19-जून-2014 13:27 IST
मंत्रालय ने किशोर न्याय अधिनियम 2014 के लिए मांगे सुझाव
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने वर्तमान जे जे अधिनियम, 2000 को निरस्त तथा फिर से तैयार करने का फैसला लिया है। प्रस्तावित बाल अपराध न्याय (बच्चों की देखभाल एवं सुरक्षा) अधिनियम 2014 की रूप-रेखा तैयार कर ली गई है जिसमें पहले की परामर्श प्रक्रिया के दौरान दिये गये सुझाव शामिल किये गये हैं। मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट www.wcd.nic.in पर अधिनियम की रूप-रेखा की प्रति अपलोड कर दी है ताकि नागरिक समाज के लोग, गैर-सरकारी संस्थान एवं अन्य व्यक्ति अपने सुझाव/टिप्पणियां दे सके।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान बच्चों की सुरक्षा के लिए कानून निर्माण और उनके कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दे उठते रहे हैं। वर्तमान अधिनियम में नये प्रावधानों को शामिल करके और पहले के प्रावधानों को मजबूत करके इन मुद्दों को संबोधित किये जाने की आवश्यकता है। इसे सुनिश्चित करने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सभी राज्यों/संघशासित प्रदेशों और नागरिक समाज संगठनों के साथ निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार-विमर्श किया:1. संस्थानों, परिवारों और समुदायों में बच्चों के शोषण की बढ़ती घटनाएं।
2. आश्रय स्थलों में अपर्याप्त सुविधाएं, देखभाल और पुनर्वास की गिरती गुणवत्ता।
3. अधिनियम के तहत विभिन्न प्रक्रियाओं में देरी। उदाहरण के लिए बाल कल्याण समिति तथा बाल अपराध बोर्ड के तहत मामलों की अत्यधिक भीड़ के चलते फैसले में होने वाली देरी।
4. गोद लेने की प्रक्रिया में देरी।
5. बच्चों के विरूद्ध अपराधों से निपटने के लिए अपर्याप्त कानूनी प्रावधान।
6. 16 से 18 वर्ष आयु वर्ग में किशोरों से संबंधित प्रावधानों का कानून के साथ टकराव।
संगठनों और व्यक्तियों को प्रस्तावित अधिनियम की समीक्षा करने और सुझाव देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। अपने सुझाव 15 दिन के भीतर 03.07.2014 को सायं 6.00 बजे तक vivek.joshi@nic.in तथा ashi.kapoor@nic.in, jyotimathur@yahoo.co.in पर भेजें।(PIB)
वि.कासोटिया/एएम/आर/एसएस-2017
मंत्रालय ने किशोर न्याय अधिनियम 2014 के लिए मांगे सुझाव
स्केच साभार:महिला एवं बल विकास |
पिछले कुछ वर्षों के दौरान बच्चों की सुरक्षा के लिए कानून निर्माण और उनके कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दे उठते रहे हैं। वर्तमान अधिनियम में नये प्रावधानों को शामिल करके और पहले के प्रावधानों को मजबूत करके इन मुद्दों को संबोधित किये जाने की आवश्यकता है। इसे सुनिश्चित करने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सभी राज्यों/संघशासित प्रदेशों और नागरिक समाज संगठनों के साथ निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार-विमर्श किया:1. संस्थानों, परिवारों और समुदायों में बच्चों के शोषण की बढ़ती घटनाएं।
2. आश्रय स्थलों में अपर्याप्त सुविधाएं, देखभाल और पुनर्वास की गिरती गुणवत्ता।
3. अधिनियम के तहत विभिन्न प्रक्रियाओं में देरी। उदाहरण के लिए बाल कल्याण समिति तथा बाल अपराध बोर्ड के तहत मामलों की अत्यधिक भीड़ के चलते फैसले में होने वाली देरी।
4. गोद लेने की प्रक्रिया में देरी।
5. बच्चों के विरूद्ध अपराधों से निपटने के लिए अपर्याप्त कानूनी प्रावधान।
6. 16 से 18 वर्ष आयु वर्ग में किशोरों से संबंधित प्रावधानों का कानून के साथ टकराव।
संगठनों और व्यक्तियों को प्रस्तावित अधिनियम की समीक्षा करने और सुझाव देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। अपने सुझाव 15 दिन के भीतर 03.07.2014 को सायं 6.00 बजे तक vivek.joshi@nic.in तथा ashi.kapoor@nic.in, jyotimathur@yahoo.co.in पर भेजें।(PIB)
वि.कासोटिया/एएम/आर/एसएस-2017
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