देश के साढ़े पाँच लाख गांवों में 77 करोड़ से भी अधिक लोग
Photo by Rector Kathuria |
भारत वास्तव में गांवों की धरती के रूप में विख्यात है। सन 2001 की जनगणना के अनुसार देश के साढ़े पाँच लाख गांवों में 77 करोड़ से भी अधिक लोग रहते हैं। ग्रामीण भारत का राष्ट्रीय आय में (2006-07 के दौरान) 18 दशमलव 5 प्रतिशत योगदान रहा जो कि 1950 की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक है। देश की 85 प्रतिशत से भी अधिक आबादी आज भी गांवों में रहती है जो कि कृषि पर निर्भर है। ग्रामीण भारत 58 प्रतिशत रोजगार प्रदान करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है। वास्तविक भारत की असल तस्वीर अगर देखनी है तो हमें गांवों को भीतर तक देखना होगा।
ग्रामीण पर्यटन देश के लिए कई अर्थों में महत्वपूर्ण है इससे न केवल रोजगार के अवसर बढ़ेंगे बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों का विकास होगा जिससे वहां के लोगों का जीवनस्तर भी बढ़ेगा। विदेशी मुद्रा अर्जन में पर्यटन की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत में पर्यटकों की संख्या और उससे होने वाली विदेशी मुद्रा आय में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 2010 में जनवरी से नवम्बर तक विदेशी पर्यटकों के आवागमन में 11 दशमलव 8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी जबकि वर्ष 2009 में इसी अवधि में यह वृद्धि दर 9 दशमलव 4 प्रतिशत थी। विदेशी मुद्रा अर्जित करने के मामले में 2010 में जहां 2009 की तुलना में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई वहीं जनवरी से नवंबर 2011 के दौरान 2010 की इसी अवधि की तुलना में 18 दशमलव 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। घरेलू पर्यटकों की वर्ष 2010 में 2009 की तुलना में 10 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गयी। इस अवधि में घरेलू पर्यटकों की तादात 740 दशमलव 21 मिलियन थी जबकि 2009 में यह तादात 650 मिलियन थी।
वास्तविक भारत को भारत के गांवों को देखकर ही समझा, जाना और पहचाना जा सकता है। ग्रामीण पर्यटन इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण साबित हो सकता है जिससे विश्व पर्यटन बाजार में भारत को अलग पहचान मिल सकती है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों का और अधिक विकास होगा, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे तथा शहरों की और बढ़ते हुए पलायन को रोकने में मदद मिलेगी। वहां के लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने तथा उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल कर गांधी के सपनों के भारत को साकार किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में हस्तशिल्प, दस्तकारी की वस्तुओं के अलावा अनेक स्थानीय उत्पाद भी होते हैं। ग्रामीण पर्यटन से बुनकरों और कारीगरों की कला का हुनर देश-विदेश में पहुंचेगा। मांग बढ़ेगी तो उससे इन ग्रामीण कलाओं तथा उत्पादों के संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा अन्यथा ग्रामीण हस्तशिल्प और दस्तकारी धीरे-धीरे विलुप्त होते चले जायेंगे।
पर्यटन मंत्रालय ने ‘हुनर से रोजगार’ प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत 6 से 8 सप्ताह तक का कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ किया है। जिसमें 28 वर्ष तक के युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके लिए शैक्षणिक योग्यता आठवीं पास रखी गयी है। इसके अलावा खाद्यान उत्पादन एवं खाद्य व ब्रेवरीज सेवाओं से जुड़े कौशल के लिए इसमें हाउस कीपिंग यूटिलिटी एवं बेकरी आदि से संबधित पाठ्यक्रम शामिल किये गए हैं। इन अल्पकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रमों को पर्यटन मंत्रालय से प्रायोजित संस्थानों, इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमैंट, फूड क्राफ्ट इंस्टीट्यूट, राज्य सरकारों के चुने हुए इंस्टीट्यूट और कुछ पाँच तारा होटलों तथा आईटीडीसी द्वारा चलाया जाता है। इसका लक्ष्य दस हजार युवाओं को प्रशिक्षित करना है और 30 नवंबर 2011 तक 8686 युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
