Thursday, October 16, 2014

अग्रिम जमानत मिल गयी-यह अंत नहीं है-लडाई तो अब शुरू हुई है

Thu, Oct 16, 2014 at 6:05 PM
फारवर्ड प्रेस में कोई भी सामग्री आधारहीन नहीं 
नई दिल्‍ली: 16 अक्‍टूबर 2014: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
अंतत: आज कोर्ट से मुझे भी अग्रिम जमानत मिल गयी। ख्‍याल नारीवादी लेखक अरविंद जैन इस मामले में मेरे वकील हैं। उन्‍होंने बताया कि पुलिस के पक्ष ने जमानत का घनघोर विरोध किया।
अरविंद जैन जी कोर्ट में फारवर्ड प्रेस का पक्ष तो रखा ही साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 153 A (जिसके तहत मुकदमा दर्ज किया गया है) की वैधता पर भी सवाल उठाए। यही वह धारा है, जो अभिव्‍यक्ति की आजादी पर पुलिस का पहरा बिठाती है।
हालांकि यह अंत नहीं है। लडाई तो अब शुरू हुई है। यह लडाई न सिर्फ मेरी है, न सिर्फ श्री आयवन कोस्‍का की, न ही सिर्फ फारवर्ड प्रेस की। यह अभिव्‍यक्ति, विमर्श और तर्क करने की आजादी की लडाई है। हम सभी को इसे इसी रूप में लडाना चाहिए। एक संघर्ष वस्‍तुत: आधुनिक समाज के निर्माण के लिए है।
उन सभी का हार्दिक शुक्रिया जो विभिन्‍न मतांतरों के बावजूद विमर्श और अभिव्‍यक्ति की आजादी की लडाई में बराबर के भागीदार हैं।

फारवर्ड प्रेस के मुख्‍य संपादक आयवन कोस्‍का और सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन को नई दिल्‍ली के पटियाला हाऊस कोर्ट ने अग्रिम जमानत दे दी। आदालत में संपादकों का पक्ष रखते हुए ख्‍यात नारीवादी लेखक व अधिवक्‍ता अरविंद जैन, साइमन बैंजामिन तथा अमरेश आनंद ने कहा कि फारवर्ड प्रेस पर  पुलिस की कार्रवाई अभिव्‍यक्ति की आजादी पर हमला है। यहां तक कि संपादकों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (अ) , 295 (अ) आज की तारीख में निरर्थक हो गये हैं तथा इसका उपयोग राजनीतिक कारणों से किया जा रहा है। 

जमानत के बाद  सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन ने उत्‍तर प्रदेश के महोबा जिले में मौजूद महिषासुर, जिन्‍हें भैसासुर के नाम से भी जानाा जाता है की तस्‍वीरें जारी करते  हुए कहा कि फारवर्ड प्रेस में कोई भी सामग्री सामग्री आधारहीन नहीं है। यह मंदिर भारतीय पुरातत्‍व विभाग द्वारा संरक्षित भी है। ऐसे सैकडों भौतिक साक्ष्‍य उपलब्‍ध हैं, जो यह साबित करते हैं कि 'दुर्गा-महिषासुर' का बहुजन पाठ अलग रहा है। उन्‍होंने कहा कि पत्रिका का इन पाठों को प्रकाशित करने का मकसद अकादमिक रहा है इसके अलावा इस पाठों के माध्‍यम से हम चाहते हैं कि विभिन्‍न समुदाय एक दूसरें की भावनाओं, परंपराओं को समझें तथा एक-दूसरे करीब आएं। फारवर्ड प्रेस का कोई इरादा किसी समुदाय की भावना को आहत करने का नहीं रहा है।

गौरतलब है कि इसके पूर्व उदय प्रकाशअरुन्धति रायशमशुल इस्लाम,शरण कुमार लिंबाले, गिरिराज किशोरआनंद तेल्तुम्बडेकँवल भारतीमंगलेश डबरालअनिल चमडियाअपूर्वानंदवीरभारत तलवारराम पुनियानी, एस.आनंद समेत 300 से हिंदी, मराठी व अंग्रेजी लेखकाें ने फारवर्ड प्रेस पर कार्रवाई की निंदा की थी। 
लेखक समुदाय ने एक संयुक्‍त बयान जारी कर कहा था कि -  यह देश विचारमत और आस्थाओं के साथ अनेक बहुलताओं का देश है और यही इसकी मूल ताकत है. लोकतंत्र ने भारत की बहुलताओं को और भी मजबूत किया है।  आजादी के बाद स्वतंत्र राज्य के रूप में भारत ने अपने संविधान के माध्यम से इस बहुलता का आदर किया और उसे मजबूत करने की दिशा में प्रावधान सुनिश्चित किये.
इस देश के अलगअलग भागों में शास्त्रीय मिथों के अपने अपने पाठ लोकमिथों के रूप में मौजूद हैं. देश के कई हिस्सों में रावण’ की पूजा होती हैपूजा करने वालों में सारस्वत ब्राह्मण भी शामिल हैं. महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर राजा बलि की पूजा की जाती हैजो वैष्णवों के मत के अनुकूल नहीं है. आज भी इस देश में असुर जनजाति के लोग रहते हैंजो महिषासुर व अन्य असुरों को अपना पूर्वज मानते हैं। हर साल मनाये जाने वाले अनेक पर्वों में धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप निर्मित छवि वाले असुरों के खिलाफ जश्न मनाया जाता हैजो एक समूह के अस्तित्व पर प्रहार करने के जाने अनजाने आयोजन हैं। 
दिल्ली से प्रकाशित फॉरवर्ड प्रेस पत्रिका अक्टूबर के अपने बहुजन श्रमण परंपरा विशेषांक’ में में इस तरह की अनेक परंपराओंसांस्कृतिक आयोजनोंविचारों को सामने लायी हैजिसमें दुर्गा मिथ’ या दुर्गा की मान्यता के पुनर्पाठ भी शामिल हैं.
2011 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक छात्र समूह ने महिषासुर शहादत’ दिवस मनाने की परम्परा की शुरुआत कीजिसके बाद पिछले चार सालों में देश के सैकड़ो शहरों में यह आयोजन आयोजित होने लगा है. इस व्यापक स्वीकृति का आधार इस देश के बहुजन श्रमण परम्परा और चेतना में मौजूद है.
पिछले ९ अक्टूबर को इस कारण फॉरवर्ड प्रेस के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा अतिवादी लोगों के एक समूह के द्वारा किये गए एफ आई आर और उसके बाद पुलिस की कार्यवाई की हम निंदा करते हैं पत्रिका के ताजा अंक की प्रतियां जब्त कर ली गयी हैं तथा संपादकों के घरों पर पुलिस का छापा,  उनके दफ्तर और घरों पर निगरानी पत्रिका के कामकाज पर असर डालने के इरादे से की जा रही है. यह अभिव्यक्ति की आजादी और देश में बौद्धिक विचार परम्परा के खिलाफ हमला है. वैचारिक विरोधों को पुलिसिया दमन या कोर्ट-कचहरी में नहीं निपटाया जा सकता। अगर पत्रिका में प्रकाशित विचारों से किसी को असहमति है तो उसे उसका उत्तर शब्दों के माध्यम से ही देना चाहिए।
हम भारतीय जनता पार्टी सरकार से आग्रह करते हैं कि इस एफ आई आर को तत्काल रद्द करने का निर्देश जारी करे और पुलिस को निर्देशित करे कि इसके संपादकों के खिलाफ अपनी कार्यवाई को अविलम्ब रोका जाए.

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