकारों ने अपनी कवितायों और गीतों से बुलन्द की फाशीवाद की गुंडागर्दी के खिलाफ आवाज़।
दिल्ली में कर्यक्रम हुआ शाम चार बजे। जन समर्थक कला संगठन अभिव्यक्ति के हक में खुल कर आए। इनमें इप्टा दिल्ली के साथ साथ जन नाटय मंच, जनवादी लेखक संघ, जुम्बिश आर्टस, निशांत नाटय मंच, मजमा, खिलौना, प्रोग्रेसिव राईटर्स एसोसिएशन सहित बहुत से संगठन और मंच इस मकसद के लिए एकजुट हुए।
इसी तरह आगरा में भी इप्टा के हक में कलाकार खुलकर आगे आए। आगरा और आसपास के क्षेत्रों से जुड़े लोग अपने सभी काम छोड़ कर इस विरोध दिवस में शामिल हुए। अभिव्यक्ति की आज़ादी पर मंडराते खतरे के खिलाफ हर सच्चे कलाकार ने आवाज़ बुलन्द की। यहाँ भी भाषण थे, कविता थी, संगीत था और संकल्प का सागर। गुंडागर्दी के खिलाफ कलम ने मोर्चा सम्भाला।
इंदौर वह जगह है जहाँ इस खतरे ने खुलकर अपना चेहरा दिखाया। इंदौर में भी कला और संस्कृति के क्षेत्रों सक्रिय लोग बढ़ चढ़ कर आगे आए। कलाकारों ने हमले के उस काले दिन चर्चा की। इसके जवाब में लगे इंक़लाब ज़िंदाबाद के नारे की चर्चा की और जता दिया कि हम इस तरह के हमलों से डरने वाले नहीं। साबित किया कि आम साधारण लोगों से जुड़े संगठन इस तरह डरा नहीं करते। वे इस तरह कायरतापूर्ण हमलों से और मज़बूत होकर निकलते हैं।
जम्मू में भी गूंजी इप्टा की आवाज़: युद्ध और अशांति जैसा माहौल होने के बावजूद यहाँ भी इप्टा के हक में ज़ोरदार आवाज़ गूंजी। कलाकार खुल कर सामने आए और इप्टा पर हुए हमले का खुलकर विरोध किया। इस विरोध के बहाने दूर दूर रहने वाले कलाकार भी एक दुसरे के नज़दीक आए। देश विदेश का हर कलाकार सिद्धांत सूत्र में बंधा महसूस हुआ। इस विरोध दिवस से अहसास हुआ कि कितनी प्यारी है हर कलाकार को अभिव्यक्ति की आज़ादी।
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