मदरसे आतंक की फेक्ट्री और अपने आश्रम संस्कृति के जनक?
एक छोटी सी पोस्ट से सोचने को मजबूर करते कामरेड मिश्रा
Comrade Aman Mishra Dyfi ने सात सितम्बर की शाम को करीब पांच बजे फेसबुक पर बहुत ही स्पष्ट शब्दों में एक संक्षिप्त सी रिपोर्ट पोस्ट की है जो बहुत कुछ कहती है। हो सकता है आप इससे सहमत न हो लेकिन इसमें जो मुद्दे उठाये गए हैं वे आप सबका ध्यान मांगते हैं….वे हम सब को झंक्झौरते हैं---वे हम सब से सवाल पूछते हैं.……आखिर कहाँ जा रहे हैं हम ? जालंधर में कई बरस पूर्व एक वरिष्ठ पत्रकार भरपूर सिंह बलबीर एक शेयर अक्सर सुनाया करते---
झुक का सलाम करने में क्या हर्ज है मगर;
सर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े !
सरकार की और से लगातार लग रहे कर, लगातार बढ़ रही महंगाई, लगातार बढ़ रही बेरोज़गारी ने हमें बस दो वक्त की रोटी के चक्कर में घूमने वाला कोहलू का बैल बना दिया है। आँखें हमारी बंद हो गई हैं और अक्ल के नाम पर भेजे में कुछ बचने ही नहीं दिया गया। हम संघर्षों की राह छोड़ कर उन लोगों को भगवान बना बैठे हैं जिनके कारनामे कहते सुनते भी श्रम आती है। कामरेड मिश्रा ने इनकी चर्चा बहुत ही सभ्यक शब्दों में की है। इस पोस्ट पर आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी। पोस्ट का शीर्षक है:: ‘बाबा सरणम गच्छामी
आसाराम समझ गया कि देश और हिन्दू मूर्ख है सो करो मनमानी
बीजेपी ने भी अपना जनाधार बनाने के लिए ‘बाबा सरणम गच्छामी” की माला जपना शुरू किया । राजनीतिक लोग और मीडिया भी आश्रमो को कवर करने लगे । धार्मिक टीवी चेनलों ने बाबावों को बुलंदियों पे छड़ा दिया । धीरे धीरे इन बाबावों को अभिमान होने लगा कि इनके अंधे अनुयाई कुछ भी करने को तयार है तो बाबा लोग भी सेक्स का लुफ्त लेने लगे । बाबा कि मंच पे जय जय कार होने लगी। बाबा मंच से कुछ भी बोले ,जय जैकार होना तय था। मंच से कथा कहानिया ,चुट्कुले , संगीत नाच, आयुर्वेदिक दवा , भूत प्रेत भगाना, राजनीतिक भाषण ,औरतों से आँख मटक्का , होली के रसिया ,रंग गुलाल सब चलने लगा। आश्रम अब ‘धार्मिक मनोरंजन’ मे तब्दील हो गए। वीकेंड मे पिकनिक पे ना जाकर लोग आश्रमों कि और दोड़ने लगे। एक धार्मिक सम्मोहन हो गया । जो लोग आश्रमों मे नहीं गए उनको उकसाया जाता कि आश्रम मे चलो। हम लोग मुसलमानो के मदरसों को आतंक की फेक्ट्री बताने लगे पर अपने आश्रमो को संस्कृति के जनक समझने लगे । आश्रमो मे धीरे धीरे सेक्स की माया काम देव आ गए। कुछ लोग बाबा बन कर सेक्स रेकेट ही चलाने लगे। साई मंदिर, राम मंदिर के तहख़ानो मे ही सेक्स की दुकान सजने लगी। आसाराम और नाराइन साई भी मोका ताड़ कर बदलते चले गए। मंच पे मेकअप कराकर आने लगे। अलग अलग पौशाके पहन कर लोगो मे एक सम्मोहन पैदा करने लगे। आचार्य रजनीश टाइप की टोपी पहने लगे । पब्लिक, आसाराम और नारायण साई के पीछे पागलों की तरह दोड्ने लगी। अनुयाई किसी चमत्कार के उम्मीद मे पगला गए। पहले गॉडमेन माना फिर गॉड ही मान लिया। भक्ति मे बावले हो गए और आशु सिंधी को भगवान ही मान लिया । आसाराम समझ गया कि देश और हिन्दू मूर्ख है सो करो मनमानी। 16 साल लड़किया कि डिमांड करने लगा और वो कच्चा गोस्त (कमसिन लड़कियां ) का शौकीन हो गया । उसके प्यादे लड़की सप्लाइ करने लगे और अनुयाई समझे बाबा लीला कर रहे है । अब उस फर्जी और फरेबी आसाराम की पोल खुल गयी।
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