शिव की पूजा बोधि वृषा
शब्द ‘शिव’ का अथ है ’शुभ‘ शंकर का अथ होता है, कल्याण करने वाले निश्चित रूप से उसे प्रसत्र करने के लिए मनुष्य को उनके अनुरूप ही बनना पड़ेगा
’शिवो भूत्वा शिवं यजेत‘ अथात् शिव बनकर ही शिव की पूजा करें धम ग्रंथों में शिव के स्वरूप की प्रलयंकारी रूद्र के रूप में स्तुति की गयी है शंकर के ललाट पर स्थित चंद्र, शीतलता और संतुलन का प्रतीक है यह विश्व कल्याण का प्रतीक और सुंदरता का पयाय है, जो निश्चित ही ’शिवम्‘ से ’सुंदरम्‘ को चरिताथ करता है सिर पर बहती गंगा शिव के मस्तिष्क में अविरल प्रवाहित पवित्रता का प्रतीक है.
आज विवेकहीनता के कारण मानव दुखी है भगवान शिव का तीसरा नेत्र विवेक का प्रतीक है जिसके खुलते ही कामदेव नष्ट हुआ था अथात् विवेक से कामनाओं को विनष्ट करके ही शांति प्राप्त की जा सकती है उनके गले में सर्पो की माला दुष्टों को भी गले लगाने की षामता तथा कानों में बिच्छू, बर के कुंडल कटु एवं कठोर शब्द सहने के परिचायक हैं मृगछाल निरथक वस्तुओं का सदुपयोग करना और मुंडों की माला जीवन की अंतिम अवस्था की वास्तविकता को दशाती है भस्म लेपन, शरीर की अंतिम परिणति को दशाता है
भगवान शिव के अंतस का यह तत्वज्ञान शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता की ओर संकेत करता है शिव को नील कंठेश्वर कहते हैं पुराणों में समुद्र मंथन की कथा आती है समुद्र से नाना प्रकार के रत्न निकले, जिसको देवताओं ने अपनी इच्छानुसार हथिया लिया अमृत देवता पी गये समुद्र से जहर निकला तो सारे देवी-देवता भाग खड़े हुए जहर की भीषण ह्लवाला से सारा विश्व जलने लगा, तब शिव आगे ब़ढे और कालकूट प्रलयंकर बन गये और नीलकंठ देवाधिदेव महादेव कहलाने लगे हमारे कुछ धामिक कहे जाने वाले व्यक्तियों ने शिव पूजा के साथ नशे की परिपाटी जोड़ रखी है लेकिन आश्चय है कि जो शिव- ’हमरे जान सदा शिव जोगी, अज अनव़ढ अकाम अभोगी‘ जैसा विराट पवित्र व्यक्तित्व है, उसने पता नहीं नशा कब किया होगा भांग, धतूरा, चिलम-गांजा जैसे घातक नशे करना मानवता पर कलंक है, अत: शंकर भक्त को ऐसी बुराइयों से दूर रहकर शिव के चरणों में बेल पत्र ही समपित करना चाहिए बेल के तीन पत्र हमारे लोभ, मोह, अहंकार को मिटाने में समथ है नशेबाजी धीमी आत्महत्या है इस व्यक्तिगत और सामाजिक बुराइ से बचकर नशा निवारण के संकल्पों को उभारना ही शंकर की सच्ची आराधना है शंकर के सच्चे वीरभद्र बनने की आवश्यकता है वीरता अभद्र न हो, तो संसार के प्रत्येक व्यक्ति को न्याय मिल सकता है आज शिवरात्रि है, नशामुक्ति का संकल्प लेकर उनकी पूजा-अचना कीजिए - पंडित श्रीराम शमा आचाय.(प्रभात खबर से साभार)
शब्द ‘शिव’ का अथ है ’शुभ‘ शंकर का अथ होता है, कल्याण करने वाले निश्चित रूप से उसे प्रसत्र करने के लिए मनुष्य को उनके अनुरूप ही बनना पड़ेगा
’शिवो भूत्वा शिवं यजेत‘ अथात् शिव बनकर ही शिव की पूजा करें धम ग्रंथों में शिव के स्वरूप की प्रलयंकारी रूद्र के रूप में स्तुति की गयी है शंकर के ललाट पर स्थित चंद्र, शीतलता और संतुलन का प्रतीक है यह विश्व कल्याण का प्रतीक और सुंदरता का पयाय है, जो निश्चित ही ’शिवम्‘ से ’सुंदरम्‘ को चरिताथ करता है सिर पर बहती गंगा शिव के मस्तिष्क में अविरल प्रवाहित पवित्रता का प्रतीक है.
आज विवेकहीनता के कारण मानव दुखी है भगवान शिव का तीसरा नेत्र विवेक का प्रतीक है जिसके खुलते ही कामदेव नष्ट हुआ था अथात् विवेक से कामनाओं को विनष्ट करके ही शांति प्राप्त की जा सकती है उनके गले में सर्पो की माला दुष्टों को भी गले लगाने की षामता तथा कानों में बिच्छू, बर के कुंडल कटु एवं कठोर शब्द सहने के परिचायक हैं मृगछाल निरथक वस्तुओं का सदुपयोग करना और मुंडों की माला जीवन की अंतिम अवस्था की वास्तविकता को दशाती है भस्म लेपन, शरीर की अंतिम परिणति को दशाता है
भगवान शिव के अंतस का यह तत्वज्ञान शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता की ओर संकेत करता है शिव को नील कंठेश्वर कहते हैं पुराणों में समुद्र मंथन की कथा आती है समुद्र से नाना प्रकार के रत्न निकले, जिसको देवताओं ने अपनी इच्छानुसार हथिया लिया अमृत देवता पी गये समुद्र से जहर निकला तो सारे देवी-देवता भाग खड़े हुए जहर की भीषण ह्लवाला से सारा विश्व जलने लगा, तब शिव आगे ब़ढे और कालकूट प्रलयंकर बन गये और नीलकंठ देवाधिदेव महादेव कहलाने लगे हमारे कुछ धामिक कहे जाने वाले व्यक्तियों ने शिव पूजा के साथ नशे की परिपाटी जोड़ रखी है लेकिन आश्चय है कि जो शिव- ’हमरे जान सदा शिव जोगी, अज अनव़ढ अकाम अभोगी‘ जैसा विराट पवित्र व्यक्तित्व है, उसने पता नहीं नशा कब किया होगा भांग, धतूरा, चिलम-गांजा जैसे घातक नशे करना मानवता पर कलंक है, अत: शंकर भक्त को ऐसी बुराइयों से दूर रहकर शिव के चरणों में बेल पत्र ही समपित करना चाहिए बेल के तीन पत्र हमारे लोभ, मोह, अहंकार को मिटाने में समथ है नशेबाजी धीमी आत्महत्या है इस व्यक्तिगत और सामाजिक बुराइ से बचकर नशा निवारण के संकल्पों को उभारना ही शंकर की सच्ची आराधना है शंकर के सच्चे वीरभद्र बनने की आवश्यकता है वीरता अभद्र न हो, तो संसार के प्रत्येक व्यक्ति को न्याय मिल सकता है आज शिवरात्रि है, नशामुक्ति का संकल्प लेकर उनकी पूजा-अचना कीजिए - पंडित श्रीराम शमा आचाय.(प्रभात खबर से साभार)
No comments:
Post a Comment