भारत में सन् 2016 तक पहले चरण में 35 पर्यटन सर्किट/स्थल/नगरों को शामिल करने की योजना बनायी गयी है। इन स्थलों की पहचान कर इन्हें सरकारी-निजी भागीदारी-पीपीपी के आधार पर विकसित किया जायेगा। पर्यटन मंत्रालय ने 12वीं योजना में 23 हजार करोड़ रुपये आवंटित करने की मांग की है जबकि 11वीं योजना में उसे 5156 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। यदि 12वीं योजना में यह राशि पर्यटन मंत्रालय को आवंटित की गयी तो इससे पर्यटन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने और इसका पूरी तरह दोहन करना संभव हो सकेगा।
राष्ट्रीय पर्यटन सलाहकार परिषद ने 12वीं योजना में पर्यटन विकास हेतु रणनीति तैयार की है। पर्यटन मंत्री की अध्यक्षता में 12 दिसंबर 2011 को इसकी बैठक हुई। हर राज्य एवं संघ शासित क्षेत्रों में चार-चार पर्यटन सर्किट/स्थलों तथा दो-दो ग्रामीण क्लस्टर की पहचान हेतु पर्यटन ढांचे के विकास के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन मंत्रालय ने सलाहकार नियुक्त किये हैं। परिषद कौशल विकास के ढांचागत विकास हेतु चार रणनीतियां तैयार कर रही है। ‘अतिथि देवो भव’ प्रोत्साहन के अंतर्गत सामाजिक जागरूकता अभियान को और तेज किया जा रहा है। ढांचागत विकास के अंतर्गत ग्रामीण पर्यटन हेतु तैयार की गयी रणनीति में पर्यटन उत्पादों के रूप में विकास हेतु 5 से 7 गांवों के क्लस्टर में स्थानीय शिल्प की पहचान करना शामिल है। जिसमें उस क्लस्टर के लोगों में पर्यटन के बारे में जागरूकता बढ़ाना, दस्तकारी बाजार एवं हाट के माध्यम से स्थानीय उत्पादों की बिक्री की व्यवस्था करना, स्थानीय बुनियादी ढांचे एवं स्वच्छता के विकास में सहायता तथा आवासीय सुविधा का विकास आदि प्रमुख हैं। ग्रामीण समूहों (क्लस्टर) के भीतर घरों में रहने की सुविधा उपलब्ध कराना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। ऐसे 70 ग्रामीण पर्यटक क्लस्टरों की पहचान कर उन्हें विकसित किया जायेगा, जिसके लिए 12वीं योजना में 770 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जा रहा है।
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि एवं कपड़ा तथा कुछ हद तक ढांचागत अर्थव्यवस्था से रोजगार मिलता है। हर राज्य की अलग विशिष्टताओं तथा जरूरतों को ध्यान में रखकर देश में पर्यटन की योजना बनायी जानी चाहिए। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में विरासत, कला एवं संस्कृति, धार्मिक एवं आध्यात्मिक पर्यटन, साहसिक एवं प्राकृतिक पर्यटन तथा परंपरागत पर्यटन आदि के भरपूर अवसर उपलब्ध हैं। इस सबको ध्यान में रखकर ग्रामीण पर्यटन को विकसित कर ग्रामीण क्षेत्र के विकास के साथ रोजगार के व्यापक अवसर आसानी से मिल सकते हैं। रोजगार की खोज में ग्रामीण क्षेत्रों से तेजी से पलायन लगातार बढ़ रहा है जिसे वहां पर्यटन को बढ़ावा देकर रोका जा सकता है।
ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ऐसी रणनीति अपनायी जानी चाहिए जिससे वहां उपलब्ध संसाधनों का समुचित उपयोग हो सके। ग्रामीण पर्यटन का वर्गीकरण उस क्षेत्र विशेष के धार्मिक एवं प्राकृतिक स्थलों, समृद्ध विरासत, कला-संस्कृति से जुड़े स्थलों, ग्रामीण एवं कृषि परंपराओं, वैकल्पिक औषधि एवं आध्यात्मिक हीलिंग आदि से जोड़ा जा सकता है। इससे हर क्षेत्र को पर्यटन मानचित्र पर लाने तथा पर्यटक पैकेज बनाकर पर्यटकों को उनकी रुचि के अनुसार आकर्षित किया जा सकता हे। इसके लिए विपणन अनुसंधान, योजना एवं नेटवर्क विकास की जरूरत है जिससे घरेलू एवं विदेशी पर्यटकों को अपने पसंद के स्थलों की पहचान में आसानी हो। {02-फरवरी-2012 17:43 IST} {पी.आई.बी} ***
*लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार है और इस विशेष लेख में उनके द्वारा व्यक्त किए गए विचार पूर्ण रूप से उनके अपने हैं और यह जरूरी नहीं है कि ये विचार पत्र सूचना कार्यालय के विचारों को दर्शाते हों।
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