पंजाब स्क्रीन:कविता सप्ताह:दूसरा दिन:अलका सैनी
खंडहर
खंडहर हुआ महल अपने
बोझिल अक्स को
मूक आँखों से रहा निहार
जहाँ थी कभी यौवन
भरे उपवन की बहार,
आज खोखली दीवारों से
झरती रेत की तरह
मनुहार
कीट पतंगों , गले सड़े कीड़ों
का भरा अम्बार
सुगन्धित सीलन भरी मिट्टी
भी देने लगी दुर्गन्ध
ठहरे पानी में जमी काई की
छटपटाहट से तन बीमार,
पाप - पुण्य , आस्था - अनास्था
की सीमा में उलझ
मंदिर की मूर्तियाँ धूल भरे
जालों में झुलस
देवता भी जहाँ करते
थे कभी वास
वहीँ खंडहर हुई सुन्दरता की
कुरूपता में बुझे स्वास,
जहाँ तक थी कभी
सड़क चमकदार
वहाँ अब है संकरी पगडण्डी
खतरें अपार
कौन मुसाफिर जाने का
करेगा दुसाहस ?
-अलका सैनी ###
खंडहर
खंडहर हुआ महल अपने
बोझिल अक्स को
मूक आँखों से रहा निहार
जहाँ थी कभी यौवन
भरे उपवन की बहार,
आज खोखली दीवारों से
झरती रेत की तरह
मनुहार
कीट पतंगों , गले सड़े कीड़ों
का भरा अम्बार
सुगन्धित सीलन भरी मिट्टी
भी देने लगी दुर्गन्ध
ठहरे पानी में जमी काई की
छटपटाहट से तन बीमार,
पाप - पुण्य , आस्था - अनास्था
की सीमा में उलझ
मंदिर की मूर्तियाँ धूल भरे
जालों में झुलस
देवता भी जहाँ करते
थे कभी वास
वहीँ खंडहर हुई सुन्दरता की
कुरूपता में बुझे स्वास,
जहाँ तक थी कभी
सड़क चमकदार
वहाँ अब है संकरी पगडण्डी
खतरें अपार
कौन मुसाफिर जाने का
करेगा दुसाहस ?
-अलका सैनी ###
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